जिस चंपारण के लिये लड़े वहीं बापू की मूर्ति तोडी,चरखे को भी नुकसान
जब तक दुनिया है तब तक रहेंगे गाँधी के पांव, चल पड़े जिधर दो डग मग में।
चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी को चिह्नित करने के लिए स्थापित की गई प्रतिमा।
जिला प्रशासन ने संबंधित एजेंसी को महात्मा गांधी की प्रतिमा का जीर्णोद्धार कराने का निर्देश दिया।
सभी राजनीतिक दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने घटना की निंदा की।

अशोक कुमार कौशिक

 बिहार के मोतिहारी जिले के पूर्वी चंपारण में कुछ असामाजिक तत्वों ने महात्मा गांधी की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर दिया। बता दें कि नगर थाना से करीब 200 मीटर दूर स्थित चरखा पार्क में गांधी जी की प्रतिमा लगी हुई थी। उनकी प्रतिमा और चरखे को क्षतिग्रस्त कर दिया। मगर उस प्रतिमा के कदम नहीं उखड़े। इन कदमो की मज़बूत पकड़ ही, गांधी की प्रासंगिकता है और वह बनी रहेगी। कुछ लोग इन कदमो की दृढ़ता से गांधी के जीवन काल मे भी असहज थे और आज, उनकी हत्या हो जाने के 75 साल बाद अब भी असहज हैं। वे अपनी चिढ़ और कुंठा, इसी तरह से निकाल सकते हैं, और निकालते रहते हैं।


वहीं घटना को लेकर वहा के स्थानीय लोगों में काफी आक्रोश है। बिहार के मोतिहारी जिले के पूर्वी चंपारण में बीते सोमवार को जब असामाजिक तत्वों के दुस्साहस की सूचना स्थानीय प्रशासन को मिली तो अफरातफरी मच गई।

मोतिहारी के डीएम शीर्षत कपिल अशोक, एसपी डां कुमार आशीष और एसडीएम मौके पर पहुंचे। मामले में आरोपितों को जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया है। पुलिस के अनुसार, चरखा पार्क में महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी को चिह्नित करने के लिए स्थापित की गई प्रतिमा गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई थी।

पूर्वी चंपारण के पुलिस अधीक्षक (एसपी) डॉ कुमार आशीष ने कहा, “हमने पहले ही इस कृत्य में शामिल एक व्यक्ति की पहचान कर ली है और अन्य आरोपियों की तलाश जारी है।” उन्होंने कहा, “मामले में आगे की जांच जारी है।” पुलिस ने आईपीसी की धारा 295 और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है।

सभी राजनीतिक दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने घटना की निंदा की। जिला प्रशासन ने संबंधित एजेंसी को महात्मा गांधी की प्रतिमा का जीर्णोद्धार कराने का निर्देश दिया है। पूर्वी चंपारण के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) शिरसत कपिल अशोक ने कहा, “शीघ्र ही एक नई प्रतिमा स्थापित की जाएगी।” दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। बता दें कि भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने चरखा पार्क में महात्मा गांधी की प्रतिमा लगवाई थी।

ये गोडसेवादी नहीं जानते कि गाँधी के पांव अब इस धरती से कभी नहीं उखड़ पाएंगे। जब तक ये दुनिया है तब तक गाँधी के पदचिन्ह धरती के हर कोने पर अमिट रहेंगे। जहां जहां सत्य,अहिंसा,स्वतंत्रता के लिये कोई एक भी क़दम उठाएगा उसका पहला क़दम गाँधी के रास्ते पर ही होगा।

खंडित प्रतिमा का यह चित्र महात्मा के दृढ़ संकल्पित विचार का प्रतीक है। चंपारण से गांधी के आंदोलन, सत्य अहिंसा और अंग्रेजी राज के खिलाफ प्रबल जन प्रतिरोध का आगाज़ हुआ था। 

प्रसंगवश:
ये वही चंपारण है जहां गाँधी जी क़रीब सौ बरस से भी पहले 1917 में नील की खेती करने वाले किसानों के लिये आंदोलन करने पहुंचे थे। चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को किसानों पर हो रहे अत्याचार के बारे में बताने पहले लखनऊ फिर कानपुर और अंत में अहमदाबाद तक पीछा किया। गाँधी ने लिखा है कि इससे पहले उन्होंने चंपारण का नाम भी नहीं सुना था।

शुक्ल जिद पर अड़े थे कि उन्हें चंपारण आकर किसानों का दर्द सुनना चाहिये। अंततः 1917 के अप्रेल महीने में गाँधी जी तैयार हो गए। गाँधी ने लिखा- ‘इस अगढ़, अनपढ़ लेकिन निश्चयी किसान ने मुझे जीत लिया।’ गाँधी जी ने कहा कि मैं कलकत्ता आ रहा हूँ मुझे लेने आ जाना। राजकुमार शुक्ल गाँधी जी को लेने कलकत्ता पहुंच गए और दस अप्रेल 1917 को उन्हें लेकर पटना आये। गाँधी ने 15 अप्रेल को चंपारण में पहली बार क़दम रखा। 

