दलहन फसलें जल संरक्षण के साथ भूमि की उर्वरा शक्ति में भी करती हैं बढ़ोतरी : प्रोफेसर बी.आर.काम्बोज

अंतरराष्ट्रीय दलहन दिवस के उपलक्ष्य में दलहन फसलों की उन्नत उत्पादन तकनीक विषय पर वेबिनार आयोजित

हिसार : 11 फरवरी – चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर.काम्बोज ने कहा कि दलहन फसलों से न केवल जल संरक्षण होता है बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति में भी बढ़ोतरी होती है। दलहन फसलों की जड़ों में गांठें होती हैं जिसमें राइजोबियम बेक्टेरिया होता है जो वातावरण से भूमि को नाइट्रोजन प्रदान करता है। वे अंतरराष्ट्रीय दलहन दिवस के उपलक्ष्य में दलहन फसलों की उन्नत उत्पादन तकनीक विषय पर आयोजित वेबिनार में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। वेबिनार का आयोजन आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के दलहन अनुभाग की ओर से किया गया था।

मुख्यातिथि ने कहा कि फसल विविधिकरण में भी दलहन फसलों की अह्म भूमिका है। इससे जमीन की ताकत बरकरार रहती है। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में दलहन फसलों का हरियाणा में क्षेत्रफल कम हो गया है, जिसके चलते प्रदेश में दलहन उत्पादन कम हो गया है। महिलाओं व बच्चों के लिए दालें बहुत ही लाभदायक होती हैं, क्योंकि इनमें प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है जो उनके शारीरिक व मानसिक विकास में सहायक हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे ऐसी दलहन किस्मों को विकसित करें जो एक साथ पककर तैयार हो जाएं जिससे किसानों को बार-बार कटाई व कढ़ाई पर अधिक खर्च न करना पड़े। उन्होंने कहा कि एचएयू दलहन फसलों के प्रजनन का देशभर के अग्रणी केंद्रों में से एक है जिसने सभी दलहन फसलों के लिए समग्र सिफारिशें तैयार की हैं। साथ ही विभिन्न उन्नत किस्मों को विकसित करने के लिए विश्वविद्यालय निरंतर जुटा हुआ है जिसके तहत रोगरोधी, अधिक उत्पादन देने वाली व जल्दी पककर तैयार होने वाली किस्मों को विकसित किया जा रहा है।

अभी तक विकसित कर चुके हैं दलहन की 35 उन्नत किस्में
एचएयू वैज्ञानिकों ने अभी तक दलहन की कुल 35 किस्में विकसित की हैं जिनमें मूंग की सात किस्मों को विकसित किया है जो अधिक पैदावार देती हैं और देशभर में इनकी बहुत अधिक मांग है। इसके अलावा चने की 14 किस्में, दाना मटर की आठ किस्में, मसूर की तीन किस्में, अरहर की दो किस्में और एक किस्म उड़द की विकसित की है जो देशभर के किसानों में बहुत प्रसिद्ध हैं। कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एस.के. पाहुजा ने बताया कि हरित क्रांति के बाद साल दर साल दलहन फसलों का उत्तर भारत में उत्पादन क्षेत्र कम हो रहा है क्योंकि सिंचित क्षेत्रों में अधिक उत्पादन हासिल करने की होड ने इनके क्षेत्र को कम कर दिया है। दलहन अनुभाग से डॉ. राजेश यादव ने बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए दलहन फसलों की विभिन्न उन्नत किस्मों और उनके लिए अपनाई जाने वाली सस्य क्रियाओं के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने किसानों को दलहन फसलों संबंधी समस्याओं और निदान के बारे में बताया। साथ ही दालों की विशेषताओं को लेकर भी चर्चा की जो संतुलित पोषण के लिए अत्याधिक आवश्यक है। इस वेबिनार में विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, अधिकारीगण, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं किसान शामिल हुए।

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