अचानक कैसे बदल गया दक्षिणी हरियाणा की राजनीति के मौसम का मिजाज
आखिर सीएम के समक्ष समर्पण के पीछे क्या मजबूरी है राव राजा की
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम एक दिन पूर्व पचगांव रैली में राव राजा ने सीएम से बढ़ाया दोस्ती का हाथ
दक्षिणी हरियाणा के क्षत्रप को क्या मोदी और भाजपा के जादू की भनक लग गई?
क्या राव राजा चौo वीरेंद्र सिंह डूंमरखा से मिलकर कोई बड़ा धमाका करने के फिराक में ?
मुख्यमंत्री की तरफ यकायक दोस्ती का हाथ बढ़ाना और उनकी प्रशंसा करना उनका आत्मबोध है या विवशता या रणनीति इसका खुलासा आने वाला ही समय करेगा?

अशोक कुमार कौशिक

“राव राजा” इंदरजीत सिंह को लेकर अक्सर यह कहा जाता है कि उनको हवा का रुख भांपना आता है। पिछले 7 साल से लगातार अनेक मंचों पर सार्वजनिक तौर पर प्रदेश नेतृत्व पर अपनी “नाराजगी” जाहिर करने वाले अहीरवाल के “रावराजा” पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के एक दिन पूर्व “पचगांव” में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को लेकर आयोजित रैली में एकाएक अपने उस पुराने चिर परिचित अंदाज से हटकर यकायक “समर्पण” कर गए। राव और खट्टर कि दोस्ती का हाथ और प्रशंसा पचगांव के बाद काफी चर्चा में है।

अपने भाषण की शुरुआत में तीखे तेवर दिखा विकास को गिनाया। बाद में राव इंद्रजीत सिंह ने अपनी चिर परिचित शैली से हटकर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से कहा कि हमने और आपने मिलकर नरेंद्र भाई मोदी के आशीर्वाद से हरियाणा में भाजपा को खड़ा किया है। यदि आप और हम लड़ते रहेंगे तो प्रदेश और पार्टी का भला कैसे होगा। इसलिए मैं यह चाहता हूं कि “हम और आप” मिले, आधा हाथ मैं बढ़ाता हूं आधा तुम बढ़ाओ। वह भाषण देते हुए मंच से सीएम की ओर बढ़े तब मनोहर लाल खट्टर अपनी सीट से उठे और दोनों ने हाथ मिलाया। उन्होंने नितिन गडकरी की उपस्थिति में अचानक हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की ओर “दो कदम हम बड़े दो कदम तुम बढ़ो” की बात कहते हुए मोदी के नाम पर दोस्ती का हाथ बढ़ा सबको आश्चर्यचकित कर दिया । यहां यह भी देखने को मिला कि खट्टर महज अपनी सीट से उठे पर आगे नहीं बढ़े वहा तक इंद्रजीत सिंह को ही आना पड़ा। भाषण देते वक्त राव राजा के हाव भाव और बॉडी लैंग्वेज काफी “बेचैनी” तथा “अंतर्द्वंद” से भरे दिखाई दिए। इस दोस्ती के हाथ के न्यौते में विवशता सपष्ट दिखाई दे रही थी। उसके बाद मुख्यमंत्री की प्रशंसा करना अब इसके क्या मायने हैं? क्या उन्हें आत्मबोध हो गया कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बाद मनोहर लाल खट्टर से भी अनबन उनके लिए हानिकारक है। क्या उनका हृदय परिवर्तन हो गया या फिर कोई गहरी रणनीति के तहत यह सब किया गया। इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

क्या दक्षिणी हरियाणा के क्षत्रप को क्या मोदी और भाजपा के जादू की भनक लग गई थी और समय परिस्थिति को प्रतिकूल देखते हुए उन्होंने प्रदेश नेतृत्व से संधि करने में ही अपनी भलाई समझी। या भाजपा के विश्वसनीय सूत्रों से उनको जानकारी मिल गई जिसके अनुसार भाजपा राव इंद्रजीत सिंह के पर काटने की तैयारी में थी।

