सुरेश गोयल धूपवाला, ……..मीडिया प्रभारी, निकाय मंत्री डॉ कमल गुप्ता,

राजस्थान के सीकर जिले के रिंग्स शहर के समीप स्थित श्री खाटू श्याम धाम का वार्षिक मेला 6 मार्च से शुरू होकर 15 मार्च तक चलेगा। जिसकी व्यापक तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू हो चुकी हैं। फाल्गुन चैत्र मास में लगने वाला यह मेला फाल्गुनी मेले के नाम से भी जाना जाता है। मेले का प्रबंधन खाटूधाम समिति व सीकर जिला प्रशासन करता है। पिछले 2 वर्षों में कोविड-19 महामारी के कारण यह मेला स्थगित रहा। परंतु इस वर्ष जोर-शोर से मेले की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। मेले में इस बार महामारी के मद्देनजर विशेष प्रबंधन किए गए हैं।  मेले में पहुंचने वाले श्याम भक्तों के लिए आवश्यक होगा कि वैक्सीन की दोनों डोज की प्रमाणिक कॉपी साथ रखें।

कोरोना सुरक्षा के कारण इस बार डीजे व भंडारे आदि पर भी रोक रहेगी। धाम में इस बार 18 स्थानों पर मेडिकल टीम की भी व्यवस्था की गई है। इस बार रथ यात्रा की लंबाई को भी बहुत छोटा किया गया है। लोग कम से कम रथ यात्रा में जाएं, ऐसी व्यवस्था प्रशासन ने इस बार की है। ऐसी व्यवस्था भी की गई है कि जिग जैग से गुजरना पड़ेगा। बाबा श्याम के दर्शनार्थ श्रद्धालुओं को 16 किलो मीटर लंबी लाइन से गुजरना पड़ेगा। ऑनलाइन पंजीकरण करवाना आवश्यक नहीं होगा। श्रद्धालुओं के लिए रिंग्स से खाटू धाम तक पदयात्रा, दण्डवत यात्रा और निशान यात्रा के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं।

यदि पिछले दो वर्षों के कोरोना काल को छोड़ दिया जाए तो श्री खाटू श्याम धाम में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। देश के महानगरों सहित सभी स्थानों से भारी संख्या में लोग खाटू श्याम पहुंचते हैं। अब तो फाल्गुनी मेले में ही नहीं महीने की हर ग्यारस व आए दिन यहां भक्त पहुंचते हैं। जगह-जगह भंडारे, दंडवत यात्रा, हाथो में ध्वज लिए भक्त, भजन गाते व भंगड़ा करते भक्त के चलते ऐसा माहौल बना रहता है कि आस्तिक तो क्या नास्तिक व्यक्ति का हृदय भी भक्तिमय हुए बैगर नहीं रह सकता। कई बार तो ऐसा लगता है कि खाटू नगरी में ही अपना बसेरा डाल लें। 

श्याम भक्त पूजनीय आलूसिंह जी महाराज

बाबा खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा होना बताया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बाबा श्याम पाण्डव पुत्र भीम के पौत्र थे । बाबा श्याम की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित होकर भगवान श्री कृष्ण ने उनको कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था। बाबा श्याम को कलयुगी अवतार भी कहा जाता है। अपने भक्तों के कष्टों का निवारण व हारे को सहारा आस्थावानों को एक विशेष शक्ति, मनोबल ओर आत्म विश्वास को जागृत करता है। 

यदि हम 50-60 वर्ष पीछे जाएं तो आज की तुलना में स्थितियां पूरी तरह बदली हुई नजर आएगी। 65-70 के दशक की यादें आज भी स्मृति पटल पर अंकित हैं।

पिता जी कट्टर श्यामभक्त थे। नगर में बहुत कम ही श्याम परिवार हुआ करते थे। जो अंगुलियों में गिने जा सकते थे। वे प्रति वर्ष फाल्गुन मेले के अवसर पर परिवार व श्याम प्रेमियों के साथ ग्रुप बनाकर रेलगाड़ी द्वारा खाटू श्याम जाया करते थे।  रेल रेवाड़ी स्टेशन पर बदलनी पड़ती थी। कई-कई घण्टे रिंग्स जाने वाली रेलगाड़ी का इंतजार करना पड़ता था। इसके चलते यह बड़ी थकाऊ और उबाऊ यात्रा होती थी। एक प्रकार से वह एक तपस्या ही थी, परंतु श्यामभक्तो के लिए तो यह आनन्द भरे क्षण होते थे । पूरे रास्ते श्याम स्तुति करते जाते थे। यहां से नवीं को जाते व बारस को वापिस निकलते थे। 2 रात्रि वहीं खाटू श्याम में रुकते थे। ग्यारस को श्याम बाबा की भव्य रथ यात्रा निकलती थी व रात्रि को जागरण का कार्यक्रम होता था। बारस को धोक लगती थी। दर्शन सीधे होते थे किसी भी प्रकार की कोई पंक्तिया नहीं लगानी पड़ती थी। चूरमे का प्रसाद लगाया जाता था, जो बाजार से आटा घी आदि खरीद कर महिलाएं स्वयं तैयार करती थी। आज की तरह बड़े-बड़े होटल और धर्मशालाएं नही थी। गांव के ही कच्चे घरों में निवास करते थे। आज की तरह बड़े-बड़े मॉल व शोरूम टाइप की बड़ी दुकाने नहीं थी। मेले के अवसर पर सड़कों पर लकड़ी के खोखों में छोटी-छोटी दुकानें लगती थी या रेहडिय़ों व सड़क किनारे सामान बेचा जाता था।

मंदिर के महंत व परम श्याम भक्त पूजनीय आलूसिंह जी महाराज उस समय भक्तों में बहुत ही लोकप्रिय रहे वे मोरछड़ी से सभी भक्तों को शुभ आशीर्वाद देते थे। मै यहां रेवाड़ी के परम श्याम भक्त श्याम बहादुर का भी जिक्र करना चाहूंगा। भक्तों की उनमे बड़ी आस्था रही। उनके दर्शनों के लिए श्रद्धालु हमेशा ललायित रहते थे। वर्षों बाद भी उनका नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।

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