धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर पर हुआ छठ पर्व पूजन परम्परा का निर्वहन

कोरोना महामारी से राहत मिलने के बाद बड़ी संख्या में ब्रह्मसरोवर पर पहुंचे श्रद्धालु।
कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर पर हजारों की संख्या में पहुंचे लोग।
छठ पर्व पर डूबते सूर्य को दिया अर्ध्य।
गुरुवार को देंगे उगते सूर्य को अर्ध्य।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र, 10 नवम्बर : कोरोना महामारी से राहत मिलने के बाद धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर पर करीब दो वर्ष बाद पूर्वांचल के लोगों की भीड़ का नजारा देखने को मिला। भारी संख्या में लोग श्रद्धा के साथ ब्रह्मसरोवर पर पूजा करने तथा सूर्य को अर्ध्य देने पहुंचे। देश के अन्य हिस्सों की भांति छठ पर्व का व्रत का बुधवार को डूबते सूर्य को श्रद्धालुओं ने अर्ध्य दिया। ब्रह्मसरोवर के तट पर आये श्रद्धालु वीरवार को उगते सूर्य को अर्ध्य देकर छठ पर्व का परायण करेंगे। श्री पूर्वांचल छठ पर्व महासभा से जुड़े सुनील राय ने बताया कि छठ पूजा का पर्व उत्तर प्रदेश -बिहार समेत देश के कई भागों में मनाया जाता है। खासकर जहां पूर्वांचल व बिहार के लोग रहते हैं। दिवाली के बाद छठ को सूर्य उपासना का पर्व माना जाता है। आज व्रत रखने वाले को सूर्य उदय तक पानी नहीं पीना होता है। इसलिए इस व्रत को काफी कठिन व्रत माना जाता है। कुरूक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर में छठ पर्व की दो वर्ष बाद कोरोना महामारी से राहत के बाद अधिक गहमागहमी रही। कुछ राजनेताओं ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने के लिए जहां हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। इस बार अधिक संख्या में लोग ब्रह्मसरोवर के तट पर पहुचे। डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया। पूर्वी भारत के त्योहार छठ पर्व की छटा कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर में भी देखने को मिली। विभिन्न क्षेत्रों से लोग ब्रह्म सरोवर पर छठ पर्व मनाने के लिए पहुंचे। छठ पर्व में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। लोग निरोगी काया और संतान की सुख समृद्धि की कामना करते है। और भगवान सूर्य को अर्घ देकर उनकी पूजा करते हैं।

छठ पर्व का महत्व
सुनील राय ने बताया कि यह व्रत सूर्य भगवान, उषा, प्रकृति, जल, वायु आदि को समर्पित है। इस त्यौहार को विशेषकर पूर्वांचल राज्यों में मनाया जाता है। इस व्रत को करने से निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख प्राप्त होता है। कहा जाता है कि यह व्रत संतान की रक्षा और उनके जीवन की खुशहाली के लिए किया जाता है। इस व्रत का फल सैकड़ों यज्ञों के फल की प्राप्ति से भी ज्यादा होता है। सिर्फ संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है।

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