धर्मपाल वर्मा चंडीगढ़ – आज पूरा देश विशेषकर हरियाणा और पंजाब के लोग कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे चुके नवजोत सिंह सिद्धू के भविष्य को लेकर अपनी अपनी राय दे रहे हैं और लोग जानना भी चाहते हैं कि इन दोनों का क्या होगा और कांग्रेस का क्या होगा। यहां हम जो बातें विशेष तौर पर करने की स्थिति में है उनमें एक तो यह है कि जो असली नेता होते हैं उनकी सोच में कुछ चीजे लगभग समान रुप में पाई जाती हैं। जैसे यह कि वे बोलते कम हैं (मैं स्टेज की बात नहीं कर रहा) सुनते ज्यादा हैं सोचते भी ज्यादा है ,सोते कम है। निडर भी होते हैं और डरपोक भी होते हैं। कम बोलने वाले दो प्रधानमंत्री अलग-अलग तरह से अपनी छाप छोड़ कर गए हैं। एक थे लंगड़ी सरकार में अचानक प्रधानमंत्री बने पीवी नरसिम्हा राव और दूसरे थे सरदार मनमोहन सिंह। नरसिम्हा राव देश को उदारीकरण के दम पर मजबूत करके गए । उन्होंने लंगडी बार कांग्रेस सरकार को मजबूत बनाया बीजेपी को इस्तेमाल किया और उसे 5 साल उलझा कर रखा। 1993 से 1996 तक उन्होंने कांग्रेस को नरसिम्हा राव सॉन्ग कांग्रेस बना कर छोड़ दिया था। सोनिया गांधी को कांग्रेस तिवारी बनाने को मजबूर होना पड़ा था।सरदार मनमोहन सिंह ने देश की अर्थव्यवस्था को विपरीत हालातों में भी डगमग नहीं होने दिया खास तौर पर वैश्विक मंदी के बावजूद। इस मामले में हाल में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2 दिन में ही कई चीजें ऐसी सामने लाकर रख दी हैं जो यह साबित करती है कि आने वाले समय में कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में कोई न कोई गुल जरूर खिलाएंगे और उसका असर पूरे देश में भी जाएगा।अब लोग सवाल करने लगे हैं कि अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह को भारतीय जनता पार्टी में नहीं जाना था तो उन्होंने दिल्ली जाकर गृहमंत्री से लंबी मुलाकात क्यों की.? अगर कैप्टन कृषि कानून के लिए गृहमंत्री से मिले थे तो उनसे मिलने के बाद सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मिलने उनके घर क्यों पहुंच गए.? कैप्टन अब किसी संवैधानिक पद पर नहीं हैं। और अजित डोभाल का किसी प्रकार का कोई लेनादेना कृषि कानूनों से नहीं है। गम्भीर घटनाक्रम यह भी है कि कैप्टन के साथ हुई मुलाकात के तत्काल बाद ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल सीधे गृहमंत्री से मिलने पहुंचे और लंबी मुलाकात की। लगता है यह कोई बहुत गंभीर और महत्वपूर्ण मामला है। लेकिन उस पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है। कटी पतंग लूटने की कोशिश करने वाले आवारा बच्चों की तरह दिल्ली से चंडीगढ़ तक खबरें लूटने की कोशिश कर रहे फडदुल्लो ने तो बिल्कुल ध्यान ही नहीं दिया होगा। इस मामले में गहरी रूचि रखने वाले लोग दो चीजों को एक साथ जोड़ कर चल रहे हैं एक यह कि कैप्टनअमरिंदर सिंह सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उन्हें एक तरह से देशद्रोही बताने की कोशिश में लगे हुए हैं । उनके पास ऐसा कुछ जरूर होगा जो यह साबित करने के लिए पर्याप्त हो कि सिद्धू के खिलाफ पाकिस्तान के संबंधों को लेकर कुछ ऐसा है जो उन्हें कटघरे में खड़ा कर सकता है। यदि ऐसा है तो 2 सवाल खड़े होते हैं । एक यह कि कैप्टन साहब अब तो इन कागजों को सबूतों को देने या दिखाने दिल्ली चले गए लेकिन जब वे मुख्यमंत्री थे ,जब सब कुछ उनके हाथ में था तब उन्होंने चुप्पी क्यों साधे रखी ।दूसरा बहुत लोग कैप्टन अमरिंदर सिंह पर भी यह सवाल उठा रहे हैं कि वह इस तरह के मसलों को लेकर सिद्धू पर तो निशाना साध रहे लेकिन पाकिस्तान की उनकी दोस्त आरूसा आलम उनके डिस्पोजल पर चंडीगढ़ में पंजाब की स्थाई मेहमान बन कर क्यों बैठी है ।