गांधीजी अब अकेले नहीं! हरियाणा सरकार के आदेश
30 जनवरी को सभी कार्यालयों में आजादी के शहीदों के लिए मौन रखें; राष्ट्रपिता का जिक्र नहीं
30 जनवरी 2022 को, महात्मा गांधी की शहादत के दिन “मैंने गांधी को क्यों मारा” नाम की कोई फिल्म ऑनलाइन रिलीज ?
लाखों की संख्या में लाठी गोली से लैस पुलिस रखने वाली सरकार चाहती है कि उसके खिलाफ हो रहे आंदोलन उग्र न होकर गांधीवादी तरीके से हो।

अशोक कुमार कौशिक  

खबर है कि 30 जनवरी 2022 को, महात्मा गांधी की शहादत के दिन “मैंने गांधी को क्यों मारा” नाम की कोई फिल्म ऑनलाइन रिलीज की जा रही है। जब सारा देश व दुनिया इस शोक व प्रायश्चित भाव से भरी होगी होगी कि आज के ही दिन गांधी की हत्या हुई थी, एक फिल्म दिखाने की योजना है कि जो इस हत्या का औचित्य बताएगी। यह सोच ही कितनी विकृत है कि किसी की हत्या का औचित्य बताया जाए; और वह भी गांधी जैसे व्यक्ति की हत्या का जिसे ईसा व बुद्ध के समकक्ष हम ही नहीं, सारा संसार मानता है।

 महात्मा गांधी की हत्या के उतने ही वर्ष हो रहे हैं जितने वर्ष हमारी आजादी के हो रहे हैं। इतने वर्ष पहले जो आदमी मारा गया, उसके हत्या का औचित्य प्रमाणित करने की आज जरूरत क्यों आ पड़ी है ? इसलिए कि जिन लोगों ने, जिस विचारधारा से प्रेरित हो कर गांधी को मारा वे खूब जानते हैं कि उनकी तीन गोलियों से वह आदमी मरा नहीं। वे हैरान व परेशान हैं कि इस आदमी को मार सके, ऐसी गोली बनी ही नहीं क्या? कोई ऐसी कब्र खोदी क्यों नहीं जा सकी जो उनके विचारों को दफ़ना सके ? जवाब मिलता नहीं है और यह आदमी मरता नहीं है। इसलिए हत्यारों को उनकी हत्या का औचित्य बार-बार प्रमाणित व प्रचारित करने की जरूरत पड़ती है। और अब यह ज्यादा आसान हो गया है क्योंकि व्यवस्था व सरकार भी उस हत्यारी विचारधारा के साथ है।

 हम जो महात्मा गांधी के विचारों को मानते हैं, यह भी मानते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतत्रंता सबको समान रूप से मिलनी चाहिए। हमारे देश में सबके लिए सम्मान व अधिकार का जीवन सुनिश्चित होना चाहिए, इसी टेक के कारण तो गांधी की हत्या हुई थी। तो हम मानते हैं कि हत्यारों को भी अपनी बात कहने का वैसा ही अधिकार होना चाहिए जैसा हमें है। अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता के हामी हर व्यक्ति को ऐसी परीक्षा से कभी-न-कभी गुजरना होता ही है। लेकिन एक सवाल बचा रह जाता है कि क्या किसी को, किसी की हत्या का अधिकार भी है ? हमारा संविधान कहता है : नहीं, यह अधिकार किसी को, किसी भी स्थिति में नहीं है। हमारा संविधान राज्य को आदेश देता है कि हत्यारों को पकड़ो, उन्हें कानूनसम्मत सजा दो ! वही संविधान यह भी कहता है कि हत्या की साजिश भी अपराध है और हत्या का समारोह भी अपराध है। तो हत्या करना और फिर उस हत्या का औचित्य साबित करना संवैधानिक कैसे हो सकता है ? जवाब आज की व्यवस्था को और राज्य को देना है। देश देख रहा है कि व्यवस्था व सरकार हत्यारों के साथ खड़ी है कि संविधान के साथ खड़ी है ?  

हम हत्यारों की इस कोशिश का प्रतिवाद करते हैं, इसकी भर्त्सना करते हैं और देश को सावधान करते हैं कि यह लोकतंत्र की आड़ ले कर, यह लोकतंत्र को ही खत्म करने की चाल है। हम अपने इस प्रतिवाद के जरिए समाज व सरकार के अंतरमन को छूने की कोशिश कर रहे हैं। क्या हम इतने कृतघ्न हैं कि अपने राष्ट्रपिता के हत्यारों को मनमानी करने की ऐसी छूट दें कि वे राष्ट्रपिता के बाद, राष्ट्र के संविधान की भी हत्या कर दें ?  

हम सभी जानते हैं कि नाथूराम गोडसे और हिंदुत्व का उनका पूरा संगठन झूठ और अफवाहों की ताकत से ही चलता था, और चलता है। अब कौन नहीं जानता है कि नाथूराम द्वारा गांधी पर चलाई गोली भी और अदालत में दिया उनका तथाकथित बयान भी उनका अपना नहीं था ! नाथूराम को सामने रख कर सारा खेल पर्दे के पीछे से सावरकर व हिंदू महासभा खेल रही थी। अब वैसा ही खेल सत्ता की आड़ में खेला जा रहा है। हम जोर दे कर कहना चाहते हैं कि गलत इरादे से लिखी गई किसी भी किताब या फ़िल्म या गीत या नाटक या बयान या भाषण की अनुमति किसी को नहीं होनी चाहिए और हमें इन सबको नकारना चाहिए। 

गांधीजी अब अकेले नहीं:हरियाणा सरकार के आदेश
30 जनवरी को सभी कार्यालयों में आजादी के शहीदों के लिए मौन रखें; राष्ट्रपिता का जिक्र नहीं

