कमलेश भारतीय फिल्म अभिनेताओं का राजनीति में आना कोई नयी बात नहीं रह गयी । बल्कि अब तो आना जाना लगा रहता है । कितने ही अभिनेता अभिनेत्रियां आईं और गयीं । नरगिस को राज्यसभा में ले गये थे । वैजयंतीमाला को लोकसभा में । सुनील दत्त तीन तीन बार लगातार मुम्बई में जीते कांग्रेस की ओर से और उनकी बेटी प्रिया दत्त भी बाद में सांसद बनीं । देवानंद ने तो एक बार बाकायदा राजनीतिक पार्टी बना ली थी लेकिन सफलता न मिली । राखी सावंत भी पार्टी बनाती बनाती रह गयी । मिताभ बच्चन अपने दोस्त राजीव गान्धी के लिए राजनीति में आए लेकिन बोफोर्स के आरोपों की बौछारों से राजनीति से मुंह मोड़ लिया । छोटे मियां गोविंदा भी बिरार का छोरा बन कर राजनीति में आसानी से जीत गये लेकिन जब गलती का अहसास हुआ तब तक फिल्मी दुनिया की धरती से पांव खिसक गये थे । उर्मिला मातोंडकर , नगमा की कहानियां भी असफलता की कहानियां हैं । धर्मेद्र बीकानेर से सांसद बने , फिर नहीं लौटे । इस्तीफा ही दिया । ऐसे ही इनके बेटे सन्नी गुरदासपुर से सांसद बने पर गुमशुदा के पोस्टर लगे । हेमामालिनी मथुरा से दूसरी बार सांसद बनीं । स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराया तो किरण खेर भी चंडीगढ़ से सांसद हैं । कितने कितने उदाहरण हैं । राजेश खन्ना सुपर स्टार और विलेन शत्रुघ्न सिन्हा दिल्ली में सीधे चुनाव लड़े और राजेश खन्ना जीते । फिर शत्रुघ्न सिन्हा आडवाणी के फैन हो गये और जब आडवाणी को मार्गदर्शक बना कर एक किनारे बिठा दिया गया तब वे कांग्रेस में चले गये लेकिन वहां दूसरों को खामोश करने वाले को खुद खामोश रहना पड़ा और आखिरकार वे बड़ी खामोशी से कब कांग्रेस से चले गये पता भी न चला ।पता चला जब ममता बनर्जी ने उन्हें उपचुनाव में आसनसोल से प्रत्याशी घोषित किया । बाबुल सुप्रिया विधानसभा का उपचुनाव लड़ेंगे । वे भाजपा के मंत्रिमंडल में से जब बड़े बेआबरू होकर बाहर आए तब एक बार तो राजनीति छोड़कर बैठे । फिर तृणमूल में शामिल हो गये । अब नयी पार्टी में देखें कैसा महसूस करेंगे ? मिथुन चक्रवर्ती को भी दीदी ने राज्यसभा भेजा था लेकिन विधानसभा चुनाव में बड़े बड़े दावे किये , संवाद बोले दीदी के खिलाफ । अब वे खामोश हो गये हैं । इस तरह अभिनेता कभी खामोश तो कभी राजनीति में बडबोले होते आए हैं और होते रहेंगे । हरियाणा की रागिनी गायिका व कलाकार सपना का सपना अभी अधूरा है राजनीति में आने का । हालांकि इसे अपनी अपनी पार्टी में शामिल करने की रस्साकशी खूब हुई और वह भाजपा में शामिल हो गयी । रवि किशन और मनोज तिवारी ही नहीं हंस राज हंस भी भाजपा के सांसद बने हैं ।–पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों का राजनीतिकरण 16 मार्च वैक्सीनेशन डे विशेष……टीकाकरण कार्यक्रम अच्छे सार्वजनिक स्वास्थ्य की आधारशिला है