वह तो पाकिस्तान की आला दर्जे की पत्रकार है वह भी विचारों का आदान प्रदान करती होगी ,उसके तो पाकिस्तान से सीधे संपर्क है। उस पर भी सवाल इसलिए उठाया जा सकता है कि आरूसा आलम का पंजाब सरकार में आपत्तिजनक और आश्चर्यजनक हस्तक्षेप रहता था। एक अहम बाद अब यह है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की हाल की दिल्ली यात्रा के बाद बांस की तरह ऐंठा और अकड़ा हुआ नवजोत सिद्धू अब बताते हैं कि लचीला हो गया है। अब उसने पंजाब के मुख्यमंत्री और कुछ मंत्रियों से बात करने का सिलसिला शुरू कर दिया है दरअसल पिछले साढ़े चार साल तक मुख्यमंत्री रहे कैप्टन के सीने में कई राज दबे हुए हैं। यही कारण है कि कैप्टन खुलकर सिद्धू को पाकिस्तान, इमरान और बाजवा का एजेंट कहते रहे, उसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताते रहे लेकिन उनपर मानहानि का मुकदमा करना तो दूर, सिद्धू ने उनके खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला है। जहां एक बात और गौर करने की है कि मामले दोनों तरफ खतरनाक लगते हैं क्योंकि पंजाब के एक पूर्व डीजीपी ने बड़े अंदाज में सिद्धू का पक्ष लेते हुए यह कहा था कि “राज को राज रहने दो”। दरअसल माना यह जा रहा है कि नवजोत सिंह सिद्धू भी जानता है कि कैप्टन को बहुत बातों का पता है। अभी तक स्थितियों पर कैप्टन का नियंत्रण था और एक तरह से कैप्टन पर भी नियंत्रण था ।वह मुख्यमंत्री तो कांग्रेस के ही थे ।अब स्थितियां बदल गई हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के नेताओं से उतनी ही बात करेगा जितनी जरूरी हैं। फालतू की बात करने के लिए तो सिद्धू ही काफी है। लेकिन कैप्टन ने सम्भवतः अब मुंह खोल दिया है। अतः गृहमंत्री व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से कैप्टन की लंबी मुलाकात के बाद सिद्धू की रीढ़ की हड्डी में ठंडी लहर दौड़ गयी होगी। राजनेता ऐसे राजों को अपनी आस्तीन में छुपे तुरुप के पत्तों की तरह प्रयोग करते हैं। मसखरे माने जा रहे सिद्धू को मंझे हुए राजनीतिज्ञ कैप्टन ने आज यह पाठ बहुत कठोरता से पढ़ाया है। गृहमंत्री व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ हुई लंबी मुलाकातों की आंच अगले कुछ दिनों में पंजाब में एन आई ए और रॉ की कुछ सनसनीखेज कार्रवाइयों के रूप में महसूस की जा सकती है। कैप्टन ने आज खुलकर संदेश दे दिया है कि सिद्धू तेरी खैर नहीं। यह अलग बात है कि कैप्टन द्वारा दिल्ली में की गई मुलाकातों का निष्कर्ष वहीं फडदुल्ले दिल्ली से चंडीगढ़ तक यह निकाल रहे हैं कि कैप्टन को चेहरा बना कर मोदी सरकार कृषि कानूनों को हटा लेगी या बड़ा बदलाव कर देगी। इससे फूहड़ और मूर्खतापूर्ण निष्कर्ष कुछ और हो नहीं सकता। लेकिन ख्याली पुलाव बेचने वाले लोग ऐसा पहली बार नहीं कर रहे है। राजनीति को लेकर मै अपने अल्प ज्ञान के आधार पर एक बात दावे से कह सकता हूं कांग्रेस ने जिस चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया है उसका आचार, व्यवहार, बॉडी लैंग्वेज, समझ और सकारात्मकता पंजाब के कई नेताओं पर भारी पड़ने वाली है। यदि नवजोत सिंह सिद्धू यह सपना ले रहा है कि चन्नी फरवरी तक का मुख्यमंत्री है और फिर उनका सपा लग जाएगा तो वे इस बात को लिख ले कि यदि पंजाब में चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनती है तो फिर भी मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के ही बनने के आसार सबसे ज्यादा होंगे और अब चुनाव में कॉन्ग्रेस तभी जीत पाएगी जब दलित वोटर एकजुट होकर कांग्रेस को वोट डालेगा। और यदि वह ऐसा करेगा तो चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री होने के कारण ही करेगा। यदि नवजोत सिंह सिद्धू ने अब यह डींगे हाकनी शुरू कर दी कि मैं मुख्यमंत्री बनूंगा तो फिर इससे कांग्रेस को फायदा नहीं नुकसान होगा। पंजाब में ऐसे हालात पैदा हो गए हैं कि जट सिख वोटर कई जगह बटेगा और दलित वोटर एकजुट होकर कांग्रेस के पक्ष में वोट डालेगा क्योंकि उसे पहली बार जो दलित मुख्यमंत्री मिला है वह उस को बरकरार रखना चाहेगा ।