एकजुटता और गंभीर प्रयासों से हमें सफलता मिलेगी-लखावत जयपुर 20 फरवरी। वरिष्ठ साहित्यकार एवं मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी फारूक आफरीदी ने कहा है कि राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए संगठित प्रयास करने होंगे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए वर्षों पहले विधानसभा में सर्व सम्मति से संकल्प पारित करवाकर केन्द्र को भिजवा दिया था लेकिन आज तक इस पर निर्णय नहीं लिया जा सका है। राज्य की जनता ने लोकसभा के लिए 25 सांसद चुनकर भेजे। राज्य सभा के सांसद भी हैं किन्तु राजस्थानी भाषा का संविधान की 8वीं अनुसूची में दर्ज नहीं हो पाना चिंता की बात है। इसमें कहीं राजनीति आड़े नहीं आनी चाहिए क्योंकि इससे राजस्थान के लोगों को मान-सम्मान मिलेगा और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। हमें मान्यता की मांग के साथ राजस्थानी में निरन्तर उत्कृष्ट साहित्य सृजन भी जारी रखना होगा और इस भाषा की पत्र-पत्रिकाओं को भी समर्थन एवं सहयोग देना होगा। केन्द्र की नई शिक्षा नीति में भी मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर दिया गया है तो राजस्थानी भाषा को मान्यता देने में अब और अधिक विलम्ब नहीं किया जाना चाहिए। आफरीदी रविवार को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर राजस्थानी मोट्यार परिषद् के तत्वावधान में राजस्थान विश्वविद्यालय के देराश्री सदन में आयोजित दो दिवसीय राजस्थानी संसद की अध्यक्षता कर रहे थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व राज्यसभा सांसद ओंकारसिंह लखावत थे। लखावत ने कहा कि 8 से 10 करोड़ राजस्थानी लोग देश और दुनिया में बसे हुए हैं। राजस्थानी को मान्यता देने से हिन्दी समृद्ध होगी। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के वर्ष 1984 के सम्बोधन का हवाला देते हुए बताया कि उन्होंने कहा था-राजस्थानी भाषा को प्रोत्साहन दिया जाए। इसमें आशीर्वाद की क्या बात है? प्रोत्साहन तो मिलना ही चाहिए। प्रोत्साहन के पक्ष में मैं खुद हूं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कथन को भी उदृत किया-‘‘इसे मान्यता मिलती है तो हिन्दी का कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि विश्व साहित्य में हिन्दी का विस्तार होगा। मैं मन से चाहता हूं कि राजस्थानी को मान्यता मिले। संसद में जब यह मामला मान्यता के लिए आएगा तो मैं और मेरी पार्टी के लोग इसका समर्थन करेंगे।‘‘ इस अवसर पर संस्था के अध्यक्ष डॉ. शिवदानसिंह जोलावास, प्रमुख रंगकर्मी जितेन्द्र जालोरी, युवा कथाकार एवं पत्रकार तसनीम खान, कथाकार विनोद स्वामी, मनोज स्वामी, फिल्मकार सुरेश मुद्गल ने भी विचार व्यक्त किए। इस सेमीनार में प्रदेश के सभी सम्भागों के प्रतिनिधि और साहित्यकार मौजूद थे। राजस्थानी संसद में सोमवार को भी राजस्थानी भाषा पर चर्चा होगी। Post navigation भगवान परशुराम की शिक्षा….राजा का धर्म वैदिक जीवन दर्शन का प्रसार करना: शंकराचार्य नरेंद्रानंद मास्क के साये में चलती रही सियासत अधिकारी बने तमाशबीन —– आरती राजपूत