धर्मपाल वर्मा चंडीगढ़- हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के सांसदों में कई ऐसे हैं जिनके बारे में आम धारणा यह बन रही है कि वे अगली बार लोकसभा का नहीं विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसके दो प्रमुख कारण सामने आए हैं ।एक तो यह कि नौ विधानसभाओं का प्रतिनिधि होते हुए भी उन्हें विधानसभाओं की टिकटें बांटे जाने के समय विश्वास में नहीं लिया जाता । दूसरा यह कि वे जो अनुदान योजनाएं भारत सरकार से मंजूर करा कर लाते हैं ,उन्हें प्रदेश सरकार को पूरा करना होता है और अपेक्षा अनुरूप समय पर सही तरीके से काम नहीं हो पाते। मुख्यमंत्री इस मामले में विधायकों और उनके हितों को ज्यादा प्राथमिकता देने को मजबूर होते हैं । कई सांसद ऐसे हैं जो पहले विधायक रहे हैं और उनका प्रदेश की राजनीति में रुचि अपेक्षाकृत ज्यादा है। आपको बता दें कि सारे ही सांसद इन दिक्कतों को लेकर परेशान रहते हैं। 2009 की बात है लोकसभा के चुनाव हो चुके थे । हरियाणा में ज्यादातर सांसद कांग्रेस पार्टी के बने थे । ऊपर और नीचे कांग्रेस की ही सरकारें थी । विधानसभा के चुनाव से पहले हरियाणा के कांग्रेस के सांसदों ने उस समय की कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपीए की चेयरमैन श्रीमती सोनिया गांधी के समक्ष अपनी मांग रखी और टिकटों में उनकी संस्तुति की जरूरत को देखते हुए उन्हें फैसला लेने पर मजबूर कर दिया था। श्रीमती गांधी ने उस समय यह व्यवस्था कर दी थी कि प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में संबंधित सांसद उन दो विधानसभा क्षेत्रों में अपनी मर्जी के लोगों को टिकट दिला पाएंगे जहां कांग्रेस का सीटिंग एमएलए नहीं होगा।। पाठकों को याद दिला दें कि 2009 में करनाल से डॉ अरविंद शर्मा कांग्रेस के सांसद थे और उन्होंने उस व्यवस्था पर करनाल लोकसभा क्षेत्र में 2 विधानसभा क्षेत्रों असंध और इसराणा से अपने मनमर्जी के 2 उम्मीदवारों को दिलवाई थी । असंध से रमेश चौधरी और इसराणा से बलबीर सिंह बाल्मीकि को इसी व्यवस्था के तहत कांग्रेस की टिकट मिली थी । अंबाला लोकसभा क्षेत्र में उस समय की कांग्रेस की सांसद कुमारी शैलजा ने पंचकूला से डी के बंसल और कालका से सतविंदर राणा को टिकटें दिलवाई थी। इसी तरह दूसरे सांसदों ने भी दो दो विधायकों को टिकते दिलवाई थी। अब यह आम मान्यता है कि सोनीपत के सांसद रमेश चंद्र कौशिक राई या गन्नौर भिवानी के सांसद धर्मवीर तोशाम ,करनाल के सांसद संजय भाटिया पानीपत शहर से विधानसभा के चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसी आम मान्यता है। पिछले चुनाव में धर्मवीर सिंह ने तो चुनाव लड़ने से मना कर दिया था वह बाद में फिर चुनाव लड़ने को तैयार हुए थे । धर्मवीर के बारे में लोग आम तौर पर चर्चा करते हैं कि वह चौधरी बंसीलाल चौधरी सुरेंद्र सिंह उनकी बेटी श्रुति चौधरी को चुनाव में हरा चुके हैं परंतु उनकी ही टिकट कटवाने वाली सीटे बदलवाने वाली कांग्रेस की नेत्री किरण चौधरी को अभी तक चुनाव में नहीं हरा पाए हैं ।वह अभी तक आमने सामने चुनाव नहीं लड़ पाए हैं। वे चाहते हैं कि पार्टी उन्हें तोशाम से किरन चौधरी के खिलाफ विधानसभा की टिकट दे और वे अपनी यह हसरत पूरी कर सकें। राव इंद्रजीत सिंह के बारे में तो यहां तक कहा जाने लगा है कि वे अगले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी क्षेत्रीय पार्टी बना सकते हैं ऐसा हुआ तो वे खुद तो विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे ही वह अपनी बेटी को भी चुनाव लड़ाने की कोशिश करेंगे। फरीदाबाद के सांसद कृष्ण पाल गुर्जर भी कई बार विधायक रहे हैं उनके बारे में भी माना जाता है कि वे खुद या उनका पुत्र अगला विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। Post navigation एमएसपी से कम दर पर खरीद को बर्दाश्त नहीं करेगी सरकार – ढांडा प्रदेश को बर्बादी के कगार पर लाने वाला सीएम हरियाणा रत्न कैसे हुआ : सुनीता वर्मा