परमार्थ जनकल्याण ही मानव का धर्म है : महंत सर्वेश्वरी गिरि

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र पिहोवा :- श्री गोविंदानंद ठाकुरद्वारा आश्रम पिहोवा की महंत एवं राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद संत प्रकोष्ठ की प्रदेशाध्यक्ष सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने बताया कि पुण्य कर्मों का अर्थ केवल वे कर्म नहीं जिनसे आपको लाभ होता हो अपितु वो कर्म हैं जिनसे दूसरों का भला भी होता है। पुण्य कर्मों का करने का उद्देश्य मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करना ही नहीं अपितु जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाना भी है।

उन्होंने बताया कि स्वर्ग के लिए पुण्य अर्जित करना बुरा नहीं मगर परमार्थ के लिए पुण्य करना ज्यादा श्रेष्ठ है। महंत सर्वेश्वरी गिरि ने बताया कि शुभ भावना के साथ किया गया प्रत्येक कर्म ही पुण्य है और अशुभ भावना के साथ किया गया कर्म पाप है।

जो कर्म भगवान को प्रिय होते हैं, वही कर्म पुण्य भी होते हैं। हमारे किसी आचरण से, व्यवहार से, वक्तव्य से या किसी अन्य प्रकार से कोई दुखी ना हो। हमारा जीवन दूसरों के जीवन में समाधान बने समस्या नहीं, यही चिन्तन पुण्य है और परमार्थ का मार्ग भी है।

महंत सर्वेश्वरी गिरि ने बताया कि परमार्थ के कार्य कर पुण्य अर्जित करने वाला व्यक्ति हमेशा तनावमुक्त रहता है सुख समृद्धि अपने आप उसके पास आ जाती हे।

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