डॉ मीरा सिंह

जैसे-जैसे रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध से दोनों देशों में संघर्ष बढ़ता जा रहा है,वैसे वैसे विश्व स्तर पर कुछ जरूरी वस्तुओं की कीमतों में भी वृद्धि होनी शुरू हो गयी है। इससे भारतीय अर्थव्यव्स्था भी अछूती नहीं रह सकती और इन दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध की वजह से हमारा आयत भी प्रभावित हो रहा है। आशंका यह है कि आयात के साथ-साथ हमारे निर्यात में भी कमी आ रही है। वहीं कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण तेल की कुल लागत में बढ़ोतरी होगी,जिससे कारण महंगाई बढ़ेगी । इस सब के चलते देश के आर्थिक विकास में कमी आ सकती है।

रूस दुनिया का सबसे बड़ा गैस निर्यातक है और दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल निर्यातक होने के कारण, बाजारों के लिए दोनों देशों के बीच यह युद्ध चिंता का विषय बना हुआ है। भारत यूक्रेन से केमिकल्स,खाने का तेल और मशीनें खरीदता है जबकि यूक्रेन भारत से दवाइयां, इलेक्ट्रिकल्स और कपड़े खरीदता है। यूक्रेन,भारत से 721 मिलियन डॉलर यानी लगभग 55 अरब का सामान आयात करता है । इसके इलावा भारत और रूस के आपसी व्यापारिक संबधों की बात करें, तो भारत रूस को कपड़े,फार्मा उत्पाद, इलेक्ट्रिकल मशीनरी,लोहा, स्टील, कैमिकल, कॉफी और चाय का निर्यात करता है। पिछले साल भारत ने रूस को 19,649 करोड़ रुपये का निर्यात किया,इसके साथ 40,632 करोड़ रुपये का आयात भी किया।

भारत के रूस एवं यूक्रेन के साथ व्यापारिक रिश्तों के इलावा इन दोनों देशों में भारत के काफ़ी नागरिक रहते हैं। यूक्रेन में ज़्यादातर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं, वहीं रूस में पढ़ाई के साथ-साथ भारतीय नौकरी के लिए भी जाते हैं,। यह युद्ध उन भारतीय नागरिकों की शिक्षा और रोजगार को प्रभावित करेगा।

 ऐसा अनुमान है कि उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लक्ष्य से आगे बढ़ जाएगी, जिसमें ईंधन और खाद्य दोनों की किमतों में तेजी से बढोतरी होगी । अगर युद्ध की स्थिति इसी तरह बनी रही तो,उत्पादकों के इनपुट भी महंगे होंगें।

कीमतों में वृद्धि अर्थव्यवस्था में  उपभोग और निवेश को प्रभावित करेगी तथा विदेशी मुद्रा की तुलना में हमारी मुद्रा रुपया कमजोर होगा।जिससे आयातित वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के कारण देश के विकास को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। आरबीआई को इस परिस्थिति में सुधारात्मक कार्रवाई करने की  आवश्यकता होगी, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था पर दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध से प्रतिकूल प्रभाव न पड़  सके।

इस युद्ध से वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों को झटके लगने शुरू हो गये हैं, और ऐसा लगता है कि दोनों देशो के बीच युद्ध-विराम की कोई संभावना दिखाई नही दे रही है। ऐसी परिस्थितियों में भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत रखने के  लिए उचित कदम उठाने होंगे ताकि इस युद्ध के दुस्प्रभाव से देश को बचाया जा सके।

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