“मैं पार्टी का वफादार कार्यकर्ता हूं, मैंने कभी भी अपनी पार्टी से कोई विभाग या पद नहीं मांगा”- विज
“मुझे बीजेपी के दफ्तर का चपरासी भी बना देंगे तो मैं वहां सहर्ष काम करूंगा, लेकिन मैं इज्जत के साथ काम करना मेरी आदत में शुमार है”- विज
क्या भाजपा हाईकमान खट्टर की करवा रहा भारी “फजीहत?”
विज के जरिए खट्टर को फिर से “नीचा” दिखाया गया
 मुख्यमंत्री को अपने हिसाब से विभाग लेने-देने की “पावर” नहीं

अशोक कुमार कौशिक 

मनोहर सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला मंत्रिमंडल विस्तार के बाद से ही दबंग मंत्री अनिल विज की अनुपस्थिति के चलते चर्चाओं में बना हुआ है। शपथ ग्रहण के बाद से ही हर ओर यही सवाल चल रहा हैं कि विज शपथ ग्रहण में मौजूद क्यों नहीं रहे । जिससे न सिर्फ मुख्यमंत्री कुछ असहज महसूस कर रहे हैं, बल्कि सीएमओ में भी बड़ी हलचल का अंदेशा है। इस पूरे प्रकरण से मुख्यमंत्री मनोहर लाल की छवि पर गहरा असर पड़ा है अब यह साफ दिखाई देने लगा है कि वह अपनी मर्जी से निर्णय लेने में सक्षम नहीं है। मोदी के “आशीर्वाद” मिली कुर्सी में अब “धमक” नहीं है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की उनका ही पार्टी हाईकमान भारी “फजीहत” करने का काम बखूबी करता दिखाई दे रहा है। 7 साल से हरियाणा के मुख्यमंत्री बने हुए मनोहर लाल खट्टर के “रुतबे” के साथ पार्टी हाईकमान लगातार “खिलवाड़” कर रहा है। हालिया मंत्रिमंडल विस्तार में अनिल विज के जरिए मनोहर लाल खट्टर को एक बार फिर से “नीचा” दिखाने का काम “बखूबी” कर दिया गया।

पुख्ता सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल विस्तार से पहले मंगलवार को मुख्यमंत्री निवास पर एक बैठक हुई। इसमें मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अलावा गृह मंत्री अनिल विज व भाजपा के प्रदेश प्रभारी विनोद तावड़े भी मौजूद रहे। इस बैठक में मुख्यमंत्री ने विज को बताया कि वे मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे हैं और दो नए मंत्री इसमें शामिल कर रहे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर मंत्रिमंडल विस्तार में अनिल विज के 7 विभागों में से 2 विभाग लेकर नए कैबिनेट मंत्री कमल गुप्ता को देना चाहते थे। विज ने मुख्यमंत्री की इस बात का स्वागत किया। इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि दोनों मंत्रियों को विभाग भी देने हैं तो विज ने कहा कि जजपा कोटे से बनने वाले मंत्री को तो उपमुख्यमंत्री को अपने पास से ही विभाग देना चाहिए, जिस पर मुख्यमंत्री ने बताया कि देवेंद्र बबली को दुष्यंत चौटाला अपने पास से ही विभाग अलॉट करेंगे। दुष्यंत ने पंचायती विकास एवं पुरातत्व विभाग बबली को दे भी दिया। ऐसे में बात आगे बढ़ी तो मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा कोटे से शपथ लेने वाले डॉ कमल गुप्ता को विभाग देना है, इसलिए विज अपने कई महकमों में से एक गुप्ता के लिए छोड़ दें। इतना कहते ही विज ने तुरंत मुख्यमंत्री की मांग के अनुसार अर्बन लोकल बॉडी को छोड़ने की सहमति दे दी। 

पुख्ता सूत्रों के मुताबिक, यूएलबी की सहमति मिलने के साथ ही विज को कहा गया कि उन्हें एक और विभाग छोड़ना होगा, जिस पर विज ने पूछा कि यह अब किसके लिए। तो उन्हें बताया गया कि मुख्यमंत्री को गृह विभाग चाहिए। इतनी बात होते ही विज ने अपने चिरपरिचित अंदाज में तुरंत जवाब दिया कि उन्हें तो विपक्ष में रहने की आदत है। उनसे सभी विभाग ले लिए जाएं, वे साधारण एमएलए की तरह रहे लेंगे और लोगों आवाज पहले ही तरह उठाते रहेंगे। लेकिन, मुख्यमंत्री के सामने ही सीएमओ की कार्यशैली पर बड़ा प्रहार करते हुए यह भी बोले कि यहां तो पूरा गदर मचा हुआ है। सीएमओ में गदर की बात होते ही फिर किसी में भी विज से महकमे लेने की बात कहने की हिम्मत नहीं हुई और बिना किसी निर्णय के मीटिंग खत्म हो गई।

