डॉ मीरा सहायक प्राध्यापिका चंद्रशेखर आजाद अक्सर गुनगुनाया करते थे दुश्मनों की गोलियों का हम निडरता के साथ सामना करेंगे। हम आजाद ही रहे हैं और आजाद ही रहेंगे। चाहे कुछ भी हो जाए जिंदा अंग्रेजों के हाथ कभी नहीं आएंगे। जब 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर को चारों ओर से घेर लिया तो उन्होंने अकेले ही ब्रिटिश सैनिकों का डटकर मुकाबला करते हुए अपनी रिवाल्वर की आखिरी गोली स्वयं पर चलाकर मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर यह साबित किया कि वे एक वीर, साहसी और क्रांतिकारी थे । उन्होंने अंग्रेजों के हाथों आने की बजाय स्वयं ही अपने जीवन को खत्म करना चुना। चंद्रशेखर इतने निडर थे कि उनकी मौत के बाद भी अंग्रेज और पुलिस उनकी लाश के पास जाने से भी डर रहे थे ।ऐसे अद्भुत योद्धा क्रांतिकारी के बारे में जितना कहा जाए वह कम ही होगा। 1906 में जन्मे चंद्रशेखर मात्र 25 साल की उम्र में शहीद होने वाले देशभक्त, अपनी मूछों का ताव और चेहरे पर तेज, आंखों से बेखौफ, निडर दमदार और दबंग व्यक्तित्व के धनी चंद्रशेखर बचपन से ही गांधीजी से प्रभावित होकर मात्र 14 वर्ष की आयु में असहयोग आंदोलन में कूद पड़े थे।जब इस आंदोलन में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया तो मजिस्ट्रेट के पूछने पर चंद्रशेखर ने अपना स्वयं का नाम आजाद और अपने पिता का नाम स्वतंत्रता तथा पता और निवास स्थान जेल खाने को बताया। उनकी कम आयु होने के कारण जब मजिस्ट्रेट ने उन्हें जेल की सजा न सुना कर, 15 कोड़ों की सजा सुनाई तो चंद्रशेखर ने प्रत्येक कोड़े की मार के साथ वंदे मातरम् और भारत माता की जय बोला। यह घटना बताती है कि वे बचपन से ही अटूट देश प्रेमी थे और इस घटना के बाद उनका नाम चंद्रशेखर तिवारी से चंद्रशेखर आजाद पड़ गया। चंद्रशेखर आजाद एक अचूक निशानेबाज और वेश बदलने में प्रखर थे। भगत सिंह सुखदेव व राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए भी उन्होंने काफी प्रयास किए। अचानक गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन बंद कर देने के कारण चंद्रशेखर आजाद की विचारधारा में बदलाव आया और वे राम प्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ जुड़ गए और वे इस संगठन के लिए सरकारी खजाने से धन लूटने वालों में सबसे सक्रिय माने जाते थे। चंद्रशेखर आजाद मानते थे कि संगठन की क्रांति के लिए और इसको सक्रिय रखने के लिए धन जुटाना अति आवश्यक है और वे यह भी मानते थे कि अंग्रेजी सरकार जिस धन पर राज कर रही है वह धन असल में हम भारतीयों का ही है इसलिए उन्होंने सरकारी खजाना लूट कर अपने क्रांतिकारी संगठन को वित्तीय रूप से मजबूत करना उचित समझा। सांडर्स वध, सेंट्रल असेंबली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना,वायसराय के ट्रेन बम से उड़ाने की चेष्टा और काकोरी कांड में वे बहुत ही सक्रिय रहे थे। उनका विचार था कि यदि कोई युवा मातृभूमि की सेवा नहीं करता तो उसका जीवन व्यर्थ है। चंद्रशेखर आजाद कहते थे कि अंग्रेजों द्वारा इतने अत्याचार और प्रताड़ना सहने के बाद भी जिस भारतीय का खून नहीं खोल रहा, वह खून नहीं पानी है और जो देश के काम नहीं आ पाए ऐसी जवानी भी बेकार है। वे कहते थे कि मेरी माता भारत माता है । चंद्रशेखर के ऐसे क्रांतिकारी विचार थे कि- मैं आजाद हूं। चिंगारी आजादी की सुलगी मेरे जशन में है। इंकलाब की ज्वाला लिपटी मेरे बदन में है। मौत जहां जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है। कुर्बानी का जज्बा जिंदा मेरे कफन में है। ऐसे बेमिसाल चंद्रशेखर आजाद ने आत्म बलिदान कर वीरता और निडरता की नई परिभाषा दी। उनकी शहादत के 16 वर्षों के बाद आजाद भारत का सपना हकीकत में तो बदल गया लेकिन अफसोस कि वे आजाद चंद्रशेखर आजाद भारत को अपने जीते जी नहीं देख सके। भारत देश अपने उस सच्चे देशभक्त चंद्रशेखर आजाद को और मातृभूमि की रक्षा के लिए उनके आत्मबलिदान को हमेशा याद करता रहेगा। Post navigation गरीब और मध्यम वर्ग के लिए वरदान साबित होगी डिजिटल यूनिवर्सिटी! खेती में महिला किसानों के अदृश्य हाथ