भाजपा कैडर की पार्टी है और वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीति के अनुरूप राजनीति होती है। वहां ऊपर से आए हुए आदेश को बिना किसी चू चपड के माना जाता है। क्योंकि राव इंदरजीत सिंह कांग्रेसी कल्चर के व्यक्ति हैं और आरएसएस कैडर से उनका कोई सरोकार नहीं है। जय श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समय उन्होंने बगावती तेवर अपनाए थे और हाईकमान पर दबाव बनाया था वही प्रक्रिया भाजपा में भी दोहराई गई। उनके तो एक कांग्रेसी मित्र जो भाजपा में सांसद है ने उनकी कांग्रेस से प्रगाढ़ता होने का वक्तव्य भी दिया था।

पचगांव रैली से पूर्व वह जिस आक्रोश और अंदाज से अपनी बात रखते थे वह इस रैली में गायब थी। शायद उनको भनक लग गई थी की भारतीय जनता पार्टी की तो यदि उसे उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों में आशा के अनुरूप परिणाम मिलने पर वह राव राजा इंदरजीत सिंह को बाहर का रास्ता दिखा सकती है या उन्हें पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर सकती है। सरकार व पार्टी की ओर से उनके अतीत में कांग्रेस सरकार के कार्यकल की बारीकी से खुफिया जांच चल रही थी। उनकी हर कमजोरी और राजनीतिक कुंडली खंगाली जा चुकी है। इन्हीं कमजोर नसों के बलबूते उनको धत्ता दिखाये जाने की पूरी तैयारी बताते हैं। जिसका शायद उन्हें पूर्वाभास हो गया।

पचगांव की रैली में उनकी बातों को लेकर ही इस आलेख को आगे बढ़ाएंगे । शुरुआत में जो आक्रोश था वह बाद में दोस्ती के न्योते में बदल गया? उन्होंने रैली में स्पष्ट रूप से कहा कि हमने और आपने (खट्टर) ने मिलकर प्रदेश में पार्टी को आगे बढ़ाया। जिसमें हमें नरेंद्र भाई मोदी का सहयोग मिला। अब तक वह सार्वजनिक रूप से यह कहते नहीं थकते थे कि भाजपा को मोदी के जादू खत्म होने का एहसास हो जाना चाहिए तथा सत्तर पार वाले नारे की सार्थकता को भूल जाना चाहिए, क्योंकि दक्षिणी हरियाणा ने ही हरियाणा में सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया। गत दिनों जिला महेंद्रगढ़ के गांव सेहलंग गांव में भाजपा को आईना दिखाने का काम किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में स्पष्ट रूप से कहा कि भाजपा अब 40 के आसपास भी सीटे लेने सफल नहीं होती दिखाई दे रही, 70 बार का नारा तो बहुत बड़ी बात है। इस बयान ने तो राजनीति क्षेत्र में एक हलचल मचा दी थी। अब पचगांव रैली में कही गई और सेहलंग में कही गई दोनों बातें परस्पर विरोधी है। इससे पहले वह पाटोदा की रैली में यह ताना देने से नहीं चूके थे कि भाजपा वालों को अहीरवाल से बाहर गांव में घुसने नहीं दिया जाता, उनकी बदौलत ही करोना काल में वह अहिरवाल में आवागमन करते रहे।

