भगत सिंह ने अपने अंतिम संदेश में कहा था ………………. रणदीप सिंह सुरजेवाला

“भारत में संघर्ष तब तक चलता रहेगा जब तक मुट्ठी भर शोषक अपने लाभ के लिए आम जनता के श्रम का शोषण करते रहेंगे। इसका कोई खास महत्व नहीं कि शोषक अंग्रेज पूंजीपति हैं या अंग्रेज और भारतीयों का गठबंधन है या पूरी तरह भारतीय हैं।”

भगतसिंह एक विचार था जो शोषण, भेदभाव तथा मानसिक गुलामी के खिलाफ था। उनके जहन में एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना का स्वप्न था जहां एक व्यक्ति दुसरे का शोषण न कर पाए। जहां वैचारिक स्वतंत्रता हो तथा मानसिक गुलामी का कोई स्थान न हो। इंसान को इंसान समझा जाए। भेदभाव का कोई स्थान न हो। जहां इंसान को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी हो।

जिस प्रकार भगतसिंह अंग्रेजों नहीं बल्कि उन द्वारा स्थापित भेदभाव आधारित व्यवस्था के खिलाफ थे उसी प्रकार वे भारतीय धर्म-जाति आधारित व्यवस्था के भी खिलाफ थे जो इंसान इंसान के बीच भेदभाव को मान्यता देकर शोषण का माध्यम बनती है।

यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमने आज भगतसिंह को मात्र एक ब्रांड बना दिया है तथा उनकी सोच को नकार दिया है। अगर ऐसा नहीं होता तो वैचारिक भिन्नता देशद्रोह नहीं होती, किसानों-मजदूरों को पूंजीपतियों के हवाले करने की साजिश नहीं रची जाती। धार्मिक विचार चुनाव का मुद्दा न होता। मात्र जाति जीत का आधार न होती। नेता चुनते हुए हम उसकी नीति व क़ाबलियत देखते, न कि उसकी जाति और धर्म। अपनी जात बता लोगों की वोट माँगने की किसी नेता कीं हिम्मत न होती, न ही पार्टी की।

भगत सिंह के भारत में यह कल्पना नहीं की जा सकती कि महँगाई, बेरोज़गारी, शोषण, असमानता, भेदभाव चाहे कितनी भी बढ़े; असुरक्षा और नफ़रत के काले बादल चाहे कितने भी गहरा जाएँ; संसद और संस्थाएँ चाहें पंगु हो जाएँ; सविंधान चाहे धीरे धीरे एक जीवंत वस्तु की बजाय एक किताब बन जाए; अंधभक्ति और धार्मिक उन्माद ही सर्वोपरि हो।

यह बड़े अफसोस का विषय है कि जिस भगतसिंह ने भेदभाव व धर्म-जात के बँटवारे क़े ख़िलाफ़ एक क्रांति का आह्वान किया था, उसी भेदभाव आधारित व्यवस्था को मजबूत करने वाले नेता अपने को भगतसिंह की विचारधारा का असली वारिस घोषित करके जनता को बरगला रहे हैं।

लेकिन शहीद भगतसिंह की विचारधारा प्रकाश स्तम्भ की तरह सदैव याद दिलाती रहेगी भेदभाव आधारित व्यवस्था में कभी भी शांति स्थापित नहीं होगी तथा अन्यान्य वह शोषण के खिलाफ संघर्ष अनवरत जारी रहेगा।

देश के नौजवानों को ये सोचने, जानने और फ़ैसला लेने की ज़रूरत है। इसीलिए तो शहीद भगत सिंह कहा था –

“लिख रहा हूँ मैं अंजाम जिसका
कलआगाज़ आएगा।
मेरे लहू का हर एक कतरा
इंकलाब लाएगा।।”

शहीद भगत सिंह

भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत के दिवस पर इन अविस्मरणीय इंसानो की शत शत नमन।

इंक़लाब ज़िंदाबाद।
जय हिन्द।

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