बुजुर्गों की सेवा करना अपने आप में महायज्ञ अनुष्ठान है : ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी

बुजुर्गों की सेवा करना अपने आप में महायज्ञ अनुष्ठान है : ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी।
बच्चों को ऐसी शिक्षा दें कि माता पिता की सेवा करें, अगर मुक्ति चाहिए तो माता पिता के चरणों में है : ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी।
प्रेरणा वृद्धाश्रम में पहुंचे जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी।
संतों को अपने बीच पाकर और उनकी वाणी को सुनकर बुजुर्गों की आंखों से आंसू बह निकले।
प्रेरणा संस्था की टीम द्वारा किया गया ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी का स्वागत।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 23 दिसम्बर : चाहे युग बदले लेकिन सृष्टि में माता पिता की सेवा से बढ़कर कोई सेवा नहीं है। आज समाज में बुजुर्गों की अवहेलना देख कर संतों का मन भी दुःखी होता है। भारतीय संस्कृति एवं संस्कार केवल बुजुर्गों एवं माता पिता की सेवा करना ही सीखते हैं। यह विचार देश के विभिन्न राज्यों में संचालित जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी ने प्रेरणा वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के बीच पहुंच कर व्यक्त किए। ब्रह्मचारी का प्रेरणा संस्था के संस्थापक जय भगवान सिंगला, आशा सिंगला एवं अन्य सदस्यों ने जोरदार स्वागत किया।

ब्रह्मचारी ने सर्वप्रथम प्रेरणा वृद्धाश्रम में शहीदी स्मारक पर शहीदों को नमन किया। शहीद संग्रहालय एवं डे केयर सेंटर का अवलोकन किया। वृद्धाश्रम में बने मंदिर में पूजा अर्चना की। इस मौके पर संतों को अपने बीच पाकर बुजुर्ग भी भाव विभोर हो उठे। जब परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी ने अपने विचार रखे तो बुजुर्गों की आंखों से आंसू बह निकले।ब्रह्मचारी ने कहा कि प्रेरणा वृद्धाश्रम में जिस प्रकार अपने परिवारों से निकाले अथवा नकारे गए बुजुर्गों की निस्वार्थ भाव से सेवा की जा रही है, यह भी अपने आप में महायज्ञ अनुष्ठान है। आज समाज की स्थिति को देखते हुए ऐसे वृद्धाश्रम जैसे यज्ञ की जरूरत है। यह समय की मांग है। माँ बाप के आगे तो भगवान भी झुकता है। ब्रह्मचारी ने भगवान श्री कृष्ण एवं माता यशोदा के प्रसंगों का उदाहरण दिया। आज समाज में हम युवाओं और अपने बच्चों को ऐसे संस्कार दें कि वे भी अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा तथा प्रेरणा दें कि माता पिता की सेवा करें। अगर मुक्ति चाहिए तो माता पिता के चरणों में है, और कहीं नहीं है।

ब्रह्मचारी ने कहा कि अगर माता पिता की सेवा नहीं की तो सभी दान पुण्य एवं कर्म व्यर्थ हैं। अगर सच्चे मन से माता पिता की सेवा की हो तो उसकी कीर्ति समाज एवं संसार में हमेशा रहती है। माता पिता की सेवा करने वाले ही पूरे समाज के लिए प्रेरणा बनते हैं। माता पिता की सेवा की कोई सीमा नहीं है। उन्होंने कहा कि माता पिता परिवार के फलदायी पेड़ हैं। अगर परिवार में माता पिता नहीं हैं तो परिवारों में खालीपन है। ब्रह्मचारी ने कहा कि जान कर खुशी मिली कि प्रेरणा वृद्धाश्रम में वृद्धों की निष्काम भाव से सेवा की जा रही है। यहां संस्कार सेवा केंद्र के माध्यम से गरीब परिवारों के बच्चों को अच्छे संस्कार दिए जा रहे हैं। यहां कर प्रसन्नता हुई कि यहां पर राष्ट्रीयता की भावना से शहीद स्मारक एवं शहीद संग्रहालय भी है।

यहां आकर शहीदों को श्रद्धा पुष्प अर्पित करने की भावना रहती है। उन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र की धरती पर वास्तव में भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा एक गृहस्थ के रूप में प्रेरणा वृद्धाश्रम के संस्थापक जय भगवान सिंगला को मिली है। जो वृद्धों की सेवा को ही भगवान की सेवा मान कर कर रहे हैं। प्रेरणा के संस्थापक जय भगवान सिंगला ने परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी का आभार व्यक्त किया कि उनके आने से प्रेरणा की टीम को नए संस्कार एवं जोश मिला है। ब्रह्मचारी मानते हैं कि भारतीय संस्कारों के अनुसार वृद्धाश्रमों की आवश्यकता नहीं है लेकिन आज समाज में जिन वृद्धों का कोई नहीं है उनके लिए ऐसे वृद्धाश्रम बनने ही चाहिए। कार्यक्रम में युवा जूनियर कुमार विश्वास उर्फ़ वीरेंद्र राठौर ने अपनी रचनाओं से सभी को भाव विभोर किया। डा. जय भगवान सिंगला एवं डा. केवल कृष्ण ने अपनी पुस्तकें ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी को भेंट की।

इस अवसर पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व निदेशक डा. विजय दत्त शर्मा, टेक सिंह लौहार माजरा, राजेश सिंगला, आशा सिंगला, मधु मल्होत्रा, स्वाति सिंगला, प्रवेश राणा, यशपाल राणा, डा. केवल कृष्ण, मीरा गौतम, वीरेंद्र राठौर एवं प्रेरणा वृद्ध आश्रम के बुजुर्ग इत्यादि मौजूद थे।

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