कमलेश भारतीय

पंजाब में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी बाड्रा प्रचार के लिए आईं तो मंच पर मौजूद पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने इशारे से जनसभा को संबोधित करने से साफ इंकार करते चन्नी की ओर इशारा किया कि इन्हें ही बुला लीजिए । न सुनील जाखड़ ने संबोधित किया जनसभा को । यह तस्वीर है कांग्रेस की एकजुटता की चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के बाद । लुधियाना में सिद्धू की मौजूदगी में राहुल गांधी ने चन्नी को मुख्ययंत्री का चेहरा घोषित किया था और वह भी नवजोत सिद्धू के साथ आधे घंटे की बैठक में समझाने के बाद और यह उम्मीद जाहिर की थी कि सभी नेता मिल कर कांग्रेस के लिए काम करेंगे लेकिन यह बात साफ हो गयी कि सभी नेता एकसाथ मिल कर काम नहीं कर रहे बल्कि सभी के सभी दर्शनी घोड़े मात्र हैं जिन्हें कांग्रेस रेस के घोड़े मान बैठी है । इसीलिए ये पंक्तियां याद आईं :

न जी भर के देखा , न कुछ बात की
बड़ी आरजू थी मुलाकात की ,,

पंजाब प्रदेश कांग्रेस में सब कुछ ठीक चल रहा था और सिर्फ छह माह पहले कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार को पलटने में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने नवजोत सिद्धू का साथ दिया था और कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा था कि ये दोनों भाई बहन अभी बच्चे हैं और राजनीति नहीं समझते । यही नहीं राहुल बिना कैप्टन को मिले शिमला चले गये थे । आज शायद प्रियंका को यह बात याद आई हो ।

बेशक प्रियंका ने कैप्टन पर आरोप लगाया है कि वे भाजपा के इशारे पर कांग्रेस की सरकार चला रहे थे और अब भाजपा से समझौता करके यह बात साबित भी हो गयी । इनके बाद गरीब घर के बेटे चन्नी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया । प्रियंका ने गुजरात व दिल्ली के राजनीति के माॅडल पर भी सवाल उठाते कहा कि सौ दिन में इतने काम करने वाली सरकार चाहिए या सिर्फ मुफ्त के वादों वाली सरकार चाहिए ? हालांकि अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि सर्वे में चन्नी अपनी दोनों सीटों से चुनाव हारते दिखाई दे रहे हैं ।

पंजाब में कांग्रेस असल में छह माह रहते आपसी फुटोबल में ही उलझ कर रह गयी । कभी नवजोत सिद्धू अधिकारियों को हटवाने को प्रतिष्ठा का सवा बना बैठे तो कभी इस्तीफा देने की घोषणा कर बैठे । सुनील जाखड़ को अपना दर्द है कि जब 42 विधायक उनके पक्ष में थे मुख्यमंत्री बनाने के मुद्दे पर तब अंबिका सोनी ने यह क्यों कह दिया कि पंजाब में कोई हिन्दू मुख्यमंत्री स्वीकार नहीं होगा और इस तरह उनका समर्थन किसी काम न आया । जिस सिद्धू ने इस आशा में कैप्टन को बाहर करवाया कि उनके बाद उसी के सिर पर ताज रखा जायेगा , वह देखते देखते चन्नी के सिर पर रख दिया गया और वे देखते ही रह गये राजनीति के रंग । अब साफ है कि कांग्रेस न चुनाव से पहले एकजुट है और न ही चुनाव के बाद एकजुट रहेगी । इसमें सिद्धू की ओर से कोई न कोई दलबदल की आशंका रहेगी । सुनील जाखड़ तो चुनाव ही नहीं लड़ रहे हैं । वे इतने आहत हुए कि चुनाव से ही दूर जा बैठे । इस तरह एक अच्छी भली चल रही सरकार को खुद अपने हाथों ही खतरे में डाल लिया और जो भाजपा जमीन पर कहीं पर न थी, उसे कैप्टन अमरेंद्र का साथ मिल गया ऊपर से राम रहीम की पैरोल क्या गुल खिलायेगी ?
इस तरह कांग्रेस का दृश्य देखा जा सकता है ।
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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