–कमलेश भारतीय हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सिरसा से पूर्व सांसद अशोक तंवर आखिरकार छह माह के बाद फिर नयी पार्टी की ओर चले गये । कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कार्यक्रत्ताओं व समर्थकों की बैठकों के आधार पर अपना भारत मोर्चा बना लिया था । फिर प्रशांत किशोर की नज़र इन पर गयी और वे ले गये तृणमूल कांग्रेस में । लगभग छह माह तक तृणमूल कांग्रेस की बैठकें भी जब बेनतीजा रहीं तब फिर ये महाशय पलटे और बढ़ गये आप पार्टी की ओर । अरविंद केजरीवाल ने इन्हें आप पार्टी की टोपी पहना दी और लो जी हो गये आप के अशोक तंवर । अब यह संबंध कब तक चलेगा ? कोई कह नही सकता । ऐसे ही कभी मनीराम गोदारा की हालत रही हरियाणा में । एक समय वे और चौ भजनलाल एकसाथ कांग्रेस में थे और दोस्ती भी इतनी कि बेटे बेटी की शादी की बात चली लेकिन क्या हुआ , क्या नहीं , रिश्ता सिरे नहीं चढ़ा और दोस्ती भी दुश्मनी में बदल गयी । इतनी दुश्मनी कि चौ भजनलाल ने जब श्रीमती इंदिरा गांधी को हिसार की जनसभा में बुलाया तब रात के रात मनीराम गोदारा की कांग्रेस से छुट्टी करवा दी । फिर वे चले गये चौ देवीलाल के साथ दलित मजदूर किसान पार्टी में जो बाद में लोकदल बन गयी । एक बार ऐसे संकट के समय मनीराम गोदारा मनीराम बागड़ी को मिले तो बागड़ी जी ने पूछा -सुना मनीराम , आजकल किस पार्टी में हो ? मनीराम गोदारा ने कहावत सुनाई -पहले हम हुआ करते वजीरफिर हुए हम दर्जीआगे हम क्या होंगे ?यह हमारी मां की मर्जी । यानी कुछ पता नहीं । जैसा समय होगा , वैसा फैसला करेंगे । बाद में मनीराम गोदारा जी चौ बंसीलाल के साथ हो लिये और फिर मंत्री भी बने । अब अशोक तंवर क्या क्या होंगे और क्या क्या करेंगे , शायद वे खुद भी इतना विचार नहीं कर रहे । बस । आप की पंजाब में सफलता देखकर आप पार्टी की ओर चल दिये । क्या फैसला करने से पहले अपने समर्थकों का मन टटोला ? इनके समर्थक कहां कहां इनका साथ देंगे ? ऐसी ही समस्या इनेलो जजपा के समर्थकों की भी है । रणबीर गंगवा ने एक बातचीत में बताया था कि परिवार की आपसी खींचतान को देखकर उनका दिल टूट गया था और वे राजनीति छोड़ने का मन बना रसूल थे कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भाजपा में आने का न्यौता दिया और वहीं जाना सही कदम लगा । हरियाणा तो आयाराम गयाराण की राजनीति का जनक है , पितामह है । यहां तो इतने नेताओं ने इतने दल बदले कि लिखे व बताये नहीं जा सकते । एक एक दिन में भी दो दो बार आस्थाएं बदली गयीं । इसी राजनीति को अब सारा देश अपना चुका है । फिर अशोक तंवर से क्या गिला शिकवा ? कुलदीप बिश्नोई ने क्या क्या नहीं कहा कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी को ? अब वही कांग्रेस और वही राहुल गांधी है कि नहीं ? चौ वीरेंद्र सिंह ने कम दल बदले ? अब अगर शांत है तो भाजपा सांसद बेटे बृजेंद्र सिंह के भविष्य के कारण । अभी भी दिल बीच बीच में हिलोरे लेने लगता है लेकिन समझा लेते हैं बृजेंद्र को देखकर । अशोक तंवर को असल में बहुत जल्दी ही सफलता मिल गयी थी ।मात्र पंद्रह दिन के अंदर सिरसा से सांसद चुने गये थे और फिर कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष पद भी मिला । इतना सब कुछ जल्दी जल्दी मिलना संभाला न गया । परिपक्व न हो पाये । क्या ऐसा प्रदेश अध्यक्ष देखा जो हाईकमान के आवास के बाहर दिल्ली जाकर प्रदर्शन करे ? बस । वहीं से राजनीतिक गिरावट शुरू हुई जो आने वाला समय ही बतायेगा कि यह फैसला कैसा रहा ?हमारी ओर से शुभकामनाएं नये घर कीं ।-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation 6 अप्रैल : भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस पर विशेष यूक्रेन संकट के बीच भारत की सामरिक स्वतंत्रता