किसानों को साथ लेकर गाँधी ने आंदोलन छेड़ा और अंततः पहली बार अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका से वापसी के बाद गाँधीजी का भारत में अहिंसा और सत्याग्रह का यह पहला प्रयोग था।

निलहे गोरे जमीदारों के शोषण के खिलाफ, चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल के कहने पर गांधी चंपारण गए थे। दोनो की यह मुलाकात, कांग्रेस के 1916 के लखनऊ अधिवेशन में हुयी थी। चंपारण में गांधी गए। अपनी बात कही। गांधी अपने कुछ जानकार मित्रों और सलाहकारों से गांवों का भ्रमण कराकर किसानों की हालत जानने की कोशिश करते रहे और फिर उन्हें जागरूक करने में जुट गए। 

सत्याग्रह की पहली विजय का शंखनाद और गांधी की बढ़ती लोकप्रियता ब्रिटिश  राज को अखरने लगी थी। उनकी उपस्थिति को सरकार ने शांति व्यवस्था के लिये खतरा बताया। उन्हें समाज में असंतोष फैलाने का आरोप लगाकर चंपारण छोड़ने का आदेश दिया गया। पर गांधी ने कब ऐसे आदेशो को माना था कि वे इस सरकारी आदेश को मानते ! गांधी जी ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया। वे गिरफ्तार कर लिये गए। अदालत में सुनवाई के दौरान गांधी के प्रति व्यापक जन समर्थन को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने उन्हें बिना जमानत छोड़ने का आदेश दे दिया, लेकिन गांधी जी अपने लिए कानून अनुसार उचित सजा की मांग करते रहे। उन्होंने जुर्म स्वीकार किया। बाद में वे रिहा कर दिये गए। 

एक आंदोलन चला। डॉ राजेंद्र प्रसाद सहित बिहार के अनेक नेता उंस आंदोलन में शामिल हुए। गांधी तब उनके लोकप्रिय भी नही हो पाए थे। लोग उन्हें, देख और परख रहे थे। वे भी देश और जनता का मूड भांप रहे थे। अंत मे निलहे गोरे जमीदारों के शोषण का अंत हुआ। यह तब का किसान आंदोलन था। दक्षिण अफ्रीका की ब्रिटिश हुकूमत, गांधी के इस नायाब प्रतिरोध का स्वाद चख चुकी थी, पर भारत के लिए यह एक नयी बात थी। चंपारण ने सारे भारत का ध्यान अपनी ओर खींचा। ब्रिटिश सरकार झुकी और चंपारण की समस्याओं के लिये एक आयोग बना। गांधी जी को भी इसका सदस्य बनाया गया। सार्थक परिणाम सामने आने लगे थे। 

गांधी के यह कदम यूं ही छोड़ दिये जाने चाहिए। यह कदम उनकी दृढ़ता और लक्ष्य की ओर संकल्पशक्ति से बढ़ते जाने के प्रतीक हैं। यह कदम उन अज्ञानी और कुंठित गांधी विरोधियों को असहज भी करते रहेंगें। गांधी अपने विरोधियों के लिये हृदयपरिवर्तन की बात करते थे। वह नैतिकता की बात करते थे। इतिहास में हृदय परिवर्तन के कुछ उदाहरण मिलते भी हैं। क्या पता उस खंडित प्रतिमा के यह दृढ़ चरण, उनमे कुछ प्रायश्चित बोध भी जगा दें। न भी जगा सकें तो, यह चरण गांधी के अपराजेय संकल्प की याद आने वाली पीढ़ी को तो कम से कम दिलाते ही रहेंगे। 

क्या विडंबना है, जिसके आदर्शों, सिद्धांतों और नीतियों ने दुनियाभर के अनेक दबे कुचले शोषित और गुलाम देशों को साम्राज्यवाद से मुक्ति का मंत्र दिया वह अपने ही देश मे कुछ सिरफिरों के षड़यंत्र और मूर्खता भरे प्रतिशोध का बार बार शिकार बनता है। उसी चंपारण में गांधी की प्रतिमा तोड़ दी गई। पर चंपारण की धरती पर आज से सौ साल से भी पहले पड़े गांधी के दृढ़ कदम अब भी उसी तरह जमे हैं। गांधी एक विचार हैं। जिस गांधी ने दुनिया के सबसे विशाल और समर्थ साम्राज्य को अपने कदमो पर झुका दिया था, उन कदमो को उखाड़ना आसान भी नहीं है। ‘चल पड़े जिधर दो डग मग मे, चल पड़े कोटि पग उसी ओर !’
नमन बापू प्रणाम बापू
तुम हो तो हम हैं, तुम हो तो सब है।

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