यही वोटर बीएसपी की सुप्रीमो कुमारी मायावती जिसने शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन किया है को भी वोट के मामले में रुखा जवाब दे सकता है। दलित मतदाता चुनाव के समय कुमारी मायावती तथा बीएसपी के नेताओं को यह कहकर अनुत्तरित बना सकने की स्थिति में आज जाएंगे कि पंजाब में आपके और अकाली दल गठबंधन की सरकार बन भी गई तो आप किसी दलित विधायक को उपमुख्यमंत्री से ज्यादा कुछ बनाने वाले नहीं हैं कांग्रेस ने तो हमें मुख्यमंत्री दे दिया है। पंजाब में देश में सबसे ज्यादा दलित आबादी है जो राज्य में कुल मतदाताओं का एक तिहाई माना जाता है। नवजोत सिंह सिद्धू की छवि को जो धक्का लगा है उसकी क्षतिपूर्ति आसान नहीं है। अब आपको यह बताते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की घोषणा क्यों नहीं की। यह एक ऐसा सवाल है जिसे समझना सबके बस की बात नहीं है। कांग्रेस जिस भी स्थिति में है लेकिन कुछ ताकतें कांग्रेस को तोड़ने में लगी हुई है ।ऐसी स्थिति बन रही है जैसे 1978 के दौर में उस समय कांग्रेस की नेता श्रीमती इंदिरा गांधी को फेस करनी पड़ी थी ।कांग्रेस दो फाड़ हो गई थी और उन्होंने कांग्रेस आई बनाने को मजबूर होना पड़ा था। उन्होंने कांग्रेस आई बनाकर 1980 का चुनाव लड़ा उन सभी नेताओं को दरकिनार करके जो पार्टी में बड़े चेहरे थे उनके खिलाफ हो गए थे और 1980 का चुनाव कांग्रेस में शानदार तरीके से जीता था लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी का जो व्यक्तित्व था वह अलग तरह का था और वह इससे पहले प्रधानमंत्री रह चुकी थी। 1978 पुनासी में नेता उसी तरीके से कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ खड़े हो गए थे जैसे अब g23 के नेता नजर आ रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का विभाजन तय है। मैं यह मान कर चल रहा हूं और जो नई कांग्रेस बनेगी उससे सत्ता में बैठे और राहुल सोनिया गांधी सोनिया गांधी विरोधी सारे लोग असली कॉन्ग्रेस के रूप में मान्यता देने को तैयार बैठे हैं। अलग गुट के रूप में नई कांग्रेस बनाने वाले नेता अलग-अलग प्रदेशों में अपनी योजना पर काम कर रहे हैं ।नीचे नीचे कार्यवाही चल रही हैं। जरा सोचिए कि आज इस स्थिति में कांग्रेस के किसी भी असंतुष्ट नेता को अपने प्रदेश में अलग पार्टी बनाने की जरूरत क्यों पड़ेगी जब उसी की लाइन पर राष्ट्रीय स्तर पर नई कांग्रेस हमें की योजना पाइप लाइन में होगी। राहुल गांधी सोनिया गांधी प्रियंका गांधी को अकेले छोड़कर कांग्रेस का अस्तित्व मानने और बनाने वाले लोग खूब सक्रिय हैं ।उनकी भाषा और बॉडी लैंग्वेज वही व्यक्ति समझ सकता है जो राजनीति जानता है। वैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के आचार व्यवहार को लेकर एक प्रचलित कथन आप पढ़ सकते हैं जो निचोड़ है। Don’t be a parrot in life but an eagle . A parrot talks way too much but cannot fly high but an eagle is silent and has the will power to touch the sky नवजोत सिंह सिद्धू के बारे में लोग क्या सोचते हैं उसके बारे में मेरे आदरणीय डॉक्टर गजराज कौशिक ने एक कवि के रूप में जो लिखा है वह भी पढ़ लीजिए । बीजेपी और कांग्रेस को कोई टोटा नही।राजनीति में कोई खरा कोई खोटा नही।यूं तो बर्तन राजनिति में बहुत लुढ़कते हैंपर सिद्धू से बड़ा कोई बिना तली का लोटा नहीं।ठोको ताली Post navigation धान की सरकारी खरीद टालने का निर्णय अन्नदाता से क्रूर मजाक : रणदीप सिंह सुरजेवाला हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2020 के लिए डॉ सत्यवान सौरभ की पुस्तक का चयन