इसके बाद उन्होंने दक्षिणी हरियाणा में आजकल अहीर रेजिमेंट गठन की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन को अपना समर्थन देखकर अपने मंसूबो ओर चाल का खुला इजहार कर दिया। रामपुरा हाउस के नेता ने अपने इस वक्तव्य के माध्यम से भाजपा को पसोपेश में अवश्य डाल दिया है। उनके विरोधी अब उन पर यह कटाक्ष तो कर ही रहे हैं कि जब वह केंद्र में रक्षा राज्य मंत्री थे तब इसके बारे में प्रयास क्यों नहीं किए। पर यह सर्वविदित है कि अहीरवाल में अहीर रेजिमेंट का गठन एक सेंटीमेंटल मामला है जिसको को भुनाने वह गठन कराने के लिए हर कोई ललायित है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले लंबे समय से दक्षिणी हरियाणा के सिरमोर कहे जाने वाले राव इंदरजीत सिंह प्रदेश नेतृत्व और पार्टी से नाखुश थे। वह इसका इजहार समय-समय पर सार्वजनिक तौर पर करते रहते थे। पीछे यह बात बड़े जोरों पर थी की वह हरियाणा की राजनीति में कोई बड़ा धमाका करेंगे यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में रह जाती तो। इसके लिए यह भी कयास लगाए जा रहे थे कि वह लगातार प्रदेश के उन पांच छह लोकसभा सांसदों के संपर्क में हैं जो कांग्रेस से भाजपा में आए हैं।

अतीत में भाजपा ने दक्षिणी हरियाणा की राजनीति में राव इंदरजीत के वर्चस्व को कम करने की रणनीति के तहत भूपेंद्र यादव को मैदान में उतार कर अपने मंसूबे जाहिर कर दिए थे। भूपेंद्र यादव की आवास पर बढ़ती भीड़ ने उन्हें निश्चित ही चिंता में अवश्य डाला है। अब उनकी हरियाणा में ताजपोशी की चर्चाएं सुनने को आ रही है। इधर रामपुरा हाउस के सिरमौर राव इंद्रजीत सिंह ने भाजपा की रणनीति की भनक भांपते हुए दबाव हेतु अपनी बेटी आरती राव को नांगल चौधरी के नायन गांव में एक जनसभा करवा कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए। इससे पूर्व वह खुद भी दौगड़ा अहीर तथा कोरियावास में आयोजन करके अपनी ताकत का एहसास करवा चुके है। राव इंदरजीत सिंह काफी समय से भाजपा में घुटन महसूस कर रहे समय-समय पर वह इसका इजहार भी करते हैं अब उन्होंने अपनी बेटी आरती राव को मैदान में उतारकर दिया । वह आरती राव के माध्यम से उन नौजवानों में भी अपनी पैठ मजबूत करना चाह रहे हैं जो उनके उम्र दराज होने के कारण उनसे दूर रहते हैं। युवा पीढ़ी और बुजुर्गों के तालमेल से भावी राजनीति की ओर पग बढ़ा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में मिली जबरदस्त सफलता ने उनके हर मंसूबे पर पानी फेर दिया। वह बेबस, थके से और अंतर्द्वंद से भरे दिखाई दे रहे थे। दोस्ती का नौता उनके समर्पण और

वैसे विश्लेषकों का कहना है कि राव राजा के बारे में यह सर्वविदित है कि वह कोई भी आयोजन बगैर किसी प्रयोजन के नहीं करते । उनका हर वक्तव्य बड़ा सोच समझकर कुशल रणनीति के तहत दिया जाता है। उनकी पीड़ा सर्वविदित है कि उनके नाम पर दक्षिण हरियाणा में 2014 मिल लहर बनाई और 2017 के चुनाव में उनको मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया था, पर कांग्रेस की तरह हीं उनको भाजपा में भी ठगा गया। अहीरवाल में भी कांग्रेस शासन के समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जाट राजनीति की खुलकर मुखालफत देखने को मिली जिसके बाद लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा की राजनीति में पहली बार हरियाणा में भाजपा को अपने बलबूते पर सरकार बनाने का मौका मिला। भाजपा वाले भले ही इसमें मोदी का जादू मानते हो लेकिन यह भी सर्वविदित है कि इस जादू को प्रभावशाली बनाने में रेवाड़ी की सैनिक रैली की एक अहम भूमिका रही थी। इस रैली के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा और मोदी का तिलिस्म सा बन गया था। क्या इससे पूर्व किसी ने सोचा था कि राव इंदरजीत सिंह भाजपा में शामिल हो जायेंगे, इसलिए कहते हैं राजनीतिक संभावना का खेल है?

