भारतवर्ष सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह कर्मभूमि है

( हेमेंद्र क्षीरसागर, लेखक, पत्रकार व विचारक )

अखंड भारत, श्रेष्ठ भारत, सर्वश्रेष्ठ भारत हम सबकी अभिकल्पना है। सारगर्भित, अखण्ड भारत महज सपना नहीं, श्रद्धा, तपश्या, निष्ठा और जीता-जागता शरीर है। जिन आंखों ने भारत को भूमि से अधिक माता के रूप में देखा हो, जो स्वयं को इसका पुत्र मानता हो। वन्देमातरम् जिनका राष्ट्रघोष और राष्ट्रगान हो, ऐसे असंख्य अंत:करण मातृभूमि के विभाजन की वेदना को कैसे भूल सकते हैं। अखण्ड भारत के संकल्प को कैसे त्याग सकते हैं? किन्तु लक्ष्य के शिखर पर पहुंचने के लिए यथार्थ की कंकरीली-पथरीली, कहीं कांटे तो कहीं दलदल, कहीं गहरी खाई तो कहीं रपटीली चढ़ाई से होकर गुजरना ही होगा। यात्रा को शुरू करने से पहले उस यथार्थ को पूरी तरह जानना-समझना ही होगा। 

सवाल दर सवाल भारत क्या है? क्या वह भूगोल है? क्या इतिहास है या कोई सांस्कृतिक प्रवाह है?  यदि भूगोल है तो उस भूगोल को भारत कब मिला, किसने दिया? भूगोल तो पहले भी था पर तब वह भारत क्यों नहीं था? तब उसका नाम क्या था? भारत की अखंडता का अर्थ क्या है? यदि कोई भौगोलिक मानचित्र है जिसे हम अखंड देखना चाहते हैं तो प्रश्न उठेगा कि उसकी सीमाएं क्या हैं? क्या हम ब्रिटिश भारत की अखंडता चाहते हैं या सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री हुएन सांग के समय के भारत की, जिसमें आज का अफगानिस्तान और मध्य एशिया का ताशकंद-समरकंद क्षेत्र भी सम्मिलित था? या उसके भी पहले के भारत की, जिसे पुराणों में नवद्वीपवती कहा है, जिसके श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, जावा, सुमात्रा, बाली, मलेशिया, फारमूसा और फिलीपीन जैसे अनेक द्वीप अंग थे? भारत नाम की भौगोलिक सीमाओं के संकुचन और विस्तार का रहस्य क्या है? उसका आधार क्या है? 

भारत बना कैसे? क्या भारत एक दिन में बन गया या उसके पीछे हजारों साल की इतिहास यात्रा विद्यमान है? प्राचीन साहित्यिक स्रोत बताते हैं कि कभी इस भौगोलिक खण्ड को केवल हिमवर्ष कहते थे, फिर उसे “पृथिवी” “अजनाम वर्ष” और “जम्बूद्वीप” जैसे नाम मिले। मौर्य सम्राट अशोक को सकल जम्बूद्वीप का राजा कहा गया। आगे चलकर हमारे संकल्प-मंत्र में “जम्बूद्वीपे भरत खंडे भारतवर्षे आर्यावर्ते कुरुक्षेत्रे…” जैसे भौगोलिक नामों को गिनाया गया। जिसके अनुसार जम्बूद्वीप भरतखंड अर्थात् भारतवर्ष से बड़ी भौगोलिक इकाई है और भारतवर्ष आर्यावर्त से, आर्यावर्त कुरुक्षेत्र से बड़ा है। इन भौगोलिक रिश्तों का आधार क्या है? ये एक-दूसरे से जुड़ते कैसे चले गए? इन्हें परस्पर जोड़ने वाली इतिहास यात्रा की प्रेरणा क्या है, लक्ष्य क्या है और उसका वाहक या माध्यम कौन है? निश्चय ही यह वही संस्कृति है जिसका स्रोत वेदों को माना जाता है और जिसका भौतिक शरीर अब पुरातात्विक खुदाइयों में सरस्वती के लुप्त प्रवाह के किनारे-किनारे हरियाणा से गुजरात के समुद्रतट तक प्रगट हो रहा है। 

पुराणें हमें भारत नाम की उत्पत्ति, उसकी भौगोलिक सीमाओं, उसके नदी प्रवाहों, पर्वतों, नगरों और आसेतु हिमाचल बिखरे जनपदों का परिचय देते हैं। विष्णु पुराण कहता है कि भारतवर्ष में ही चार युग (कृत, त्रेता, द्वापर और कलि) होते हैं अन्यत्र कहीं नहीं। इसी देश में परलोक के लिए मुनिजन तपस्या करते हैं, याज्ञिक लोग यज्ञानुष्ठान करते हैं और दान देते हैं। जम्बूद्वीप में भी भारतवर्ष सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह कर्मभूमि है। अन्य देश केवल भोग भूमियां हैं। जीव को सहस्रों जन्मों के अनन्तर महान पुण्यों का उदय होने पर ही इस देश में जन्म प्राप्त होता है। मनुष्य तो मनुष्य स्वर्ग के देवता भी एक ही गीत गाते हैं कि धन्य हैं वे जिन्हें भारतभूमि में जन्म मिला, क्योंकि वहां स्वर्ग और अपवर्ग दोनों को प्राप्त कराने वाला कर्म पथ उपलब्ध है। विष्णुपुराण भारत को मोक्ष भूमि व कर्म भूमि कहता है। 

इस भूमि पर अनेक बोलियां बोलने वाले और अनेक आचार-विचार को मानने वाले लोग रहते हैं पर यह भूमिमाता अपने उन सब पुत्रों को समान रूप से दूध पिलाती है। वह मेरी माता है, मैं उसका पुत्र हूं। कृतज्ञता से भरे भारतीय मन ने माता-भूमि सम्बन्ध के द्वारा अपने को इस भूमि से मान लिया। इसके कण-कण में अपनी श्रद्धा के बीज बोये जिनमें से एक विशाल तीर्थ मालिका का जन्म हुआ। यह मातृभूमि के प्रति भक्ति की अनेकमुखी विविधता को बांधने वाला सूत्र बन गयी। भारत ने प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रुचि, प्रकृति के अनुकूल इष्ट देवता और उपासना पद्धति को चुनने की छूट दी। 

इस प्रकार भारत माता के प्रति पुत्र भाव और एक श्रेष्ठ जीवन दर्शन के प्रति अस्था ने ही हमारी सब विविधताओं को एक सूत्र में बांधे रखा है। इसी को राष्ट्र-धर्म कहते हैं। भूमि के प्रति भक्ति का यह भाव सांस्कृतिक प्रवाह के साथ-साथ आगे बढ़ता गया। संस्कृति और भारत एकरूप हो गए। इसीलिए भारतवर्ष की व्याख्या ब्राह्मावर्त, ब्राह्मर्षि देश, मध्य देश, आर्यवर्त, कन्याकुमारी से हिमालय तक के कुमारी खंड से आगे बढ़कर नवद्वीपवती तक पहुंच गयी। भारत ने बृहत्तर भारत का रूप धारण कर लिया।

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