o   अगर तीनों कृषि कानून किसानों के हित के हैं तो सरकार चर्चा से क्यों डर रही

o   किसानों के मुद्दे पर संसद में चर्चा के लिये दीपेंद्र हुड्डा ने आज सातवीं बार दिया काम रोको प्रस्ताव का नोटिस

o   अन्नदाता 8 महीनों से सड़कों पर बैठे हैं और सरकार उनकी समस्या पर चर्चा भी करने नहीं दे रही तो संसद कैसे चलेगी

o   संसद में किसान शब्द सुनते ही सत्ता पक्ष बौखला जाता है। समझ में नहीं आता अन्नदाता के प्रति सरकार में इतनी कड़़वाहट क्यों है

o   सरकार से किया आग्रह सबसे पहले किसानों के मुद्दे पर चर्चा हो फिर संसद चले

चंडीगढ़, 28 जुलाई। राज्य सभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने किसानों के मुद्दे पर राज्य सभा में चर्चा के लिये आज सातवीं बार फिर काम रोको प्रस्ताव का नोटिस दिया, जिसे सभापति ने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद उनके प्रस्ताव के समर्थन में पूरा विपक्ष एकजुट होकर नारेबाजी करने लगा। भारी हंगामे और शोर-शराबे के बीच राज्य सभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि किसानों के मुद्दे पर चर्चा करने से सरकार पीछे क्यों भाग रही है। अगर तीनों कृषि कानून किसानों के हित के हैं तो सरकार चर्चा से क्यों डर रही है। अन्नदाता 8 महीनों से सड़कों पर बैठे हैं और सरकार उनकी समस्या पर चर्चा करने का भी समय नहीं दे रही तो संसद कैसे चलेगी। उन्होंने कहा कि संसद में किसान शब्द सुनते ही सत्ता पक्ष बौखला जाता है। समझ में नहीं आता अन्नदाता के प्रति सरकार में इतनी कड़़वाहट क्यों है। दीपेंद्र हुड्डा ने सरकार से आग्रह किया कि सबसे पहले किसानों के मुद्दे पर चर्चा हो फिर संसद चले।

दीपेन्द्र हुड्डा संसद में संसद के बाहर भी लगातार किसानों की आवाज़ उठा रहे हैं। किसानों के समर्थन में राज्य सभा में आज ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे लिखी तख्तियां दिखाई दी। इससे असहज सत्ता पक्ष लगातार विपक्ष को कोसता नजर आया। आज लगातार सातवां दिन है जब राज्य सभा बाधित रही। सरकार का किसान विरोधी रवैया नहीं बदलते देख विपक्ष के सांसदों में काफी नाराजगी देखी गई। ऐसे में विपक्ष और सरकार के बीच बना गतिरोध दूर नहीं हो सका।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार का प्रस्ताव है कि हम किसानों की कोई बात नहीं मानेंगे, आप बातचीत करिये। सरकार पहले किसानों की मांगों को खारिज कर रही है और फिर बातचीत करने की बात कह रही है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के पास फोन टैपिंग के जरिये अपने प्रतिद्वंदियों की बात सुनने का पूरा समय है लेकिन किसानों की बात सुनने का समय नहीं है। दीपेन्द्र हुड्डा ने मांग करी कि सरकार खुले दिल से किसानों से बात करे और उनकी मांगों को माने।

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