किसानों का पीएम मोदी को खुला पत्र, एमएसपी समेत 6 बड़ी मांग बताई
हिन्दूमहासभा, आरएसएस, राजस्थान के राज्यपाल, पार्टी के नेता और बेशुमार ट्रोलर पीएम को कोस रहे हैं
किसानों को छोटे और बड़े दो हिस्से में बाँटने का यत्न
सीधे पल्लू में साड़ी क्यों ऊपर डाल रखी थी? यह कहीं से शॉल तो लगती नहीं है।
‘भाजपा हराओ मिशन’ को आगे बढ़ाते हुए 22 नवंबर को लखनऊ में किसानों की पूर्व निर्धारित महापंचायत में संघर्ष जारी रखने का ऐलान
अवध की जमीन पर सौ साल बाद फिर से किसानों का संघर्ष और उनके संगठन की ताकत का अहसास हुक्मरानों को

अशोक कुमार कौशिक

 कृषि कानून वापसी के राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री का संदेश पूरा सुना जिसमें मोदी द्वारा क्षमा मांगने के वाक्य पर कई बार गौर किया। विदित है कि इस घोषणा के बाद हिन्दू महासभा, आरएसएस, राजस्थान के राज्यपाल, उमा भारती, पार्टी के नेता और बेशुमार ट्रोलर प्रधानमंत्री को या तो कोस रहे हैं या कानून के फिर से वापस आने का दिलासा आपस में बांट रहे हैं। यह सब स्वाभाविक नहीं अपितु रणनीति का हिस्सा है। जो भी है समय के अधीन है।

मैं केवल संदेश की समीक्षा करना चाहता हूँ क्योंकि उसकी ईमानदारी मुझे जंची नहीं। सत्रह मिनट के संदेश में चौदह मिनट तक सरकार के किसान प्रेम और अभूतपूर्व कार्यक्रमों की चर्चा तथा पूरी शिद्दत से किसानों को छोटे और बड़े दो हिस्से में बाँटने का यत्न है। इसके बाद जब किसान आंदोलन के विन्दु पर बात शुरू हुई तो उसे ‘कुछ किसान’ और ‘किसानों का एक वर्ग’ कहकर पहले की ही तरह अतीव महत्वहीन सिद्ध किया गया है। यह तो भाषणकला की गुणवत्ता है। मोदी के क्षमा मांगने की मंशा में ईमानदारी हर्गिज नहीं‌ दिखी। सत्रह मिनट के संदेश में चौदह मिनट तक। सरकार के किसान प्रेम और अभूतपूर्व कार्यक्रमों की चर्चा और पूरी शिद्दत से किसानों को छोटे और बड़े दो वर्गों में “बाँटने” का जतन किया गया।

जब किसान आंदोलन के बिन्दु पर बात शुरू हुई तो उसे ‘कुछ किसान’ और ‘किसानों का एक वर्ग’ कहकर पहले की ही तरह महत्वहीन सिद्ध किया गया है।यही तो उनकी भाषण की वाचाल चाल कला है। किन्तु कुछ तथ्य बहुत चुभने वाले हैं। पूरे संदेश में किसान आंदोलन में जान गंवाने वालों पर अफसोस तो दूर, उनकी चर्चा भी नहीं है। इन कानूनों की उपयोगिता पर बार-बार बल देने से भविष्य में इनकी वापसी के दरवाजे खुले रह गये दिखाई पड़ते हैं।

प्रकाश पर्व से संदेश की संगति रचकर और गुरु नानक तथा गुरु गोविंद सिंह के ‘शबद’ सुनाकर सारा एहसान किसानों की बजाय सिखों के सिर पर लादने का उपक्रम है।

अंतिम चौथी बात चौकाने वाली है। तेरह मिनट बोलने के बाद प्रधानमंत्री जी ने जो क्षमा याचना की है, वह कानून बनाने के लिए नहीं, अपितु कानून लागू न कर पाने के लिए की है। इसीलिए क्षमा याचना किसानों से नहीं, देशवासियों से की गई है। देशवासियों के नाम पर जो किसानों के प्रति हृदयहीन, संवेदनहीन और दया विहीन रहे, क्षमा करने का अधिकार भी लगता है, उन्ही के पास है।

पूरा संदेश मोदी सरकार की अपनी एक दुखान्त पटकथा की तरह प्रस्तुत करते हुए आंदोलनरत किसानों के दुःख को प्रश्नपत्र से बाहर रखा। संदेश सुनकर देश केवल अपने प्रजापालक प्रधानमंत्री जी के दुःख से द्रवित हो उठा है। किसान तो जैसे याद ही नहीं आ रहे।

 सीधे पल्लू पे साड़ी
हमारे परिधान-मंत्री ख़ासे शौकप्रिय हैं ये तो हम जानते हैं। हर मौके पर वो अपना परिधान बहुत सोच-समझकर चुनते हैं। फिर भी ये समझ में नहीं आया कि  तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए उन्होंने सीधे पल्लू में साड़ी क्यों ऊपर डाल रखी थी? यह कहीं से शॉल तो लगती नहीं है तो साड़ी ही। कहीं ये मोदी शौक में झुकने की निशानी तो नहीं?

