वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक कुरुक्षेत्र, 28 अक्टूबर :- शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की संस्था महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान एवं श्री जयराम विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में जयराम विद्यापीठ के परिसर में आयोजित तीन दिवसीय क्षेत्रीय वेद सम्मेलन में विशिष्ट वक्ता के रूप में सम्मिलित आईआईएचएस कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामचंद्र ने कहा कि सत्य सनातन भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसरण से ही संपूर्ण विश्व में शांति एवं सद्भावना की स्थापना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि वेद, दर्शन, उपनिषद, आरण्यक एवं गीता में भारतीय मनीषियों की विशाल ज्ञान मनीषा का सागर सुरक्षित है। सदियों से ये ग्रंथ मानवता का पथ प्रशस्त कर रहे हैं। अथर्ववेद में पृथ्वी को माँ के रूप में संबोधित किया गया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों के अभाव में समाज में अशांति एवं सुरक्षा का वातावरण बंद रहा है। वेदों में संपूर्ण विश्व को एक घोंसला बताया गया है जिसमें शिक्षित एवं अशिक्षित, ज्ञानी एवं अज्ञानी भी परस्पर सहयोग करते हुए एक छाते के नीचे आराम से रह सकते हैं। गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि जीवन में अत्यंत विषम स्थिति आने पर भी निराश नहीं होना चाहिए और स्वयं की आत्मा को कष्ट में नहीं डालना चाहिए। उपनिषद, महाभाष्य एवं योग सूत्रों का उल्लेख करते हुए डॉ. रामचन्द्र ने कहा कि जीवन मूल्यों से युक्त एवं वैदिक परंपरा से ओतप्रोत शिक्षा से ही स्वच्छ, समृद्ध एवं सम्पन्न समाज का निर्माण किया जा सकता है। माता, पिता एवं आचार्य का सामूहिक प्रयत्न नर को नारायण बना देता है। इस सत्र की अध्यक्षता लब्धप्रतिष्ठ शिक्षाविद प्रोफेसर राम सलाही द्विवेदी ने की। डॉ. रामचंद्र को इस विशिष्ट व्याख्यान के लिए श्री जयराम विद्यापीठ के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी, राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति प्रोफेसर रमेश कुमार पांडेय तथा समापन सत्र के मुख्य अतिथि एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर सोमनाथ सचदेवा ने सम्मानित किया। कार्यक्रम में देश भर से वेदमूर्ति आचार्य गण, शिक्षाविद, शोधार्थी एवं सम्मानित नागरिक बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए। Post navigation हमें देश में समस्या का नहीं बल्कि समाधान का हिस्सा बनना चाहिए : डा. संजीव कुमारी। भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति : स्वामी ज्ञानानंद