कमलेश भारतीय

यादें आ रही हैं, बेतरतीब और बेहिसाब ! सबकी अपनी अपनी यादें होती हैं और यादों से मिलते हैं संदेश ! जो जीवन भर की कमाई कही जा सकती हैं !

चंडीगढ़ का मेरा पहला दौर सात साल का रहा । इतना छोटा भी नहीं और इतना बड़ा भी नहीं ! फिर तो हिसार ट्रांसफर क्या हुई, जैसे मैं अपनी महबूबा से बिछुड़ गया । क्यों बिछुड़ गया ? शायद एक रिपोर्टर का दम न्यूज़ रूम में घुटने लगा था ! शायद स्थितियां इस लायक नहीं रही थीं कि और समय डेस्क पर या न्यूज़ रूम में दिल लगाता ! जब हिसार चलने लगा तब मेरी सीनियर डाॅ रेणुका नैयर ने कहा था कि तुम साहसी ही नहीं, दुस्साहसी हो ! पहले बढ़िया प्रिंसिपल की नौकरी छोड़ कर उप संपादक बनने चले आये और अब फिर रिपोर्टर बन कर राजस्थान के साथ लगते हिसार जा रहे हो, सो रेणुका की मानें तो यह गुनाह मैंने किया और चंडीगढ़ जैसे खूबसूरत शहर से बिछुड़ गया !

इस तरह हिसार आ पहुँचा। सन्‌1997 से लेकर सन् 2011 तक हरियाणा के हर नेता से हिसार में मिलने, बतियाने व उन पर लिखने का अवसर मिला । अचानक से रिटायरमेंट से पहले मुझे हरियाणा ग्रंथ अकादमी का उपाध्यक्ष बना दिया गया । मैं सोचता रहा कि जिस रिपोर्टिग के लिए चंडीगढ़ जैसे खूबसूरत शहर को छोड़कर आया, वही रिपोर्टरी क्या मुझे छोड़कर जा रही है ? इसी कशमकश में रहा पंद्रह दिन, आखिर ज्वाइन किया ।

हमारे कार्यकारी अधिकारी थे डाॅ कृष्ण कुमार खंडेलवाल ! सभी अकादमियों में बराबर दिलचस्पी रखने वाले ! आज मन डाॅ खंडेलवाल और श्रीमती धीरा खंडेलवाल की यादों को दस्तक दे रहा है। डाॅ खंडेलवाल एक प्रकार से सभी अकादमियों को खूब सक्रिय देखना चाहते थे और स्वयं साहित्य में गहरी रूचि रखते थे । एक दिन जब मैं सचिवालय स्थित उनके कार्यालय में मिलने गया तब मैंने पूछा कि यह बात सुन रहा हूँ कि हमारी अकादमी की और से कोई पत्रिका निकालने की आपकी इच्छा है?

बिलकुल!

कैसी पत्रिका?
-कथा पत्रिका, बिल्कुल ‘सारिका’ जैसी ! बना सकते हो !

क्यों नही ! बना सकता हूँ क्योंकि ‘सारिका’ में मेरा दोस्त रमेश बतरा काम करता था और मैने ‘सारिका’ को बनते देखा है, दूसरे मुझे ‘ दैनिक ट्रिब्यून” के कथा कहानी पेज को संपादित करने का सात साल का अनुभव है !

तो फिर तैयारी करो !
इसी बीच दूसरे आईएएस व साहित्यकार शिवरमण गौड़ को भी मिला और उन्होंने पत्रिका के नाम सुझाये ! यह बता दूं कि शिवरमण गौड़ के दो काव्य संग्रह आ चुके हैं और इनके घर कविताएँ सुनने की सुखद सी स्मृतियां भी हैं !

आखिरकार ‘ कथा समय’ नाम तय हुआ और पंचकूला की उपायुक्त आशिमा बराड़ से मिले, जिनकी संयोग से हिसार में ही पहली पहली पोस्टिंग हुई थी तो उन्होंने पूरा सहयोग दिया ! वे खुद साहित्य का आनंद लेने वालों में से एक हैं। मेरी हर किताब पढ़ती रही हैं । इस तरह आखिरकार हरियाणा दिवस पर ‘कथा समय’ का प्रवेशांक आ गया ! मैं भी दोबारा एक रिपोर्टर से साहित्यिक पत्रिका के माध्यम से सामने आया ! अपनी होम पिच पर !फिर एक बार ‘संवाद’ में मुलाकात हुई डाॅ खंडेलवाल से तो बोले कि ‘कथा समय’ को ‘सारिका’ की ही तरह बहुत खूबसूरत निकालेंगे और प्रतियां होंगी पांच हज़ार ! इस तरह जनवरी, 2012 से कथा समय ‘सारिका’ जैसी खूबसूरत और हरियाणा से एक महत्त्वपूर्ण कथा पत्रिका बनकर सामने आई तो इसके पीछे डाॅ खंडेलवाल का ही सपना और कहिये कि विजन था ! मैं तो एक माध्यम मात्र बना ! इतनी दिलचस्पी लेते कि पत्रिका के हर अंक का विमोचन करते और सूचना विभाग की ओर से समाचार भी आता ताकि नयी पत्रिका का खूब प्रचार हो सके ! वे सभी अकादमियों की पत्रिकाओं में इतनी ही दिलचस्पी लेते ! कभी कभी अकादमी भवन भी आ जाते !

कभी हिमाचल में इतने ही अच्छे आईएएस अधिकारी रहे महाराज कृष्ण काव, जिन्होंने हिमाचल के साहित्यकारों को भरपूर प्रोत्साहन दिया और बड़े बड़े आयोजन करवाये, तो उनकी तरह ही हरियाणा को भी एक कृष्ण नाम वाला आईएएस मिल गया, जिन्होंने लगभग हर माह अकादमियों को कोई न कोई साहित्यिक आयोजन करने के लिए प्रेरित किया ! राज्यपाल भवन में न जाने कितने आयोजन करवाये ओर‌ वे सबको सम्मान देना भी जानते थे !

एक बार अकादमी में कोई कार्यक्रम था, जिसमें मैं और मोहन मैत्रेय सामने आम साहित्यकारों की तरह कुर्सियों पर बैठे थे । अचानक दो कुर्सिया़ं मंच पर लगाई गयीं और हमारे नाम पुकारे गये कि मंच पर आकर बैठें ! यह सम्मान और पैनी निगाह नहीं भूल पाया ! डाॅ खंडेलवाल ने अपने अकादमियों से जुड़े रहने पर समय समय पर पुरस्कार न केवल समय पर दिलवाये बल्कि पुरस्कारों की राशि बढ़ावाने में भी सफल रहे ! किसी अकादमी को कभी पैसे की कमी महसूस न होने‌ दी !

खैर! आज खंडेलवाल पर ही बात को समाप्त करता हूँ, कल श्रीमती धीरा खंडेलवाल के साहित्य प्रेम पर बात करूँगा! जय जय!.
9416047075

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