परिचर्चा-बेटी बचाओं अभियान

राजेश नांदल

कुछ किशोरियों से बेटी बचाओ ,बेटी पढाओं अभियान पर चर्चा करके, उनके व्यक्तिगत विचार जानने का प्रयास किया उनके अनुसार ये अभियान कितना सार्थक है आइए जानते हैं किशोर बच्चियों के मन की भावनाएं जो वह समाज में महसूस करती हैं इस विषय में कुछ लड़कियों से बात की, तो उन्होंने अपने मन की भावनाओं को कुछ इस प्रकार व्यक्त किया , पूजा मलिक के अनुसार,”मै बचपन में बड़े बुजुर्गों के मुख से यही सुनती आई हूं कि बेटे भाग्य से पैदा होते हैं और बिटिया सौभाग्य से । लेकिन हर बेटी इतनी सौभाग्यशाली नही होती ,खासतौर पर जिनके पापा नशे के आदि है ऐसे में सारी जिम्मेदारी मां और बेटियों पर आ जाती है ऐसी स्थिति में लडकियों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।और नशेड़ी बाप की जवान बेटी होना अपने आप में अभिशाप है। आसपडौस व रिश्तेदारों के कुछ बुरे अनुभव जिन्हें सांझा करते हुए भी डर लगता है और सोचती हूँ काश “बेटी सुरक्षा अभियान” भी सशक्त रूप से चलाया जा सके।

दुसरी छात्रा दीपाली का कहना है कि जब मैं घर से बाहर होती हूं तो असुरक्षा की भावना से घिरी होती हूं यहां तक की शादियों में कुछ रिश्तेदारों की निगाहें विशेषकर जब मेरे पिता समान व्यक्ति भी मिलते हैं और ऐसी अजीब निगाहों से शरीर को ऐंडी से चोटी तक ताकते है तो स्वयं को लाचार असुरक्षित और अकेली महसूस करती हूं मेरा मानना है बेटी बचाओ अभियान के साथ सुरक्षित माहौल भी मिलना चाहिए ताकि हम स्वाभिमान के साथ सर उठाकर चल सके।

एकता का कहना है कि मैं पढ़ लिखकर अपने सपनों को साकार करना चाहती हूं मेरे माता-पिता का पूर्ण सहयोग मुझे मिलता है लेकिन लोगों की घूरती निगाहें तीर की भांति वार करती है उनकी नजर को देख कर दिल सिहर उठता है और मैं स्वयं से प्रश्न पूछने लगती हूं ऐसा मैंने क्या गलत काम कर दिया जो लोग ऐसे घूर रहे हैं यदि हम बेटियां समाज का महत्वपूर्ण अंग है तो हमें भी सम्मान मिलना चाहिए ताकि हमारी राह संघर्ष पूर्ण ना होकर सरल बने और हम मेहनत करते हुए अपने पथ पर सुरक्षित चलकर अपनी मंजिल को पा सके ।

तीसरी छात्रा ललिता का कहना है लड़कियां कोमल,सहृदय व भावनाओं से परिपूर्ण होती है उन्हें प्रेम पूर्ण व सौहार्दपूर्ण वातावरण मिलना चाहिए ताकि वे मन से सुदृढ़ बने और समाज में अपनी भागीदारी सशक्त रूप से एक अच्छे प्रबंधक की भांति निभा पाए।मै व्यक्तिगत रूप से ऐसे स्वस्थ भारत की कामना करती हूं जहां लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव ना किया जाए,और उनमें मौजूद योग्यताओं को सम्मान मिलना चाहिए। बेटियों के साथ साथ बेटो को भी संस्कारों की कड़ी में बांधने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि हर माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश समान रूप से करेंगे तो निसंदेह सामाजिक पर्यावरण सकारात्मक होगा। हर उम्रदराज व्यक्ति युवा बेटियों को अपनी बेटी के समान समझे।राह चलती लड़कियों को घूरने व ताकने का प्रयास ना करें और युवा वर्ग स्वस्थ मन से आगे बढ़े तो बेटी बचाओ अभियान स्वत् ही तेजी पकड जाएगा। अक्सर बेटियां अपनों के बीच ही असुरक्षा की भावना से घिरी होती है यहां तक की शादियों में कुछ रिश्तेदार बुरी तरह ताकते है गलत तरीके से छूने का प्रयास करते है हम लडकियां भी समाज का महत्वपूर्ण अंग है हमें भी सम्मान मिलना चाहिए ताकि हमारी राह सरल व सुरक्षित बने।

ये है हमारी बेटियों की विचारधारा कि वो किस तरह विभिन्न परिस्थितियों में असहज महसूस करती है और कैसे संभ्रांत समाज की कल्पना कर रही है ।देखा जाए तो हम बड़े इन सभी हालात से भलीभांति परिचित हैं तो आइए मिलकर एक ऐसी अनूठी पहल करने का प्रयास करें जो समाज में फैली अस्वस्थ मानसिकता को उखाड़ फेकें और सभी असामाजिक तत्वों के प्रति सजग और सचेत रहें ।अपराधी तत्वों की पहचान कर उन्हें दंडित कराने का प्रावधान ढूंढे तथा मासूम बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ करने की कोशिश करने वालो को कड़ी सजा दिला सके। बेटियां बहुत ही प्यारी और कोमल हृदय वाली होती है उनकी भावनाओं को समझने का प्रयास करें। बेटियों का मधुर व्यवहार व सेवा भावना मन को मोह लेती है घर का माहौल खुशियों से परिपूर्ण रहता है सारा दिन घर के आंगन में चिड़िया की तरह चलती रहती है बेटियां किसी भी क्षेत्र में व प्रतिस्पर्धा में पीछे नहीं रहती। हर क्षेत्र में उपलब्धियों का ग्राफ प्रतिदिन ऊंचा बढ़ा रही हैं हर क्षेत्र में नित नए आयाम स्थापित कर रही है तथा अपने परिवार का मान सम्मान बढ़ा रही है । बेटियां शारीरिक रूप से भले ही कमजोर होती है लेकिन मनोबल किसी ताकतवर इंसान से कम नहीं होता। बेटी बचाओ,सुरक्षा बढ़ाओं अभियान के साथ,बेटी पढ़ाओ अभियान की कामना करती हूं।

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