मुख्यमंत्री खासतौर पर गृह विभाग अनिल विज से लेकर अपने पास रखना चाहते थे और कमल गुप्ता को वित्त मंत्रालय देना चाहते थे, लेकिन अनिल विज ने पार्टी प्रभारी तावड़े और मुख्यमंत्री के साथ हुई बातचीत में गृह विभाग वापस देने से साफ इनकार कर दिया और ऐसा किए जाने पर इस्तीफा देने की धमकी दे डाली। अनिल विज की “धमकी” का यह असर हुआ कि मुख्यमंत्री उनसे गृह विभाग वापस नहीं ले पाए। पार्टी हाईकमान की शह पर अनिल विज लगातार मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ “पंगा” लेते रहते हैं।

प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते मनोहर लाल खट्टर को अपने मंत्रियों को विभाग देने और वापस लेने का अधिकार तो होना ही चाहिए लेकिन अनिल विज ने विभाग वापस देने से साफ इनकार करके यह बता दिया कि पार्टी हाईकमान में खट्टर की बजाए उनकी ज्यादा चलती है।

इस मीटिंग के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल सीधे राजभवन चले गए, लेकिन विज वहां जाने की बजाए अपने कार्यालय पहुंच गए। आज शाम 4 बजे से दिल्ली में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की पहले से फिक्स मुलाकातें होनी हैं। लेकिन, विज ने जिस तरह का प्रहार किया है, उसकी गूंज इन मुलाकातों में जरूर सुनाई देने की उम्मीद है। विदित रहे कि इससे पहले विभिन्न मौकों के अलावा एचपीएससी रिश्वत कांड में भी सीएमओ की मिलीभगत को लेकर विपक्ष के ईशारे हो चुके हैं। ऐसे में अपने ही कदावर मंत्री का क्लोज डोर बैठक में खुलकर बोलना कहीं न कहीं पार्टी हाईकमान व आरएसएस को सोचने के लिए मजबूर कर सकता है।

पार्टी हाईकमान ने मनोहर लाल खट्टर की सलाह को “अनसुना” कर दिया और विज के पास गृह मंत्रालय वापस छोड़ दिया गया। यह सच्चाई है कि गृह मंत्री के तौर पर अनिल विज अभी तक अपनी कुछ भी छाप नहीं छोड़ पाए हैं। हरियाणा में अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है।- हर रोज औसतन 5 महिलाओं की आबरू के साथ खिलवाड़ हरियाणा में किया जा रहा है,।- रोजाना एक दर्जन से ज्यादा लूटपाट की घटनाएं हरियाणा के अंदर हो रही हैं।- हर रोज आधा दर्जन से ज्यादा कत्ल हरियाणा में अंजाम दिए जा रहे हैं। इनका हिसाब किताब किया जाए तो अनिल विज गृह मंत्री के तौर पर फेल साबित होते हैं लेकिन इसके बावजूद अनिल विज से गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के कहने के बावजूद वापस नहीं लिया। हाईकमान ने इस मामले में विज की हिमायत की जिसके चलते मुख्यमंत्री खट्टर चाहते हुए भी अनिल विज से गृह मंत्रालय वापस नहीं ले पाए।

__ बीजेपी के दफ्तर का चपरासी भी बना देंगे तो मैं वहां सहर्ष काम करूंगा

इधर हरियाणा के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा कि “मैं पार्टी का वफादार कार्यकर्ता हूं, मैंने कभी भी अपनी पार्टी से कोई विभाग या पद नहीं मांगा, मुझे बीजेपी के दफ्तर का चपरासी भी बना देंगे तो मैं वहां सहर्ष काम करूंगा, लेकिन मैं इज्जत के साथ काम करना चाहता हूं क्योंकि यह मेरी आदत में शुमार है”। उन्होंने कहा कि “यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है, कि किसको मंत्री बनाएं और किसको मंत्री न बनाएं, किसको विभाग दें और किसको  विभाग न दें”।

श्री विज आज सिरसा में लोक संपर्क एवं कष्ट निवारण समिति की बैठक के उपरांत पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे।

जानने योग्य बात यह है कि भाजपा हाईकमान ने 7 साल के दौरान एक बार भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को “मजबूत” नहीं होने दिया गया बल्कि उन्हें “मजबूर” मुख्यमंत्री के तौर पर रखा गया है। मनोहर लाल खट्टर को सियासी मजबूरियों के चलते सीएम बनाए रखा गया है। मुख्यमंत्री के तौर पर अपने हिसाब से राजकाज चलाने की छूट खट्टर को नहीं दी गई है। 7 साल के दौरान कई बार मुख्यमंत्री खट्टर को अनिल विज के सामने “समझौता” करना पड़ा है। हाईकमान का साथ होने के चलते अनिल विज मुख्यमंत्री से ऊपर होकर कई तरह की कार्रवाई करते हैं। वह खुद को मुख्यमंत्री से “ऊपर” समझते हैं। हाईकमान की “शह” के चलते अनिल विज बार-बार मुख्यमंत्री खट्टर से को “झटका” देने का काम करते आए हैं। मंत्रिमंडल विस्तार में अनिल विज से गृह मंत्रालय वापस नहीं ले पाना मुख्यमंत्री खट्टर की एक और “हार” कही जाएगी। एक बार फिर यह साबित हो गया है कि भाजपा हाईकमान मुख्यमंत्री खट्टर की बजाय अनिल विज को ज्यादा महत्व दे रहा है जिसके चलते पार्टी और सरकार के अंदर सीएम खट्टर की बड़ी “फजीहत” हुई है।

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