Category: साहित्य

मेरी यादों में जालंधर …………. आईएएस हो तो ऐसी संवेदनशील : दीप्ति उमाशंकर

कमलेश भारतीय हिसार में मैं सन् 1997 में आया था , पहली जुलाई से ! तब नहीं जानता था कि इस हिसार में कैसे पत्रकारिता में पांव जमा पाऊंगा !…

मेरी यादों में जालंधर ……… जीना इसी का नाम है : अनिल राव

कमलेश भारतीय क्या आपको सन् 1995 में डबवाली में हुए भयंकर अग्निकांड की याद है ? किसी और को याद हो या न हो एक शख्श है जिसे यह अग्निकांड…

साहित्य से दोस्ती : विकास नारायण राय

कमलेश भारतीय आज एक ऐसे व्यक्तित्व को याद करने जा रहा हूँ, जिन्होंने अपने दम पर ‘ साहित्य से दोस्ती’ जैसी मुहिम चलाई ।इसी के अंतर्गत कभी ‘ प्रेमचंद से…

मेरी यादों में जालंधर ……. आम लोग के दर्द को बयान करतीं कविताएँ

कमलेश भारतीय आपको एक थोड़ी हंसी मज़ाक की बात बताता हूँ, भारतीय जी ! जी हाँ, बताइये । जब पंचकूला में हरियाणा के शिक्षा विभाग के लिए ‘ शिक्षा सदन…

मेरी यादों में जालंधर – भाग बत्तीस ……… आईएएस का साहित्य में योगदान क्यों नहीं नहीं मानते हो रहा है कि…

कमलेश भारतीय क्या आप कमलेश भारतीय हैं?मैं हरियाणा सचिवालय की वीआईपी लिफ्ट के सामने खड़ा था और एक सभ्य, सभ्रांत सी महिला मुझसे यह सवाल कर रही थीं ! मैं…

मेरी यादों में जालंधर – भाग बत्तीस ……… आईएएस होने के बावजूद साहित्य में रूचि…..

कमलेश भारतीय यादें आ रही हैं, बेतरतीब और बेहिसाब ! सबकी अपनी अपनी यादें होती हैं और यादों से मिलते हैं संदेश ! जो जीवन भर की कमाई कही जा…

मेरी यादों में जालंधर – भाग इकतीस …….भगत सिंह और पाश से जुड़ने के दिन

कमलेश भारतीय चंडीगढ़ के मित्रों के नाम या उनका काम, स्वभाव बताते संकोच नहीं हुआ । इतने दिन में दो बार बड़े भाई जैसे मित्र फूल चंद मानव का कहीं…

मेरी यादों में जालंधर- भाग तीस ……… रमेश बतरा- कभी अलविदा न कहना !

कमलेश भारतीय क्या चंडीगढ़ की यादों को समेट लूं ? क्या अभी कुछ बच रहा है ? हां, बहुत कुछ बच रहा है। रमेश बतरा के बारे में टिक कर…

मेरी यादों में जालंधर- भाग चौबीस : हरियाणा से जुड़ा हिसार के रिपोर्टर से पहले रिश्ता….

कमलेश भारतीय फिर एक नया दिन, फिर एक न एक पुरानी याद ! पंजाब विश्विद्यालय की कवरेज के दिनों एक बार छात्रायें अपनी हाॅस्टल की वार्डन के खिलाफ कुलपति कार्यालय…

मेरी यादों में जालंधर – भाग तेइस : वह पहली कहानी के छपने की पुलक…

कमलेश भारतीय यादें भी क्या हैं, आती हैं तो आती ही चली आती हैं, इनका न कोई ओर, न कोई छोर! जैसे पतंग उड़ाने वाली डोर की चरखड़ी, जो लगातार…

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