शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष करने से अनैतिकता, पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव और गरीब माता पिता पर मानसिक दबाव बढ़ेगा

19/12/2021 :- केंद्र सरकार बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में संशोधन कर रही है और इसके बाद विशेष विवाह अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 जैसे व्यक्तिगत कानूनों में भी संशोधन प्रस्तावित है। नए विवाह कानून के अनुसार लड़कियों की विवाह की उम्र 18 से बढ़ाकर 21वर्ष कर दी गई है, अब 21 वर्ष की उम्र से पहले शादी करना कानूनन अपराध होगा। केंद्र सरकार के बनाये इस कानून से देशभर से मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आई, जहां कुछ लोगों ने सरकार के इस निर्णय को सराहा वहीं कुछ लोगों ने इस निर्णय की तीखी आलोचना करते हुए कहा की ये संस्कार और संस्कृति को दबाने की एक और कोशिश है और इस निर्णय को सामाजिक तौर पर गलत बताया।

इसी मामले में हरियाणा प्रदेश महिला कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री सुनीता वर्मा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि सरकार को हिंदू मैरिज एक्ट में भी संशोधन करना चाहिए ताकि कोई भी लड़का या लड़की मां-बाप की मर्जी के बैगर कोर्ट में शादी ना कर पाएं। गांव, गौत्र और देहात में शादी नही होनी चाहिए, क्योंकि इन्हीं की वजह से आजकल घरों में और आपसी भाईचारे में घरेलू कलह बढ़ रहे हैं।

सरकार के इस निर्णय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि समाज के मुश्किल हालातों व आजकल खानपान को देखते हुए 18 वर्ष की उम्र में शादी कर देने का कानून ठीक था, जमाना तेजी से बदल रहा है। उन्होंने कहा कि गरीब परिवारों के लिए मुश्किलें आएंगी क्योंकि सम्पन्न लोग तो पहले भी 21 वर्ष की उम्र से पहले अपनी लड़की की शादी नही करते।

वर्मा ने कहा कि इस फैसले में थोड़ा लचीलापन होना चाहिए था जिन लड़कियों के माता या पिता नही है उन्हें इस कानून के दायरे से बाहर रखना चाहिए या फिर उन लड़कियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार ले।

महिला कांग्रेस नेत्री ने कहा कि वैसे भी इस कानून में न्यूनतम उम्र के बदलाव लाने की क्या जरूरत पड़ गयी? कोई ये थोड़े ही नियम था कि 18 वर्ष की होते ही लड़की की शादी कर दो, आजकल खूब 25-30 में शादी करते है लेकिन न्यूनतम में 21 करने से काफी लोगो को मुश्किल होगी। इस फैसले के दूरगामी परिणाम काफी खराब रहेंगें।

महिला कांग्रेस नेत्री ने कहा कि वैज्ञानिक नजरिये से भी लड़कियां 18 वर्ष की उम्र में पूर्ण शारीरिक परिपक्व हो जाती है, वो नाबालिग नही रहती, इस तरहं से आज के दूषित माहौल को देखते हुए ये फैसला अव्यवहारिक सा लगता है। उन्होंने कहा कि 18 साल की लड़की अपनी पसंद से सरकार चुन सकती है लेकिन शादी नहीं कर सकती। हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है?

इस विषय पर उन्होंने मुखर बोलते हुए कहा कि जैसे-जैसे लोग शिक्षित हो रहे शादियां भी वो औसत 25-30 की उम्र में ही कर रहे, कुछ मजबूरियां हो जाती है की जल्दी करनी भी पड़ जाती 18-20 में, तो उस हिसाब से ये कानून सही नहीं है।

उन्होंने कहा कि फिर भी अगर सरकार को इसमें बदलाव करना ही था तो माँ- बाप की सहमति से 18 वर्ष की उम्र और बिना सहमति के लड़की शादी करना चाहे तो इसके लिए 21 वर्ष की उम्र का होना ठीक है।

उन्होंने इस बात को भी गलत ठहराया की कम उम्र में शादी करने से लड़की के कैरियर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, उन्होंने कहा कि अब भी शादी के बाद कोई पढ़ाई नही छुड़वाता और उन्हें पढ़ने का पूरा मौका मिलता है। वैसे भी पढ़ने वाली लड़कियों की शादियां 21 वर्ष की उम्र के बाद ही होती है, फिर ये पाबंदी क्यों?

वर्मा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इस कानून का सबसे बुरा प्रभाव उन गरीब लोगों पर पड़ेगा जो जल्द से जल्द अपनी लड़की के हाथ पीले करने के लिए चिंतित रहते हैं। अब इस कानून से ऑनर किलिंग के केस बढ़ सकते हैं।

उन्होंने कहा कि इस कानून के गलत या सही होने का तो आने वाला वक्त ही बतायेगा लेकिन 18 की उम्र सही थी, हर लिहाजे से, क्योंकि लड़कियां आजकल समय से पहले ही परिपक्व हो रही है।