ऋषि प्रकाश कौशिक

सत्तारूढ़ पार्टी के उपचुनाव हारने के बाद शब्दों के जादूगर सक्रिय हो जाते हैं और मुख्यमंत्री के टूटे मनोबल को मजबूत और चमकता, दमकता दिखाने में जुट जाते हैं। मुख्यमंत्री भी ऐसे जादूगरों को अपने भरोसे की चहारदीवारी में हर वक्त रखते हैं ताकि संकट की घड़ी में अपनी जादुई वाणी या सोशल मीडिया की पोस्ट से जनता को ऊंचे मनोबल दिखा सकें। उन जादूगरों का काम है, हार में से जीत ढूँढ़ना और नकली जीत पर शब्दों का लेप चढ़ा कर अपने आका को महान साबित करना।
लोकतंत्र में हार को हार की तरह स्वीकार करना ही महानता होती है लेकिन शब्दों के जादूगर अपने आका को महान बनने ही नहीं देते। वे यह साबित करने पर अपनी सारी ऊर्जा लगा देते हैं कि हम हारे ही नहीं हैं; हारे तो वो हैं जो जीत गए। कितने नादान हैं वो लोग जो एक साल में दो उपचुनाव हारने के बाद भी मुख्यमंत्री और उनकी नीतियों की नाकामी पर एक बार भी उँगली नहीं उठाते। उल्टे मुख्यमंत्री को यह भरोसा देते हैं कि आप हार को दिल पर मत लेना क्योंकि हम हार कर भी जीते हैं। आज तक समझ नहीं आया, यह कैसी जीत है! गोबिंद कांडा को योद्धा बता कर अपने हार के ज़ख्मों पर लेप लगाने की नाकाम कोशिश खुद को और मुख्यमंत्री को भ्रमजाल डालने के सिवा कुछ नहीं है।
पार्टी में दबे स्वरों में मुख्यमंत्री का विरोध होने लगा है। पार्टी के छोटे बड़े नेता और कार्यकर्ता अफसोस करते हैं कि हमारी सरकार होने के बावजूद हम उपचुनाव हारते हैं। सरकार के पास जनता को देने के लिए सब कुछ होता है, फिर भी सरकार से जनता खुश नहीं है। इसका एक ही कारण है कि जनता सरकारी नीतियों से नाखुश है। सरकार का अर्थ है सरकार के मुखिया यानी मुख्यमंत्री। बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को बखूबी समझ आ गया है कि सरकार की नीतियां दोषपूर्ण है इसलिए एक साल में दो उपचुनाव हार गए। सत्तारुढ़ पार्टी लगातार दो उपचुनाव हारती है तो इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि सरकार जनता का भरोसा खो चुकी है और मुखिया को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा इस्तीफा दे देना चाहिए।
यह सब लिखने का विचार मेरे मन में भाजपा नेता जवाहर यादव की पोस्ट पढ़कर आया
ऐलनाबाद में राकेश टिकैत पिटे: जवाहर यादव
भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा ने अपने को योद्धा साबित किया।
लेकिन इस चुनाव में अगर कोई नकारे गये तो वो हैं राकेश टिकैत। 2019 के मुक़ाबले 2021 के उपचुनाव में लगभग 1500 वोट ज़्यादा पड़े। उसके बाद भी राकेश टिकैत जिसकी गठरी में पिछली जीत को सवा करना चाहते थे, वो आधी रह गयी। जिसका अर्थ ये है कि किसान का समर्थन मनोहर सरकार के तरफ बढ़ा है और जिन्होंने तीन कृषि कानूनो का विरोध किया था, उनका घटा है।
हरियाणा में मनोहर लाल जी की सरकार 56 विधायकों के साथ उसी मजबूती पर है जितनी अक्तूबर 2019 में थी।
अभय चौटाला को हार और जीत के संशय से जीतने पर बधाई।