उनके विरोधियों का कहना है की राव इंदरजीत सिंह ने यह समर्पण पहली बार नहीं किया 2019 में हसनपुर में उन्होंने एक रैली का आयोजन किया था और अपने बगावती तेवर दिखाए थे उसके बाद जब बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मोदी का ग्राफ बढ़ा तो उन्होंने अपने बगावती तेवरों को ठंडा कर दिया और भाजपा में रहकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया जबकि उनकी टोली के सांसदों ने चुनाव नए लड़ने का ऐलान कर दिया था।

अपनी इस घुटन और पीड़ा का इजहार उन्होंने समय-समय पर सार्वजनिक तौर पर इशारों इशारों में किया है भले ही वह मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ किसी सांझा जनसभा की बात रही हो या दोगडा अहीर की। राव राजा के बारे में यह भी सर्वविदित है कि वह हवा का रुख आपने में माहिर है किसान आंदोलन के बाद हरियाणा की राजनीति में भाजपा के प्रति गहरी नाराजगी पनप गई जिसका उन्हें आभास भाजपा के साथ राव राजा को हो गया। इसके फलस्वरूप ही रामपुरा हाउस दिग्गज ने अपने राजनीतिक पाशे चलने शुरू कीये।

सुनने में तो यह आ रहा था कि यदि भाजपा को उत्तर प्रदेश में आशातीत सफलता नहीं मिलती और वह सरकार बनाने में रह जाती है तो राव राजा अपने उन कांग्रेसी मित्रों के सहारे जो आज भाजपा में सांसद हैं को लेकर हरियाणा की राजनीति में कोई बड़ा धमाका कर वाले थे । 10 मार्च को ऐसा विस्फोट होने की बात उनके चेले चपाटो द्वारा की जा रही थी। यह भी सुनने आ रहा है कि 5 व 6 सांसद उनके संपर्क में है। उनके कांग्रेसी मित्रों के साथ आज भी मधुर संबंध है। सभी मिलकर कोई नया संगठन या क्षेत्रीय दल बना सकते हैं। इसके लिए उन्हें जाट नेता विरेंद्र सिंह डूमरखा का भी सहयोग मिल सकता है। पंजाब में आप पार्टी को मिली सफलता के बाद वह अब केजरीवाल से याराना काटने जा रहे हैं, ऐसी चर्चा जोरों पर है। (हमने कल के आलेख में उनके आप पार्टी में जाने को लेकर लिखा था)। यदि ऐसी परिस्थिति बनती है तो भाजपा के साथ साथ कांग्रेस, दूसरे क्षेत्रीय दलों को भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। यह दिगर बात है की चौधरी ओम प्रकाश चौटाला की इनेलो से उनका गठबंधन भी हो जाए।

पर उत्तर प्रदेश के साथ गोवा, मणिपुर तथा उत्तराखंड के चुनावी परिणाम मैं आज जबरदस्त सफलता ने पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे लोगों को थोड़ा सोचने पर विवश अवश्य कर दिया। उनके चाहने वालों का कहना है कि भले ही उनकी यह कूटनीतिक चाल राजनीतिक विश्लेषकों को थोड़ा अटपटी जरूर लगी होगी पर इस चाल के पीछे निश्चित ही कोई गहरी रणनीति अवश्य छुपी है। मुख्यमंत्री की तरफ यकायक दोस्ती का हाथ बढ़ाना और उनकी प्रशंसा करना उनका आत्मबोध है या विवशता या रणनीति इसका खुलासा आने वाला ही समय करेगा?

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