भाजपा के ख़िलाफ़ किसान
‘भाजपा हराओ मिशन’ को आगे बढ़ाते हुए 22 नवंबर को लखनऊ में किसानों की पूर्व निर्धारित महापंचायत आयोजित हुई और इसमें हिस्सेदारी के लिए बड़ी संख्या में किसान पहुंचे। अब तक दिल्ली की सीमाओं पर धरने और विरोध प्रदर्शन के साथ-साथ किसान कई जगहों पर महापंचायत करते रहे हैं और हर महापंचायत से कृषि कानून वापसी की मांग जोर-शोर से उठाई जाती रही। लेकिन लखनऊ की ये महापंचायत इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि यह प्रधानमंत्री की कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के बाद हुई है। 

लखनऊ की इस महापंचायत के ऐतिहासिक संदर्भ भी हैं। 1920 में अवध में जमींदारों द्वारा शोषण व उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष के लिए ‘किसान सभा’ गठित हुई थी। जिसके तहत शुरु हुए किसानों के आंदोलन को बाबा रामचंद्र ने धार दी और ब्रिटिश हुकूमत को आंदोलन के दबाव में अवध रेंट एक्ट-1868 में संशोधन करना पड़ा, जिसके द्वारा सभी काश्तकारों को जमीन पर मालिकाना हक मिला। इसके बाद नवंबर, 1921 में लखनऊ के मलिहाबाद से ‘एका’ आंदोलन शुरू हुआ, मदारी पासी व ख़्वाजा अहमद के नेतृत्व में यह आंदोलन सामंती तथा साम्राजी हुकूमत के विरुद्ध किसानों की स्वतंत्र शक्ति का प्रदर्शन था। 

बीसवीं शताब्दी के चौथे और पांचवें दशक में भी देश के अनेक भागों में जुझारू किसान आंदोलन फूट पड़े, जिनके दबाव में स्वाधीनता के तुरंत बाद कांग्रेस सरकार को जमींदारी एवं जागीरदारी प्रथा के खात्मे के कदम उठाने पड़े। उसी अवध की जमीन पर सौ साल बाद फिर से किसानों का संघर्ष और उनके संगठन की ताकत का अहसास हुक्मरानों को हो रहा है। आज के दौर में ज़मींदारों की जगह उद्योगपतियों ने ले ली है, जिनके साथ सरकार की सांठ-गांठ है। किसान इस पूंजीवादी गठजोड़ के खिलाफ खड़े होकर किसानी के साथ-साथ लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

लखनऊ की महापंचायत में संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार के सामने अपनी छह प्रमुख मांगें रखी हैं- एमएसपी को लेकर क़ानूनी गारंटी दी जाए। बिजली संशोधन विधेयक को वापस लिया जाए। पराली जलाने पर जुर्माने के प्रावधानों को ख़त्म किया जाए। आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए मुक़दमों को वापस लिया जाए। केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाए। आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवजा दिया जाए और सिंधु बॉर्डर पर उनकी याद में स्मारक बनाने के लिए ज़मीन दी जाए। 

किसानों ने ये मांगें पहले भी एक पत्र के जरिए मोदी सरकार के सामने रखी हैं। जब कानून वापसी पर फैसला लेने में सरकार ने एक साल का लंबा वक्त लगा दिया तो इन छह मांगों में से कितनी मांगें सरकार मानती है और इन पर फैसला लेने के लिए कितना वक्त लगाती है, यह भी चुनावी नफ़ा-नुकसान देख कर ही तय होगा। अगर भाजपा को यह अंदेशा होता है कि किसानों से अब भी नुकसान की गुंजाइश है, तो मुमकिन है ये छह मांगें पूरी होने का आश्वासन मिल जाए और अगर कहीं ये उम्मीद भाजपा को बंधती है कि किसानों की नाराज़गी के बावजूद उप्र चुनाव में भाजपा अच्छा प्रदर्शन कर लेगी, तो फिर इन मांगों के पूरा होने पर संशय है। 

वैसे भी अभी जिस तरह प्रधानमंत्री ने कानून वापसी की घोषणा की है, उससे भाजपा के कई नेता और सरकार समर्थक पत्रकार खफ़ा हैं। हिन्दूमहासभा, आरएसएस, राजस्थान के राज्यपाल, पार्टी के नेता उनको ट्रोल कर रहे हैं। भाजपा नेता उमा भारती ने साफ कहा कि  ‘कानूनों की वापसी करते समय जो उन्होंने कहा, वह मेरे जैसे लोगों को बहुत व्यथित कर गया’। कुछ राष्ट्रवादी पत्रकारों ने भी यह व्यथा प्रकट की है कि साल भर तक वे जिस कानून के समर्थन में जनता के सामने बातें रखते रहे, अब किस तरह उन्हें नकारेंगे। 

