-कमलेश भारतीय अभी आया हूं दिनेशपुर से जो उत्तराखंड का एक छोटा सा गांव है । जहां न कोई बड़ा होटल है और न कोई गेस्ट हाउस लेकिन पलाश विश्वास का हौसला देखिए कि दो दिन का सम्मेलन रख दिया देश की लघुपत्रिकाओं के योगदान और उनकी भूमिका को लेकर । कितने ही रचनाकार /संपादक दूर दराज से , देश के कोने कोने से पहुंचे और जमकर चर्चा हुई दो दिन । जनता का साहित्य , जनता की संस्कृति और मीडिया का मीडिया यह विषय रहा चर्चा परिचर्चा के लिए । प्रसिद्ध रचनाकार मदन कश्यप ने बहुत बढिया बात कही -देशहित और जनहित में इतना विरोध क्यों है ? बाजार और विचार के बीच खाई क्यों है ? बाजार और विचार की लड़ाई बड़ी है और इन दोनों के बीच खाई भी बढ़ती जा रही है । विचारहीनता का संकट बढ़ता जा रहा है देश में । सत्य को समझना , पहचानना और अभिव्यक्त करने की चुनौती बढ़ती जा रही है । हम संस्कृति से विमुख करने वालों के लिए चुनौती बन सकें यह बहुत जरूरी है गया है । देव शंकर नवीन ने कहा कि चेतना को प्रबुद्ध करने की जरूरत है । उन्होंने एक लघुकथा से समझाया कि जिन्होंने रावण के पाप को झेला वो भी कसूरवार होते हैं बराबर के । हमें वैकल्पिक मीडिया बनाना है । ये लघुपत्रिकायें ही हैं जिन्होंने हर आंदोलन को जन्म दिया । मैंने हरियाणा की ओर से गये इकलौते प्रतिनिधि के रूप में कहा कि कोई पत्र पत्रिका लघु नहीं होता । यदि ऐसा होता तो छत्रपति के पूरे सच ने जो काम कर दिखाया वह बड़े बड़े अखबार नहीं कर सके । लघु पत्रिका ‘वामन के तीन डग’ भरतीं आसमान तक नाप जाती हैं । पाश ने कहा भी था कि सबसे खतरनाक होता हैसब कुछ देखकर भी चुप रहनाऔर सुरजीत पातर ने भी कहा था :कुज्ज किहा तां हनेरा जरेगा किवें ,,, जी हां । हनेरा यानी अंधकार यानी तानाशाह कभी सहता नहीं विरोध और यह विरोध हमें करना है । इन लघु पत्रिकाओं को करना है क्योंकि मीडिया बिकाऊ होता जा रहा है और बड़े संस्थानों से कोई आस नहीं बची । आजकल के संपादक राकेश रेणु ने कहा कि जितने बड़े आंदोलन देश में हुए सबमें लघु पत्रिकाओं का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है लेकिन जिस स्तर पर और जितनी गहरी बहस होनी चाहिए वह होनी चाहिए । इसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है ।सम्मेलन में ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट , ‘नैनीताल समाचार’ के संपादक राजीव लोचन साह , शेखर पाठक ,कौशल किशोर , बेबी हालदार , कपिलेश भोज , अमृता पांडे , मीन अरोड़ा, गीता पपोला , रूपेश कुमार सिंह , नगीना खान , कितने जाने अनजाने मित्रों ने इसे गरिमा प्रदान की । रूपेश कुमार सिंह द्वारा लिखित ‘मास्साब’ पुस्तक का विमोचन किया गया जिसमें मास्टर मास्टर प्रताप सिंह के जीवन की घटनाओं को समेटने की कोशिश की गयी है । सम्मेलन में देश के अनेक स्थानों से प्रकाशित हो रही पत्रिकाओं व पुस्तकों की प्रदर्शनी व बिक्री भी खूब हुई और दोनों शाम कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम व नाटक प्रस्तुत किये । कार्यक्रम का मुख्य संचालन हेतु भारद्वाज ने किया और इसे पटरी से उतरने से बार बार बीच में आते रहे । इस पूरे आयोजन के लिए पलाश विश्वास और प्रेरणा अंशु को बधाई देता हूं । संयोग से प्रेरणा अंशु के प्रकाशन का यह 36 वां गौरवशाली वर्ष भी था । प्रेरणा अंशु को भी बहुत बहुत बधाई । एक छोटे से गांव दिनेशपुर से जो अलख जगी है , वह बहुत दूर तक जायेगी , पूरी आशा है , विश्वास है ।-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation स्कैम फिल्म का मुहूर्त शाॅट भारत के गौरवपूर्ण इतिहास के निर्माण में महिलाओं का अविस्मरणीय योगदान: कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज