भैया दूज पर सोनीपत रोहट में साध संगत को सत्संग फरमाते हुए हजूर कंवर साहेब जी महाराज
सत्संग हर समस्या का समाधान, जिसने सत्संग को अपनाया उसे कोई कष्ट नहीं होता : हजूर कंवर साहेब जी महाराज
गुरु वचन पर चलने वालों के 84 के बंधन कट जाते हैं : हजूर साहिब जी महाराज

सोनीपत रोहट जयवीर फोगाट

06 नवम्बर,सृष्टि में काल महाराज उथल पुथल मचाता रहता है लेकिन जिसने सत्य को जान लिया वो इस उथल पुथल से विचलित नहीं होता। सत्य केवल सन्तो के सत्संग से ही जाना जा सकता है। कोरोना काल का भयावह दौर इस बात का गवाह है कि जिसने सत्संग को अपनाया उसे कोई कष्ट नहीं हुआ। सत्संग समझ वालो के लिए है। जो सन्तों के वचन को समझ गया वो तीर गया क्योंकि सन्त बोलें सहज स्वभाव सन्त वचन मिथ्या ना जावे। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने सोनीपत के रोहट कस्बे में रोहतक रोड़ पर स्थित राघास्वामी आश्रम में फरमाए। भैया दूज पर साध संगत को सत्संग देते हुए गुरु महाराज जी ने फरमाया कि हिंदुस्तान की परम्पराए इतनी गहरी हैं यदि इनको पूर्ण निष्ठा के साथ मनाया जाए तो इस समाज से सब कुरीतियां मिट जाएं। आज हम जितना इनसे दूर होते जा रहे हैं समाज में उतने ही कष्ट बढ़ते जा रहे हैं। 

हुजूर महाराज जी ने भैया दूज के त्योहार की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भैया दूज का त्योहार केवल भाई बहन के प्रेम का प्रतीक भर नहीं है अपितु ये हमारी समृद्ध जड़ो की और इशारा करता है। भैया दूज के त्योहार की कहानी ब्रह्मा जी ने नारद को सुनाई थी। कहानी अनुसार यम की यमुना नाम की बहन थी। बहन भाई को हमेशा अपने घर आने का न्यौता देती थी लेकिन कार्य का ज्यादा भार होने के लिए यम नहीं जा पा रहे थे। एक दिन जब बहन ने कार्तिक शुक्ल की दूज पर जोर दिया तो यम टाल नहीं सके। बहन के घर जाने के लिए यम महाराज ने उस दिन अपने सारे कार्य बंद कर दिए और रूहो के लिए उस दिन नरक के द्वार बंद कर दिए। तभी से इस दिन की प्रथा पड़ी।

भैया दूज का त्योहार भाई की लंबी उम्र के लिए बहन की दुआ का त्योहार है।कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने इस दिन बहन की दुआ लेने वालों के लिए नरक के द्वार बंद रखने का हुक्म सुनाया। इसके अलावा भी अनेको लौकिक कथाएं हैं। कथाएं चाहे कितनी ही हो लेकिन उनका सन्देश हमेशा सकारात्मक ही होता है। उन्होंने कहा कि कटु वचन कहना सबसे बुरी बात है। सन्त तो फरमाते हैं कि “मनसा, वाचा कर्मणा” दुख काहू ना दे। “मन, वचन और कर्म से पवित्र हुए बिना आप आध्यात्मिकता के मार्ग पर नहीं चल सकते। उन्होंने कहा कि संगति हमेशा सज्जन की करो क्योंकि दुर्जन की संगति तो भठी के अंगार की भांति है। उन्होंने कहा कि भक्ति के मार्ग में अनेको बाधाएं हैं। ये जीवन एक नौका की भांति है जो संसार रूपी महासागर में तैर रही है। इसी सांसारिक महासागर में “काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार” रूपी विशालकाय मगरमच्छ हैं जो नौका को डुबाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि इन मगरमच्छों से केवल सन्त सतगुरु ही हमें बचा सकते हैं। गुरु जी ने कहा कि लक्ष्य के बीच की बाधाएं आपकी परीक्षा लेती हैं। ज्यो ज्यो आप आगे बढोगे त्यों त्यों समस्याए भी बड़ी होती जाएगी। जो इन बाधाओं से पार पा जाता है वही भक्ति के लक्ष्य को भेद सकता है। उन्होंने कहा कि जो दीन अधीन रहता है उसे बड़े से बड़ा दुश्मन भी माफ कर देता है लेकिन हमारा अहंकार हमें दीन बनने नहीं देता। उन्होंने कहा कि दासों के भी दास बन कर रहो। जो दुनियादारों के सामने हार जाता है वो परमात्मा के दरबार में अवश्य जीतता है। परमात्मा के भक्त का तो हारना ही अच्छा है क्योंकि जो हार जाते हैं वो परमात्मा के हो जाते हैं। 