कृषि कानूनों के प्रबल समर्थक एक कृषि अर्थशास्त्री ने खीझ कर पूछा है कि प्रधानमंत्री का यह कदम टैक्टिकल रिट्रीट है या आत्मसमर्पण! इन महाशय को दर्द है कि अब शायद लंबे समय तक भविष्य की कोई भी सरकार कृषि क्षेत्र में ‘सुधार’ के कदम उठाने की हिम्मत न जुटा सके! कानून वापसी पर अलग-अलग शब्दों में व्यक्त हो रही यह पीड़ा दरअसल कार्पोरेट क्षेत्र की नाराज़गी को ही अभिव्यक्त कर रही है। और प्रधानमंत्री मोदी ने कॉर्पोरेट आकाओं को संदेश देने के लिए ही शायद यह कहा कि वे अब भी सैद्धांतिक तौर पर मजबूती से कृषि कानूनों के पक्ष में खड़े हैं।

किसानों का पीएम मोदी को खुला पत्र, न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत 6 बड़ी मांग बताई
किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक खुला पत्र भेजा है. जिसमें किसानों ने एमएसपी समेत 6 बड़ी मांगे की है।

आपको बता दें कि संयुक्त किसान मोर्चा ने पीएम मोदी के नाम एक खुला पत्र भेजा है । जिसमें उन्होंने अपनी प्रमुख 6 मांगों को बताया है। इस पत्र में संयुक्त किसान मोर्चा ने एमएसपी की गारंटी के लिए केंद्रीय कानून सहित किसान आंदोलन की लंबित मांगों को उठाया है।
किसानों ने इस पत्र में लिखा है “देश के करोड़ों किसानों ने 19 नवंबर 2021 की सुबह राष्ट्र के नाम आपका संदेश होना हमने ध्यान दिया कि 11 राउंड की वार्ता के बाद आपने द्विपक्षीय समाधान की बजाय एकतरफा घोषणा का रास्ता चुना लेकिन हमें खुशी है। कि आप ने तीनों के उसी कानूनों को वापस लेने की घोषणा की है हम यह उम्मीद करते हैं कि आप की सरकार इस वचन को जल्द से जल्द पूरा करेंगी”।

इस खुले पत्र में किसानों ने इससे आगे लिखा, “ प्रधानमंत्री जी आप भली भांति जानते हैं कि तीन काले कानूनों को रद्द करना इस आंदोलन की केवल एकमात्र मांग नहीं है संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार के साथ हुई बातचीत की शुरुआत से ही तीन और मांगे उठाई थी”।

जानिए किसानों ने क्या प्रमुख मांग की
खेती की संपूर्ण लागत पर आधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य को सभी कृषि उपज के ऊपर, सभी किसानों का कानूनी हक बना दिया जाए ताकि देश के हर किसान को कम से कम सरकार द्वारा घोषित किया गया न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल के बिकने की गारंटी हो सके। सरकार द्वारा प्रस्तावित विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक 2020 _ 2021 का ड्राफ्ट वापस लिया जाए। 

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इससे जुड़े क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अधिनियम 2021 में किसानों को सजा देने के प्रावधान को हटाया जाए।दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, यूपी और अनेक राज्यों में हजारों किसानों को इस आंदोलन के दौरान सैकड़ों मुकदमों में फंसाया गया है उन सभी मुकदमों को वापस लिया जाए। लखीमपुर खीरी हत्याकांड के सूत्रधार और सेक्शन 120बी के अभियुक्त अजय मिश्र टेनी को प्रकाश को गिरफ्तार किया जाए।

अंतिम मांग में किसान संगठन ने कहा कि आंदोलन के दौरान सात सौ से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं उनके परिवार को मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। साथ ही सभी किसानों की समृद्धि में एक शहीदी स्मारक बनाने के लिए सिंधु बॉर्डर पर जमीन की व्यवस्था की जाए।

एक ओर किसानों के हितों का दावा, दूसरी ओर कार्पोरेट जगत को खुश करने वाली जुबान बोलने से सरकार के प्रति अविश्वास उपजना स्वाभाविक है। इसलिए फिलहाल संयुक्त किसान मोर्चा ने तय किया है कि अभी आंदोलन जारी रखा जाएगा। देखना होगा कि भाजपा दो नावों पर सवार होकर उप्र चुनाव में पार पा सकती है या फिर ‘दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’ वाली हालत भाजपा की होती है।

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