झूठ का लिफाफा लेकर मत घूमो, उस लिफाफे में “भक्ति, दया, धर्म, परोपकार” के हीरे डालो।
माँ-बाप की सेवा करने में ही सभी देवी-देवताओं खुश हो जाते है : हुजूर कंवर साहेब जी
परमात्मा के दर्शन पाने के लिए तो संतो की संगति ही काफी है : हुजूर कँवर साहेब जी
जिस जीव के ऊंचे भाग होते हैं उनको “सतगुरु, सत्संग और सतनाम” मिलता है : कंवर साहेब जी
संन्तो की संगत में मूर्ख से मूर्ख लोग भी सुधर जाते हैं : कंवर साहेब जी
हमारे अंदर विषयों के खोट हमें संतो की संगति में भी नहीं बनने देती अच्छा इंसान

चरखी दादरी/झरझिला, अलवर जयवीर फोगाट

22 मार्च,सत्संग कहते सत्य की संगत को। जिसने अपनी संगत को सुधार लिया वही भक्ति के मार्ग को अपना पाता है। रामायण में भी संगति की महता पर तुलसीदास जी कहते हैं कि सठ सुधरी सुसंगत पावै यानी सुसंगत करने पर मूर्ख से मूर्ख लोग भी सुधर जाते हैं। जिस प्रकार चंदन का संग करने से प्लास के पेड़ में भी खुशबू आनी शुरू हो जाती है, लोहा पारस के संग में आने से सोना बन जाता है और गंदा नाला गंगा की संगति पाकर गंगा बन जाता है वैसे ही संतो का संग करने वाला पापी भी संत बन जाता है लेकिन जिस प्रकार लोहे में खोट होने पर लोहा सोना नहीं बन पाता वैसे ही हमारे अंदर विषयो के खोट हमें संतो की संगति में भी अच्छा इंसान नहीं बनने देती।

हुजूर कंवर साहेब महाराज जी ने कहा कि जैसा संतो का विचार है वैसा ही आपको बना देंगे। उन्होंने कहा कि जिनके ऊंचे भाग होते हैं उनको सतगुरु सत्संग और सतनाम मिलता है। लेकिन ये माया इस जीव को इन तीनों चीजों से दूर रखती हैं। बिना रस्सी और बंधनों के जीव को माया बांधे रखती है। ये बंधन ही गफलत पैदा करते हैं। उन्होंने फरमाया कि अपनी सकारात्मक शक्ति को सदेव जगाए रखो क्योंकि आपकी सोई हुई मूल प्रवृति कभी भी उभर सकती है।

एक प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए गुरु जी ने कहा कि एक महात्मा एक हवन यज्ञ में वेदो का पाठ करता था। उसके पास एक बिल्ली आती थी और महात्मा के मंत्रोचारण को बड़े ध्यान से सुनती थी। सब मानते थे कि बिल्ली बड़ी धार्मिक और सात्विक प्रवृति की है। बिल्ली से महात्मा को भी नेह हो गया। अंतिम दिन यज्ञ करके जब महात्मा ने आहुति डाली तो बिल्ली भी बैठी थी। इतनी देर में एक चूहा आ गया। बिल्ली चूहे को देखते ही उस पर झपटी तो सारा घी बिखर गया और आग लग गई। यानी बिल्ली का जातिय गुण जाग गया। महाराज जी ने कहा कि इसी प्रकार जब सत्संग में जाते हैं तो हमें लगता है कि यही जीवन का असल मर्म है लेकिन जैसे ही हम सत्संग से वापिस इस सांसारिक जीवन में लौटते हैं हम चुगली, निंदा, द्वेष जैसे अपने जातिय गुणों में फिर गाफिल हो जाते हैं।

महाराज जी ने कहा कि गुरु में बड़ी ताकत है। वो अरंड को भी चंदन बना देता है लेकिन ये चालाकी और चतुराई का काम नही हैं। ये तो “तन, मन और धन” का पूर्ण समर्पण है। उन्होंने कहा कि को गुरु वचन से भटके वो तीन लोक से पटके। गुरु की संगत आपको हर विधि से मालोमाल कर देगी। उन्होंने कहा कि जिसमें जैसे गुण होते है वो दूसरो में भी उन्हीं गुणों का स्थानांतरण करता है। जिस प्रकार जल देखने से शीतलता आती है और अग्नि के पास जाने से गर्माहट आती है उसी प्रकार संत महात्माओं की संगत से ज्ञान उपजता है विवेक जागता है। जिसने गुरु को प्रसन्न कर लिया उसने पूरे ब्रह्मांड को जीत लिया। 

गुरु जी ने फरमाया कि दया राख धर्म को पाले और जग से रहे उदासी। अपना सा जीव सबन को जाने ताहि मिले अविनाशी। उन्होंने कहा कि धर्म का अर्थ किसी एक पंथ संप्रदाय की पालना नहीं है। धर्म का अर्थ है आप जिस कर्तव्य में हैं उसका सही रूप से पालना। पुत्र हो पुत्र का कर्तव्य निभाना, शिष्य होते हुए शिष्य, भाई रहते हुए भाई का कर्तव्य निभाना ही धर्म है। दुनियादारी के साथ सब स्वार्थ के हैं, निस्वार्थ अगर कोई नाता है तो वो गुरु शिष्य का नाता है। उन्होंने कहा कि परमात्मा के दरबार में ना इन आंखों की आवश्यकता है ना कानो की। वो तो बिना जीभ के हिलाए ही आपके भावो को समझता है। परमात्मा के दर्शन पाने के लिए तो संतो की संगति ही काफी है। संतो के दिन में दर्शन कई-कई बार करने चाहिए क्योंकि इनके दर्शन आसौज के बारिश की तरह फायदा ही फायदा करते हैं। उन्होंने कहा कि ये दुनिया ऐसी नाव है जिसमें भांति-भांति के मुसाफिर सफर करते हैं। आप सब से रल मिल कर चलो लेकिन जो गुणी है संगत उसी की करो। बुराई को दिल मत दो। कोई आपको बुरा भी बोलता है तो हंस कर टाल दो क्योंकि अगर आपने उनके बुरे आचरण को समय दिया तो हो सकता है कि वो आचरण आपको भी प्रभावित ना कर ले। उन्होंने कहा कि मां-बाप की सेवा किया करो क्योंकि जो माँ-बाप की सेवा करता है वो सब देवी देवताओं को खुश कर लेता है। उन्होंने कहा कि अहंकारी नहीं लेकिन आत्म सम्मानी बनो। अहंकार करना बुरी बात है लेकिन आत्म सम्मान को खोना उस से भी बुरी बात है। उन्होंने कहा कि परमात्मा कण-कण में मौजूद है। वो आपके अंतर में भी मौजूद है। उसको आप दसवें दरवाजे की सुरंग से होकर ही देख सकते हैं। जो सच्चाई के साथ गुरु वचन में रहता है उनको। एक क्षण में दर्शन हो जाते हैं। झूठ का लिफाफा लेकर मत घूमो। उस लिफाफे में “भक्ति, दया, धर्म, परोपकार” के हीरे डालो।

error: Content is protected !!