-कमलेश भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने फिर किसानों को कहा है कि आपको लगातार दस माह हो गये दिल्ली के रास्ते रोके हुए और आप अब शहर में घुसना चाहते हो ? इसकी इजाजत आपको नहीं मिल सकती । जब किसानों के रास्ते में कील ठोक दिये गये थे तब कहां थे सरकार ? शायद आपने ही कहा था कि प्रदर्शन का अधिकार है । लोकतंत्र में अधिकार है भी और उस अन्नदाता को तो है ही जो धूप , बरसात और सर्दी यानी हर मौसम को सहकर अपने शरीर पर आपके लिए अन्न पैदा करता है और आप कहते हो कि शहर में घुसने की इजाजत नहीं दी जा सकती । अभी अभी एक मज़ेदार टिप्पणी सोशल मीडिया पर पढ़ी कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रामायण काल में पटाखे नहीं थे तो जवाब बड़ा ही मज़ेदार आया कि रामायण काल में तो सुप्रीम कोर्ट भी नहीं था । सही बात है अन्नदाता भी सुप्रीम कोर्ट से पहले है । शिल्पा शेट्टी की तरह सुपर से ऊपर कहने की हिमाकत नहीं कर सकता । इधर किसान आंदोलन और भारत बंद के बाद से राकेश टिकैत ने कहा कि उन लोगों के मुंह बंद कर दिये जो कहते थे कि किसान आंदोलन पंजाब , हरियाणा व राजस्थान में ही है । किसान आंदोलन का असर आने वाले विधानसभा चुनावों में देखने को मिलेगा । इसी डर की वजह से तो कैप्टन अमरेंद्र सिंह भाजपा में शामिल न हो पाये । द्वार पर जाकर लौट आए । यही कारण है कि दूसरी प्लाॅन लागू की जा रही है कि पंजाब में कांग्रेस सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए बुला कर राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिश की जाये । अपने शाह के पास कमी नहीं प्लाॅन की । फिर कैप्टन अमरेंद्र सिंह से अलग पार्टी बनकर भाजपा के लोगों को चहेतों को टिकट दिये जायेंगे । इस तरह इसे प्लाॅन सी भी कह सकते हो । पर किसान का क्या ? उसका तो धान खरीदने का कोई सिस्टम नहीं बनाया । पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी कहा कि हरियाणा सरकार ने किसानों व कमेरे वर्ग से मुंह मोड़ लिया । धान की सरकारी खरीद के अभाव में किसान प्राइवेट एजेंसियों के हाथों लूट रहे हैं या लुटने को मजबूर हैं । अभय चौटाला भी कह।रहे हैं कि अन्नदाता की बेकद्री की जा रही है । मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी रास्ते खुलवाने के लिए अमित शाह से मिलने जायेंगे । धान की खरीद प्राथमिकता नहीं है । शायद सुप्रीम कोर्ट धान की खरीद पर भी कुछ कहेगा या सिरसा शहर में घुसे चले आ रहे किसान को ही रोकता रह जायेगा ?-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी । Post navigation जो विष बीज बोये जीवन और राजनीति में वही फसल काट रहे हैं हम : स्वामी शैलेंद्र सरस्वती शिक्षित किंतु कमजोर होता समाज