कमलेश भारतीय

शहर के बड़े बाजार में मेरे दोस्त की दुकान है । वह शो पीस की वैरायटी के लिए मशहूर है । कहीं कोई कार्यक्रम हो तो सब उसकी दुकान का रूख करते हैं । फुर्सत के पलों में मैं अपने दोस्त की दुकान पर जा बैठता हूं ।

ऐसे ही हम बैठे गप्पें हांक रहे थे कि एक सरकारी गाड़ी आकर रुकी । एक भद्र महिला उतरी और पीछे पीछे ड्राइवर बहुत सारे स्मृतिचिन्ह उठाए आ खडा हुआ । काउंटर पर रखवाने के बाद भद्र महिला ने ड्राइवर को गाड़ी के पास जाने का आदेश सुना दिया ।

इसके बाद वह महिला बड़े रौब से मेरे दोस्त को कहने लगी कि इनके पैसे लगाओ और मुझे दे दो । वह बेचारा कहता रहा कि ये स्मृतिचिन्ह उसके किसी काम के नहीं हैं लेकिन वह भद्र महिला अड़ी रही और कहती रही कि हम भी इनका क्या करें ? कहां रखें ? वह पैसे लेकर ही गयी ।

कौन थी यह भद्र महिला ? मैंने मित्र से पूछा ।

एक उच्चाधिकारी की पत्नी ।
मैं हैरान रह गया । क्या कार्यक्रमों में बडे प्यार और सम्मान से दिए जाने वाले कीमती स्मृतिचिन्हों का यही उपयोग होता है ?
यही सदैव के लिए मेरी स्मृति में चिन्हित रह गया ।

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