भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। किसी भी दिवस को मनाने के पीछे लक्ष्य यह होता है कि जिसके लिए कार्यक्रम किए जा रहे हैं, उसका विकास हो।1966 को हरियाणा का जन्म हुआ। तबसे उसने तरक्की के आयाम स्थापित किए, इसमें संदेह नहीं। परंतु इसके साथ-साथ बड़ी कमियां भी रहीं और मेरी दृष्टि में आयोजन करने का लक्ष्य यह है कि प्रदेश का विश्लेषण किया जाए कि कहां कमियां हैं, उन्हें कैसे सुधारा जाए तभी आयोजन सार्थक माना जाएगा।

आज चंडीगढ़ में राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने प्रदेश के मंत्रियों के साथ हरियाणा दिवस के उपलक्ष्य में बड़े-बड़े आयोजन किए और उन आयोजनों में सरकार की सिर्फ उपलब्धियां ही गिनवाई गईं और अनेक घोषणाएं कीं। कुछ तो पहले भी की जा चुकी थीं लेकिन आज के आयोजन को अधिक प्रभावी दिखाने के लिए उनको भी जोड़ लिया गया। आयोजन देख ऐसा प्रतीत हुआ कि यह आयोजन हरियाणा प्रदेश का न होकर हरियाणा सरकार का है या यूं भी कहें कि मुख्यमंत्री का है तो शायद अतिश्योक्ति न होगी।

वर्तमान में प्रदेश के लिए सबसे बड़ी समस्या किसान आंदोलन है, जिसके चलते हरियाणा के मंत्री आधे से अधिक हरियाणा में अपनी मर्जी से कोई कार्यक्रम भी नहीं कर सकते। उसका कोई जिक्र नहीं। इसी प्रकार सरकार तो बिना खर्ची-बिना पर्ची नौकरी के दावे ठोक रही है, जबकि हरियाणा सर्विस सिलेक्शन बोर्ड की कार्यशैली और पेपर लीक मामले हरियाणा की शान में पूरे देश में बट्टे लगा रहे हैं।

आज ही पुलिस भर्ती के प्रश्न पत्र के अनुचित होने के बारे में अनेक आवाजें उठ रही हैं, उनका जिक्र नहीं। कोरोना की मार से हरियाणा का जनमानस अभी उभर नहीं पाया है। हरियाणा के उद्योग सरकारी मदद के लिए निहार रहे हैं। उद्योग सही नहीं चल रहे हैं। उद्योग अच्छी प्रकार से नहीं चलेंगे तो मजदूरों को काम कैसे मिलेगा? तात्पर्य यह कि बेरोजगारी मुंहबाये खड़ी है। युवा वर्ग त्रस्त है। उसका कोई जिक्र नहीं।

कोरोना के कारण सरकार का पूरा ध्यान स्वास्थ सेवाओं की तरफ रहा सरकार के अनुसार परंतु स्वास्थ सेवाएं आज भी बदहाल हैं। डेंगू, मलेरिया के मरीज अब भी अस्पतालों की व्यवस्था से कतई संतुष्ट नहीं हैं। यहां तक कि स्वास्थ्यकर्मी जिनमें आशा वर्कर, आंगनवाड़ी वर्कर आदि-आदि अपनी उपेक्षा से मन में घुट रही हैं। उनका कोई जिक्र नहीं।

सरकार की बात करें तो सरकार के विधायक ही बार-बार शिकायत करते हैं कि अधिकारी उनकी बात नहीं मानते। जब विधायक ही अधिकारियों की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं हैं तो आम जनता का क्या हाल होगा और जब विधायकों की मुख्यमंत्री से शिकायत होने के बाद भी कार्यवाही नहीं होती तो उन विधायकों और सरकार का सम्मान क्या रहेगा? इसका कोई जिक्र नहीं।

वर्तमान में ऐसा लगता है कि इस सरकार में कामयाब होने का एक ही नियम है, अपने से ऊपर वाले को खुश रखो। उसके प्रति पूर्ण निष्ठा निभाओ। ऐसा ही कुछ माननीय मुख्यमंत्री मनोहर लाल जी कर रहे हैं, जिसका प्रमाण बाढ़सा में कैंसर इंस्टीट्यूट के उद्घाटन अवसर पर मिला। जब प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री की प्रशंसाओं और योग्यताओं के वर्णन करने में कोई कसर नहीं रखी, जबकि हरियाणा में देखें तो मुख्यमंत्री की कार्यशैली के विरोधी उनके अपने मंत्रीमंडल में भी हैं। अनेक सांसद भी हैं और जनता की बात तो हम क्या कहें, सर्वे ही बार-बार बताते हैं मुख्यमंत्री की लोकप्रियता के बारे में।

इसका अर्थ यही निकला कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री की नीतियों लागू करने में और उनके प्रति निष्ठा में कोई कमी नहीं छोड़ते तो प्रधानमंत्री ने उनकी प्रशंसाओं के पुल बांध दिए, जबकि जनता की ओर मुख्यमंत्री का ध्यान कम है और इसी कारण मुख्यमंत्री को जनता पसंद नहीं करती। यह विरोधाभास है, इस पर भी मनन होना चाहिए।

प्रदेश की बातें चंद शब्दों में कही नहीं जा सकती, संक्षेप में यही है कि सरकार आत्ममुग्ध है और अपनी प्रशंसा के पुल बांधती रहती है, जबकि उनकी अपनी बातों में विरोधाभास भी होता है परंतु सरकार अपने में मस्त रहती है, जनता की सुनती नहीं।

इसीलिए मन व्यथित है कि हरियाणा दिवस के आयोजन पर जो सार्थकता होनी चाहिए थी, वास्तविकता से हरियाणा की स्थितियों का गंभीरता से अवलोकन करना चाहिए था, जिससे कमियां ढूंढ उनको सुधारने के प्रयास कर हरियाणा को प्रगति के पथ पर बढ़ाया जा सके परंतु आज ऐसा कुछ हुआ नहीं।

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