भगवान ने कहा और वेदों में भी वर्णित है कि धर्म केवल एक सनातन धर्म.
ऋषि-मुनियों ने गुरूकुल में शिष्यों को धर्मशास्त्र और शस्त्र की शिक्षा दी.
गुरुकुल शिक्षा पद्धति ब्रह्मांड में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा शाला और शिक्षा पद्धति

फतह सिंह उजाला

गुरूग्राम। भगवान ने भी कहा और वेदों में भी वर्णित है कि धर्म केवल एक ही है और वह सनातन धर्म ही है। जिसे हम अनादि काल से सनातन धर्म कहते आ रहे हैं । हम सभी को अपने इस सनातन धर्म के प्रति समर्पित- निष्ठावान होना चाहिए। वेदों के साथ ही प्रकांड ज्ञानी और मंत्रों के रचीयता ऋषि-मुनियों के द्वारा भी कहा गया है कि धर्म की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र दोनों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। यही कारण भी रहे कि गुरुकुलों में ऋषि-मुनियों और गुरुओं के द्वारा अपने शिष्यों को धर्मशास्त्र के साथ ही शस्त्र की शिक्षा भी दी जाती थी। रामायण काल हो या फिर महाभारत का काल हो, गुरुकुल परंपरा दोनों समय में मौजूद थी। ऋषि मुनि जोकि गुरुकुल के संस्थापक व संचालक रहे, वह स्वयं शास्त्र और शस्त्र दोनों में पारंगत रहे । यह अमिट सत्य हमारे धर्म ग्रंथों, वेदों सहित तमाम धार्मिक पुस्तकों में भी लिखा गया है । यह बात काशी सुमेरु मठ के पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज के द्वारा अपने भारत प्रवास के दौरान पाली ग्राम स्थित सिद्ध संत ब्रह्मलीन नागा निरंकारी महाराज की तपोस्थली में नागा महाराज के निर्वाण दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच कहीं गई।

इससे पहले धर्म-कर्म नगरी काशी सुमेरु पीठ के पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने देव दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर काशी के ही दशाश्वमेध गंगा घाट पर गंगा आरती स्थल पर पहुंच विधि-विधान और मंत्रोच्चारण के बीच गंगा मां की महा आरती स्वयं अपने हाथों से की । इस मौके पर गंगोत्री सेवा समिति के अध्यक्ष बाबू महाराज, सीए जी दुबे ,पदम श्री चंद्रशेखर सिंह, प्रभाकर त्रिपाठी, ब्रह्मचारी बृजभूषण का वैदिक परंपरा के अनुसार मंत्रोच्चारण के बीच अभिनंदन किया गया।

शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि वास्तव में गुरुकुल शिक्षा पद्धति ब्रह्मांड में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा शाला और शिक्षा पद्धति रही है।  बदलते समय के साथ शिक्षा का स्वरूप भी बदलता चला आ रहा है , आज के प्रतियोगी दौर में मौजूदा शिक्षा को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन भारतीय संस्कृति, संस्कार, सभ्यता का जो वास्तविक मूल है वह सनातन संस्कार ही है। जो कि हमें अपने सनातन धर्म और सनातनी होने के साथ-साथ हिंदुत्व का भी बोध कराता आ रहा है । उन्होंने कहा आज भी समय की मांग है की भारतीय सनातन संस्कृति संस्कार और सभ्यता को जीवित रखने के साथ ही आने वाली पीढ़ी के सुपुर्द किया जाने के लिए शास्त्र सहित शस्त्र की शिक्षा बहुत जरूरी है ।

शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि हमें अपने महापुरुषों और ऋषि-मुनियों सहित साधु-संतों तथा तपस्वियों को स्मरण करते हुए अपनी कृतज्ञता भी अवश्य व्यक्त करनी चाहिए। जब-जब सनातन धर्म ,परंपरा, संस्कृति, सभ्यता पर संकट आए हैं, तब तक कोई न कोई संत-महापुरुष हमारा अपना मार्गदर्शन करने के लिए इस पवित्र धरा धाम पर अवतरित होता रहा है । यही कारण है कि आज भी देशभर में विभिन्न स्थानों पर महायज्ञ, यज्ञ जैसे अनुष्ठान संपूर्ण वैदिक विधि विधान और मंत्रोच्चारण के साथ किया जाने की परंपरा जीवित है । उन्होंने पुनः दोहराया कि सनातन धर्म के लिए हमें अपने धर्म शास्त्रों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है और इसके साथ शस्त्र का भी ज्ञान होना आवश्यक है। प्रत्येक हिंदू परिवार के पास अपने धर्म की रक्षा हेतु शस्त्र उपलब्ध रहना हमारे अपने सुरक्षित भविष्य के लिए आज समय की मांग बन चुका है।

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