मोदी सरकार व भाजपा नगर निगम ने चंडीगढ़ को दिया धोखा – करों के बोझ में झोंका

पवन बंसल व रणदीप सिंह सुरजेवाला का बयान

चंडीगढ़, 18 दिसंबर 2021 – षडयंत्रकारी भेदभाव, बजट में कटौती, जानबूझकर की जा रही अनदेखी व अनाप-शनाप टैक्सों का बोझ मोदी सरकार व भाजपा नगर निगम के चंडीगढ़ के लोगों को दिए तोहफे हैं। इनमें से कुछ की आज चर्चा करेंगे।

पंडित जवाहर लाल नेहरु के सपनों से बनाए देश के बेहतरीन शहर – ‘‘सिटी ब्यूटीफुल’’ चंडीगढ़ को मोदी सरकार व भाजपा के नगर निगम ने ‘‘कूड़े के पहाड़’’ वाला शहर बना दिया है।

डड्डूमाजरा में इस समय 15 लाख टन के कूड़े का पहाड़ ‘‘सिटी ब्यूटीफुल’’ के चंडीगढ़ के तगमे को नाक चिढ़ाता है और इससे उठने वाली भयंकर दुर्गंध व जहरीला धुआं शहर के लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करता जाता है।

कुछ तथ्य देखें

चंडीगढ़ शहर से रोज 500 टन ‘‘सॉलिड वेस्ट’’ निकलता है, यानि साल में लगभग 2 लाख टन। पिछले पाँच सालों में 10 लाख टन के कूड़े के पहाड़ तो खड़े कर दिए, कूड़ा प्रोसेसिंग के नाम पर फूटी कौड़ी खर्च नहीं की। इससे बड़ा ताजमहल की ऊँचाई वाला (73 मीटर) कूड़े का पहाड़ अब केवल केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में खड़ा कर रखा है।

पिछले दो साल से मोदी सरकार व भाजपा नगर निगम की देख-रेख में कूड़ा प्रोसेसिंग प्लांट पूरी तरह से बंद पड़ा है। चंडीगढ़ में हर रोज निकलने वाले कूड़े की प्रोसेसिंग अब भगवान भरोसे है।

5 साल में भाजपा नगर निगम ने कूड़ा प्रोसेसिंग प्लांट चलाने वाली प्राईवेट कंपनी की न तो जाँच करवाई और न ही एक फूटी कौड़ी भी पैनल्टी लगाई। मिलीभगत और भ्रष्टाचार साफ है।

भाजपा नगर निगम ने एक नायाब स्कीम चलाकर 24 करोड़ रु. की लागत से कूड़े के पहाड़ से कूड़ा उठाकर चंडीगढ़ से बाहर ले जाने का ठेका एक और निजी कंपनी को दे दिया। पर चालाकी से पिछले दो साल में तीन बार कूड़े के पहाड़ पर आग लगवाई गई। चंडीगढ़ को तो वायु प्रदूषण की आग में झोंका ही, पर कूड़ा उठाने के नाम पर कितने लाख टन कूड़ा जला दिया गया, इसकी जाँच कभी नहीं हुई।

2017 तक चंडीगढ़ में ‘‘घर-घर कचरा कलेक्शन’’ अच्छे से चल रहा था। भाजपा नगर निगम ने इसे एक प्राइवेट कंपनी को दे दिया। नतीजा यह हुआ कि कचरा इकट्ठा करने का खर्च 300 प्रतिशत बढ़कर 55 करोड़ रु. से अधिक हो गया। न केवल कचरा इकट्ठा करने वाले मज़दूरों के पेट पर लात मारी गई, बल्कि कचरा इकट्ठा करने वाले कर्मियों की लागत, जो साल 2017 में 19,000 रु. थी, वह अब बढ़कर 45,000 रु. से अधिक हो गई है। खेल खत्म, पैसा हजम।

चंडीगढ़ को धोखा – करों के बोझ में झोंका

पानी और सीवरेज की महंगी दरों का बोझ जनता पर – साल 2015 तक चंडीगढ़ में पानी की दर मात्र ₹2 प्रति किलो लीटर थी। भाजपा नगर निगम व प्रशासन ने 2021 में इसमें 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ोत्तरी कर ₹3 व ₹6 प्रति किलोलीटर कर डाला। यही नहीं, साल 2015 तक हर टॉयलेट सीट पर केवल ₹10शुल्क था। भाजपा ने इसे भी बढ़ाकर पानी के शुल्क का 30 प्रतिशत कर डाला। नगर निगम के चुनावों को देखते हुए इसे थोड़ी देर रोक लगाई है, पर भाजपा को चुनने का मतलब है, पानी और सीवरेज के दामों में 50 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोत्तरी।

हाउस टैक्स की बढ़ी दरों का प्रहार – साल 2020 में ‘‘टैक्स असेसमेंट कमिटी’’ की सिफारिश पर 20 प्रतिशत हाउस टैक्स बढ़ा दिया गया, जिसका बोझ चंडीगढ़ के 1.5 लाख करदाताओं पर पड़ा – 1,20,000 आवासीय श्रेणी के और 30,000 कमर्शियल व इंडस्ट्रियल श्रेणी के। पहले ही 50 करोड़ रु. की उगाही की जाती थी, अब 15 करोड़ रु. का बोझ और डाल दिया गया।

प्रॉपर्टी खरीदने, ओनरशिप ट्रांसफर, लीज़ राईट्स और प्रॉपर्टी मॉर्टगेज़ रखने पर भी करों का प्रहार – संपत्ति के ओनरशिप/लीज़ राईट्स को ट्रांसफर करने पर और आवासीय संपत्तियों के नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट के लिए जो प्रोसेसिंग फीस, ₹2000 थी, उसे 300 प्रतिशत बढ़ाकर ₹6000 कर दिया गया। संपत्ति की खरीद बिक्री पर एनओसी की फीस ₹1500 से ₹5000 कर दी गई। संपत्ति को मॉर्टगेज़ रखने के लिए अनुमति शुल्क ₹1000 से ₹5000 कर दिया गया। शॉप कम फ्लैट्स और शॉप कम ऑफिस की खरीद बिक्री के लिए भी जो प्रोसेसिंग फीस ₹2500/ ₹5000 थी, उसे सीधा ₹10,000 कर दिया गया। यह सीधे-सीधे जनता की लूट है।

चंडीगढ़ पर दोहरी मार – टैक्स बढ़ाए, और बजट काट लिया

मोदी सरकार ने 2021-22 में चंडीगढ़ की जनता की मांग मानने की बजाय 483.88 करोड़ रुपया काटकर सिटी ब्यूटीफुल से कुठाराघात किया है (मांग – ₹5,670 करोड़, दिया – ₹5,186 करोड़)।

कोरोना के समय भी मोदी सरकार ने साल 2020 में चडीगढ़ का बजट 20 प्रतिशत काटने का फरमान जारी कर दिया, जिससे हरेक तिमाही में ₹260 करोड़ की कटौती हुई। कर्मचारियों के तनख्वाह तक देने के लाले पड़ गए और विकास ठप्प हो गया।

दिल्ली फाईनेंस कमीशन की सिफारिशों के मुताबिक राजस्व का 30 प्रतिशत हिस्सा चंडीगढ़ को मिलना चाहिए। चंडीगढ़ का रेवेन्यू अब ₹4,000 करोड़ सालाना है। 30 प्रतिशत के हिसाब से मिलना चाहिए – ₹1200 करोड़, पर मोदी सरकार दे रही है, 50 प्रतिशत से भी अधिक कम, ₹564 करोड़। यह भेदभाव नहीं, तो क्या है?

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