-कमलेश भारतीय

हिंदी साहित्य के बड़े और लोकप्रिय साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क जैसी जिजीविषा कहीं देखने को नहीं मिलती । उन्होंने जो भी लिखा बहुत शोध करने के बाद लिखा । उनके अनुभव बहुत समृद्ध और संघर्ष अत्यन्त विरल रहे । यह कहना है अश्क की पुत्रवधू भूमिका द्विवेदी का । वे अश्क और माता कौशल्या के इकलौते पुत्र नीलाभ की पत्नी हैं और दुख की बात यह कि नीलाभ सन् 2016 में 23 जुलाई को विदा हो गये लेकिन भूमिका का कहना है कि वे उनके नाम को बनाये रखने के लिए फिर से नीलाभ प्रकाशन चलाने की कोशिश में हैं । मूल रूप से इलाहाबाद की निवासी भूमिका आजकल दिल्ली रह रही हैं और कोचिंग कर जीवनयापन कर रही हैं । उल्लेखनीय है कि अश्क व उनके बेटे नीलाभ से मेरी मुलाकात पटियाला में भाषा विभाग के समारोह में हुई थी और अश्क जो से डाॅ वीरेंद्र मेहंदीरत्ता के घर नाश्ते पर लम्बी बातचीत । आज उनकी पुत्रवधू भूमिका द्विवेदी के माध्यम से उन्हें स्मरण कर रहा हूं । अश्क जी का उपन्यास ‘बड़ी बड़ी आंखें’ बी ए प्रथम वर्ष में पढ़ने का अवसर मिला ।

-आपने कहां तक शिक्षा प्राप्त की ?
-डबल एम ए इलाहाबाद विश्वविद्यालय से -अंग्रेजी और तुलनात्मक साहित्य में जिसमें अरबी , संस्कृत , फारसी , हिन्दी व उर्दू पांच साहित्य शामिल थे । एम फिल की दिल्ली विश्वविद्यालय से की ।

-कब से लिखने लगीं ?
-बचपन से ही । बाल कविताओं और स्कूली पत्रिकाओं से शुरूआत हुई और फिर बौद्धिक समाचारपत्रों जैसे ‘जनसत्ता’ में भी मेरे सम्पादकीय पृष्ठ पर लगातार आलेख आए ।

-आपको आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अवसर मिले ?
-इलाहाबाद और दूरदर्शन के लखनऊ केन्द्र सहित आकाशवाणी इलाहाबाद में अतिथि कलाकार के रूप में दस वर्ष तक मेरा जुडाव रहा है, बाल कलाकार जुड़ी थी, अतिथि कलाकार बरसों रही।

-दिल्ली कब आईं ?
-सन् 2010 में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई के सिलसिले में फिर यहीं रह गयी ।

-नीलाभ से शादी कब हुई ?
-सन् 2013 में । उन्होंने ही प्रपोज किया यह कहकर कि मैं बहुत अकेला और उदास हूं , मुझसे शादी करोगी और मैंने इतने बड़े साहित्यकार की इतनी सहजता और विनम्रता देखी, तो हां कह दी । इस तरह हमारी शादी तत्काल ही हो गयी । मैं भी अकेली ही थी । अपने शहर से दूर उदास भी । इस तरह दो उदास और अकेले लोग खुशी की तलाश में निकल पड़े ।

-नीलाभ के बारे में क्या कहेंगी ?
-नीलाभ बहुत प्रतिभाशाली , ज्ञानवान थे और उनके भयंकर आकर्षण था । जो उनसे एक बार मिल लेता था वह प्रभावित हुए बिना न रहता । वे बहुत सरल , विनम्र व्यक्ति थे ।

-आपको सिर्फ तीन साल ही उनका साथ मिला तो क्या कहेंगीं ?
-ये तीन साल मेरे लिए तीन सौ साल के बराबर रहे हैं । कितना बृहद् अनुभव मुझे मिला उनसे , समृद्ध हुई मैं ।

-क्या आप अपनी ससुराल जालंधर जा पाईं ?
-नहीं । नीलाभ मुझे ले जा नहीं पाये स्वास्थ्य कारणों से । वे मुझे बहुत सी चीज़ें व जगह दिखाना चाहते थे । अपने सौतेले परिवारजनों से बहुत परेशान होकर इलाहाबाद छोड़कर दिल्ली आ गये थे ।

-नीलाभ अपने पिता उपेंद्रनाथ अश्क के बारे में क्या बताते थे ?
-नीलाभ उन्हें पंजाबी कल्चर में पापा जी कहते थे । मुझे कहते थे कि मेरे पापा से बहुत मिलती हैं तुम्हारी आदतें । बेबाक बातें करती हो उनकी तरह । मैं पूरी रात बैठकर लिखती हूं तो पापा अश्क सुबह पांच बजे से शाम पांच बजे तक लिखते थे ।

-अब तक आपकी कितनी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं ?
-बारह । इनमें आठ उपन्यास हैं , तीन कथा संग्रह और एक संस्मरणात्मक पुस्तक है । अज्ञेय के उपन्यास ‘अपने अपने अजनबी’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया है ।

-आपको कौन से महत्त्वपूर्ण पुरस्कार मिले ?
प्रथम कथा संग्रह ‘बोहनी’ को भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन अनुशंसा सम्मान , प्रथम उपन्यास ‘आसमानी चादर पर ‘मीरा स्मृति पुरस्कार’ और लगातार साहित्य सेवा के लिए ‘तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान जैसे अनेक सम्मान/पुरस्कार ।

-क्या काम करती हैं जिंदगी चलाने के लिए ?

काफ़ी प्रतिष्ठित और धनवान मायके से हूँ, लेकिन उन लोगों से आर्थिक सहयोग नहीं लेती, कारण उन्हें अश्क लोग पसन्द नहीं है. इसलिए कोचिंग द्वारा संस्कृत , उर्दू व अंग्रेजी में कक्षाएं लेती हूं ।

-अश्क की कौन सी रचनाएं पसंद हैं ?
-वे फ्रीलांसर थे और मुझे भी फ्रीलांसर होना ही पसंद । उनकी रचनाओं में ‘पत्थर अल पत्थर’ उपन्यास बहुत पसंद है । ‘गिरती दीवारें’ और कुछ कविताएं बहुत प्रिय हैं ।

-नीलाभ के व्यक्तित्व के बारे में क्या कहेंगी ?
-नीलाभ मुझे पूरे का पूरा पसंद था । रेशा रेशा पसंद है । नापसंद हो ऐसी कोई बात ही नहीं थी उनमें । मुझ पर लिखीं कविताएं बहुत पसंद है ।कोई सुनाइए जो आप पर लिखी हो ?

-मुहब्बत में जो कुछ भी दुश्वारियां हैं
वो सारी की सारी हमें प्यारियां हैं
वो देखें हमारी तरफ या न देखें
बस इतनी सी उनकी वफादारियां हैं ,,,

-अब क्या लक्ष्य है आपका ?

-नीलाभ और अश्क रचना परंपरा की सभी चीजें सँजोने का, ताकि आने वाले युगों में वह लोगों को नेक रास्ते दिखा सकें. नीलाभ प्रकाशन फिर से शुरू करने की भी प्रबल इच्छा है । जिससे हम और हमारी लेखन धरोहरों और नीलाभ को लोग याद रखें ।

हमारी शुभकामनाएं भूमिका द्विवेदी को । आप अपनी प्रतिक्रिया इस ईमेल पर दे सकते हैं : [email protected]

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