दहेज से करो परहेज , दिया संदेश

-कमलेश भारतीय

दहेज कोई आज या कल की सामाजिक बुराई नहीं । यह प्राचीन काल से चली आ रही है और ऋषि मुनि भी इससे अछूते न रहे थे । ‘अभिज्ञान शकुंतलम्’ नाटक में ऋषि भी अपने सामर्थ्य अनुसार शकुंतला को कुछ अर्पित करते हैं, ऐसा वर्णन है । लेकिन जो अर्पण खुशी खुशी किया जाता था , वह धीरे धीरे एक आवश्यक बुराई बनता चला गया । आधुनिक काल में यह बहुत भयंकर रूप ले चुका है । नये नये धनाढ्य वर्ग ने इस बीमारी को और भी फैलाने में मदद की है जो विवाह समारोह को इतना खर्चीला बनाने में लगे हैं कि आम आदमी वैसा विवाह समारोह करने की सोचते भी कांप जाता है ।

आपको याद है हरियाणा के गुरुग्राम में एक राजनेता की बेटी की शादी पर भव्य पंडाल लगाकर शानदार भोज की ? बड़ी चर्चा रही थी इस शादी की । कभी आपने सुना था प्री वैडिंग शूट ? अब यह बाकायदा प्रचलन में है और प्री वैडिंग शूट करना प्रोफैशन का रूप ले चुका है । कभी विवाह समारोह के लिए पूरे गली मोहल्ले के लोग जुटते थे और केले के तने और आम के पत्तों से मंडप सजाये जाते थे, रंगीन कागजों से झंडियों से पंघाल सजाये जाते थे और पहले बाराती खाना खाते थे और बाद में घराती । बल्कि खुद आस पड़ोस के लोग बड़े प्यार व अदब से बारात को खाना परोसते थे । अब तो न पता चले बाराती का और न घराती का । पहले आओ , पहले खाओ । शगुन दो और चलते चलो । न किसी ने दूल्हा देखा और न देखी दुल्हन । बस । हो गया एक इवेंट । कोई नहीं रुकता फेरे होने तक सिवाय निकट संबंधियों के । विदाई भी कब हो जाती है पता नहीं चलता किसी को । ऐसे हो गये हैं विवाह समारोह । एक बड़ा आयोजन और फिर कितना देन लेन ? किसी को कानों कान खबर तक नहीं होती । सिर्फ तब होती है जब वर पक्ष ऐन मौके पर कुछ और महंगी शर्त रख देता है और वधू पक्ष शादी की बजाय बारात लौटाता है और बारात का स्वागत् थाने में होती और वहां मिलन नहीं दे लेकर विदाई समारोह होता है ।

अभी हरियाणा के कैथल में कार्यरत सहायक प्रोफैसर ने अपने विवाह समारोह में शगुन के तौर पर मिलने वाले ग्यारह लाख रुपये लौटा कर संदेश दिया कि दहेज अभिशाप है और इसका विरोध होना चाहिए । यह बहुत अनुपम उदाहरण है और ऐसे उदाहरण इतने हो जायें कि ये समाज को बदल डालने की भूमिका निभायें । वैसे हम नारा देते हैं -बेटी पढ़ाओ , बेटी बचाओ लेकिन यह नहीं जोड़ते कि दहेज से दूर रहो और गर्व से कहो कि दुल्हन ही दहेज है । वह दिन कब आयेगा जब समाज दुल्हन को ही दहेज मानने लगेगा और बेटियों के जन्म को अभिशाप न माना जायेगा । कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराई भी इसी से पैदा हुई है और इसके साथ ही मिट सकती है ।
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

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