-कमलेश भारतीय

मित्रो । जिंदगी के पहले पुरस्कार का हश्र क्या हुआ ? बताता हूं । पंजाब के एक समाचार पत्र ने सन् 1972 में लघुकथा प्रतियोगिता की घोषणा की । मैने अपनी रचना आज का रांझा भेज दी । पुरस्कारों की घोषणा हुई । मेरी लघुकथा को प्रथम पुरस्कार मिला और एक टिपण्णी प्रशंसा भरी ।

मैं समाचार पत्र के कार्यालय गया । पहली बार संपादक महोदय के दर्शन हुए । उन्होंने प्रेमपूर्वक पूछा कि पुरस्कार की राशि मिली ? मैने कहा कि नहीं।

वे मुझे मालिक के ऑफिस में ले गये और परिचय करवाया । फिर बोले कि अकाउंटेंट से पुरस्कार राशि दिलवा दूं ? मालिक ने स्वीकृति दे दी ।

अकाउंटेंट से राशि लेकर एक पुलक सी महसूस की । मैने साहित्य संपादक महोदय से कहा कि आइए , चाय का कप । सेलिब्रेट कर लेते हैं । बोले : इतनी गर्मी है युवा कथाकार । बीयर लेते हैं।

दफ्तर के सामने ही होटल था । अंदर गये । बीयर का ऑर्डर । आमलेट । छोटे छोटे घूंट के बीच कहा : युवा कथाकार अभी और प्रतियोगिताएं होंगी । रचनाएं भेजते रहना । समझ रहे हो न ?

बिल आया । मैने पुरस्कार राशि रख दी । तीन रुपये वापस आये । बैरे को टिप के रूप में देकर मैं बाहर आ गया ।
पुरस्कार के लिए फिर मेरा कोई रचना भेजने का मन नहीं हुआ ।

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