हिसार: 11 मई – भारत के गौरवपूर्ण इतिहास के निर्माण में महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय है। देश के स्वतंत्रता संग्राम में जिस अदम्य साहस का उन्होंने परिचय दिया उसने भारत माता के गौरव को बढ़ाया है। ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने व्यक्त किए। वे आज आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में पंचनद शोध संस्थान, अध्ययन केन्द्र, हिसार के सहयोग से विश्वविद्यालय द्वारा ‘भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महिलाओं का योगदान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे।

कुलपति ने कहा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि वे एक ऐसी राष्ट्रीय शक्ति है जो राष्ट्र की स्वाधीनता और अधिकारों के लिए सभी बंधनों से मुक्त होकर बड़ी से बड़ी शक्ति से लोहा ले सकती हैं। उन्होंने इस राष्ट्रीय आंदोलन में अपने आपको विविध आयामों के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा स्वाधीनता संग्राम के आरंभ से लेकर अंत तक महिलाओं ने शांतिपूर्ण आंदोलनों से लेकर  क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रियता से भाग ही नहीं लिया अपितु अपने प्राणों की आहूति तक दी। स्वाधीनता के लिए 1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई द्वारा विश्व के सबसे महान व शक्तिशाली साम्राज्य का विद्रोह जिसमें इस महान विरांगना ने अपने प्राणों का बलिदान तक कर दिया, हम सबको याद है। इसी प्रकार ऐसी अनेक वीरांगनाएं हैं जिन्होंने गांधी जी के ब्रिटिश शासन के विरूद्ध आंदोलनों में भाग लिया और गिरफ्तारी भी दी। उन्होंने इस आंदोलन मेें अपने आपको विभिन्न आयामों के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा महिलाएं पुरूषों से न कल पीछे थी और न आज। वे पुरूषों के समान प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा आजादी के 75 साल पूरे हो गए हैं परन्तु देशवासियों के दिल में आज भी उन शख्सियतों के लिए प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ है, जिन्होने आजादी की खातिर अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए।

दयानंद महाविद्यालय के एसोसिऐट प्रोफेसर एवं इतिहासकार डॉ. महेन्द्र सिंह ने मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए कहा कि असंख्य   महिलाओं   के   स्वतंत्रता   आंदोलन   में   भाग   लेने   के   कारण   ही   आजादी   का   यह   महान   आंदोलन   सक्रिय   बन   सका।   उन्होंने   देश   के   प्रति   प्रेम   भावना   का   परिचय   देते   हुए   व   उसे   स्वतंत्र   कराने   के   लिए   सभी   तरीकों   से   अपना   योगदान   दिया और अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।  उन्होंने कहा आजादी के संग्राम का प्रथम अध्याय 1857 में शुरू हुआ जिसमें करीब 60 हजार महिलाओं ने बलिदान दिया। उन्होंने कहा श्रीमती सरोजनी नायडू , अरूणा आसिफ अली,  श्रीमती सुचेता कृपलानी, एनी बेसेंट, कमला   देवी चटोपाध्याय, कस्तूरबा गांधी,  विजय लक्ष्मी पंडित , मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी, एनी बेसेंट, हन्सा मेहता तथा राजकुमारी अमृता कौर जैसी अनेक महिलाओं के योगदान को इतिहास कभी भुला नहीं कर पायेगा। उन्होंने महारानी लक्ष्मीबाई को महान वीरांगना बताया। उन्होंने कहा नेता जी सुभाष चंद्र बोस की रेजिमेंट में लक्ष्मी बाई के नाम से एक रेजिमेंट थी जिसका नेतृत्व लक्ष्मी सहगल ने किया। बतायानी देवी ने सन् 1944 में 3 करोड़ रूपए की राशि स्वतंत्रता संग्राम के लिए सुभाष चंद्र बोस को दी। इस रेजिमेंट की महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर भाग लिया। उन्होंने कहा स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा की महिलाओं की भूमिका भी कम नहीं रही है। इनमें कैथल की महारानी महताब कौर, लक्ष्मी, चांद बाई, लज्जावती, कमलादेवी, मन्नी देवी, उषा देवी, राधा देवी, लक्ष्मी तायल इत्यादि अनेको महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. नीरज कुमार और गृह विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ. मंजू महता का इस कार्यक्रम के आयोजन में महती योगदान रहा। मंच का संचालन डॉ. मोहित ने जबकि धन्यवाद प्रस्ताव पंचनद शोध संस्थान, अध्ययन केन्द्र के उपाध्यक्ष डॉ. अवनीश वर्मा ने किया।  पंचनद शोध संस्थान, अध्ययन केन्द्र के संरक्षक श्री जी.सी. बंसल भी मंच पर उपस्थित थे। इस अवसर पर हरियाणा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. जगबीर सिंह, लुवास के कुलपति प्रो. विनोद कुमार वर्मा सहित विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, कर्मचारी व भारी संख्या में विद्यार्थी मौजूद रहे।

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