हरियाणा में 30 जनवरी को अब अकेले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में शहादत देने वाले सभी शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन रखेगी। गुरुवार को इसको लेकर सरकार ने आदेश जारी किए कि सभी कार्यालयों में 11 बजे कर्मचारी 2 मिनट का मौन धारण कर शहीदों को याद करेंगे। इसको लेकर आदेश केंद्र सरकार के हैं, जिसको हरियाणा में लागू करने की हिदायत मुख्य सचिव ने जारी की है।

30 जनवरी भारतीय इतिहास का अहम दिन है। 1948 में इसी दिन नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। उनकी पुण्यतिथि को हर साल शहीद दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है। वैसे 23 मार्च को भी शहीद दिवस मनाया जाता है क्योंकि उसी दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी।

भाजपा ने उठाया है शहीदों की अनदेखी का मामलासवाल खड़ा हो रहा है कि गांधी जी की उपेक्षा की जा रही है या फिर उनके बहाने स्वतंत्रता आंदोलन के अन्य शहीदों को याद करने की नई परंपरा की शुरूआत हो रही है। बता दें हरियाणा भाजपा आरोप लगा रही है कि आजादी से जुड़े सभी शहीदों को पूरा मान सम्मान नहीं मिला। नेताजी सुभाष जयंती के अवसर पर प्रदेश भर में कार्यक्रम किए गए।

अब केंद्र के आदेश के बाद हरियाणा में नई शुरूआत हो रही है, जिसमें गांधी जी के साथ आजादी के संग्राम के अन्य शहीदों को भी याद किया जाना है। इसको लेकर गुरुवार को हरियाणा के मुख्य सचिव की ओर से सभी सरकारी कार्यालयों को निर्देश जारी किए गए हैं।

सरकार ने ये लिखा है अपने पत्र में
सरकार के पत्र में लिखा गया है कि उपरोक्त विषय पर मुझे आपका ध्यान भारत सरकार के पत्र क्रमांक 2/2/2022- Public दिनांक 07.01.2022 (प्रति सलग्न) की ओर दिलाते हुये यह कहने का निर्देश हुआ है कि भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया था, उन शहीदों की स्मृति में दिनांक 30 जनवरी 2022 को पूर्वाह्न 11 बजे दो मिनट का मौन धारण किया जाए।

सरकार के सभी कार्यालयों में कार्यक्रम
अतः यह कार्यक्रम हरियाणा सरकार के सभी कार्यालयों (चंडीगढ स्थित कार्यालय भी शामिल) में करवाना सुनिश्चित किया जाए। इसके अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा यह भी निर्देश दिये गये है कि शहीदी दिवस के अवसर पर कोविड-19 के सम्बन्ध में समय-2 पर जारी की गई हिदायतों तथा मानक संचालन प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन किया जाए।

पत्र में राष्ट्रपिता का जिक्र नहीं

सरकार की ओर से 30 जनवरी के कार्यक्रम को लेकर जो पत्र जारी किया गया है, उसमें राष्ट्रपिता की शहादत या श्रद्धांजलि को लेकर एक शब्द नहीं लिखा गया है। केंद्र की ओर से जारी पत्र में क्या है, इसको लेकर अभी सामने नहीं आया है। इतना पक्का है कि अब 30 जनवरी अकेले गांधीजी के नाम नहीं रहा। उनके साथ अन्य शहीदों के लिए भी 2 मिनट का मौन रखा जाएगा। आजादी के परवानों में तो गांधी जी का नाम अव्वल हैं ही। जब सभी शहीदों को याद किया जाना है तो उनमें गांधी जी तो शामिल हैं ही। बस फर्क इतना है कि 30 जनवरी केवल उनकी शहादत के नाम नहीं रहा है।

लाखों की संख्या में लाठी गोली से लैस पुलिस रखने वाली सरकार चाहती है कि उसके खिलाफ हो रहे आंदोलन उग्र न होकर गांधीवादी तरीके से हो।

शस्त्र पूजन करने वाली संगठन और अपने कैडर को हथियारों की ट्रेनिंग देने वाला आरएसएस के मुखिया गांधी जयंती पर गांधी के कसीदे पढ़ते हुए लेख लिखते हैं। दुनिया भर की सत्तासीन सरकारों को गांधी पसंद हैं, वे गांधीवादी विचारों के फैलाव के लिए गांधी की मूर्ति लगाते, सरकारी पैसे से किताबे छपवाते हैं, गांधीवादियों को सरकारी स्टाइपेंड लुटाते हैं।

खूनी पूंजीपतियों के तो सबसे दुलारे हमेशा से गांधी हीं रहे हैं। गांधी के भारत भ्रमण में हर जगह के पूंजीपति और सामन्ती जमींदार सबसे पहले स्वागत के लिए आते थे। सरकार और जनता के बीच जब भी आमने सामने का संघर्ष होता है, सरकारों को बचाने के लिए गांधी हीं काम आते हैं। चाहे दमनकारी राज्यसत्ता हो, जातिवादी पितृसत्ता हो,सबको गांधी से प्रेम है।
जिन्हें भी दूसरों का हक खाना है, सत्ता जमाना है, कमजोरों को दबाना है। वह गांधी की आड़ लेने में सबसे आगे रहता है। सांस्कृतिक फासीवाद की पैरोकारी करना है और बदनाम नही होना है तो परजीवी समुदायों के लोग गांधीवादी बनते हैं। गांधी दमन के लिए सबसे ज्यादा उपयोग में लाए जाते हैं।

जनता से हमारी अपील है कि वह इन काली ताकतों के बहकावे में न आएँ और सरकारों से सवाल पूछना जारी रखें। यह चुप बैठने का वक्त नहीं है।

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