उन्होंने प्रेरक वचन परोसते हुए कहा कि

एक गुरु और शिष्य कहीं जा रहे थे। शिष्य ने गुरु से याचना कि रास्ता काटने के लिए कोई ज्ञान वचन सुनाओ। गुरु ने कहा कि एक ही वचन है कि कभी कुछ बनना नहीं। आगे चल कर उन्हें एक घर दिखाई दिया, दोनो थकेहारे थे। दोनो को नींद आ गई। वो कमरा किसी राजा का शिकारगाह था। राजा के सैनिक आये और चेले से पूछा कि कौन है तू वो बोला महात्मा हूँ। सैनिकों ने उसे धक्का देते हुए कहा कि इतने ठाट से सो रहा है फिर तू कैसा महात्मा है। फिर सैनिकों ने गुरु से पूछा कि आप कौन हो। गुरु ने कहा कि मेरी तो कोई हैसियत ही नहीं है, मैं तो आपके रहमो करम पर जीने वाला हूँ।सैनिकों ने कहा कि आप तो कोई महात्मा लगते हो। चेले ने कहा कि मैंने कहा तो मुझे क्यों पीटा। गुरु ने कहा कि मैंने कहा था कुछ बनना नहीं लेकिन तुमने वचन नहीं माना और अपने आप को महात्मा बताया। गुरु जी ने फरमाया कि ये कहानियां प्रेरणा के लिए होती हैं। ये प्रसंग भी हमें यही प्रेरणा देता है कि जो गुरु के वचन पर नहीं टिकता उसे मुसीबत झेलनी ही पड़ती है। हुजूर महाराज जी ने कहा दुनियादारी के व्यवहार तो चलते रहेंगे लेकिन उनको जीवन यापन का हेतु तो बनाओ लेकिन उनके भोगी ना बनो। अपनी नैया सतगुरु के हवाले कर दो फिर ये कभी नहीं डूबेगी। कभी ऐसा कर्म ना करो जो दूसरों को भी दुख पहुंचाये और खुद को भी उसका बुरा परिणाम भोगना पड़े। उन्होंने कहा कि हमें सबसे उत्तम चोला इंसानी चोला मिला। सोने पर सुहागा यह कि हमें परमात्मा ने बुद्धि और विवेक दिया। सन्त सतगुरु इसी विवेक को चेतन करते हैं।

हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि किसी को सुख नहीं भी दे सकते हो तो कम से कम दुख तो मत दो। उन्होंने कहा कि परमात्मा का सुमिरन किया करो। परहित और परोपकार किया करो। मत भूलो कि जिससे आप धोखा कर रहे हो वो भी उसी परमात्मा का अंश है जिसके आप हो। परमात्मा आपसे दूर नहीं है वो तो आपके हृदय में ही है। परमात्मा के दर्शन के लिए आपको स्वयं के अंदर उतरना होगा। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि दुनियादारी की बातों के लिए तो हम दिन देखते हैं ना रात लेकिन परमात्मा का भजन से बचने के लिए हम बहाने बनाते हैं। मत भूलो कर्म का परिणाम हर किसी को भोगना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि कितने नाम है जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चल कर अमर हो गए। जो डांवाडोल है उसका कल्याण नहीं हो सकता। सन्तो की बात पर अमल किया करो। धोखा धड़ी को छोड़ कर परमात्मा की शरणाई में रहो। अपने जीवन को पाक साफ करो। मेहनत का अन्न खाओ। पाक पवित्र अन्न आपके मन को पाक पवित्र रखता है। हक हलाल की कमाई खाओ। पर त्रिया और पर धन से कभी नेह ना लाओ। प्रकृति की रक्षा करो। सन्तान को अच्छे संस्कार दो। घरों में प्यार प्रेम बना कर रखो।

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