आपदा का राष्ट्रधर्म, बीजेपी पूरे देश को यह समझाने में लगी है कि कोरोना के सवाल पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
मार्केटिंग की दौर में साहब जैसे अच्छे सेल्समैन तो मिल सकते है लेकिन स्टेट्समैन मिलना टेढ़ी खीर है ।

अशोक कुमार कौशिक

भारत जैसे देश में लोक स्मृति अल्पायु ही होती है। दशक और दो दशक बहुत लंबा समय है, जनता छह महीने पुरानी बात भी याद नहीं रखती। लेख के साथ जो दो तस्वीरें शेयर की हैं, उसमे एक फोटो 27 साल पुरानी हैं। पुराने पत्रकारों को ये तस्वीरें शत-प्रतिशत याद होंगी। जिनकी देश, राजनीति और इतिहास में रूचि है, उन्हें भी इस तस्वीर के पीछे की कहानी पता होगी। 

2014 के बाद पैदा हुए और सोशल मीडिया पर शोरगुल मचाते लोगों को यकीकन इनके बारे में कुछ पता नहीं होगा और ना ही जानकारी से उन्हें कोई फर्क पड़ेगा।तस्वीरें जनेवा के उस संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की हैं, जिसमें भारत का नेतृत्व किसी सरकारी व्यक्ति ने नहीं बल्कि विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। दल के उपनेता बने थे विदेश राज्यमंत्री सलमान खुर्शीद।

उन दिनों भारत लगातार सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद झेल रहा था। एक दशक तक सुलगने के बाद पंजाब मुश्किल से शांत हुआ था और कश्मीर में हजरत बल जैसा कांड ताजा-ताजा हुआ था। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कथित मानवाधिकार हनन को लेकर भारत पर हमलावर था। 

ऐसे में यह ज़रूरी था कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत दुनिया को यह बताये कि वह पूरी तरह एक है। प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने आपदा का राष्ट्रधर्म निभाते हुए विपक्ष को भरोसे में लिया। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय दल का नेतृत्व करने के लिए राजी हुए और सलमान खुर्शीद सहर्ष उनके डेप्यूटी बने। उसके बाद जेनेवा में जो हुआ, वह इतिहास है। भारत ने शानदार तरीके से पाकिस्तान पर कूटनीतिक विजय प्राप्त की।

अब मौजूदा दौर में वापस लौटते हैं। कोरोना का संकट संभवत: आज़ाद भारत की सबसे बड़ी समस्या है, जहाँ हर घर बीमार है। असंख्य लोग बिना इलाज के मर चुके हैं। ऐसे में दस साल तक सफलतापूर्वक भारत का नेतृत्व कर चुके मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्टी लिखी, जिसमें कोरोना प्रबंधन और खासकर टीकाकरण को लेकर कई सुझाव दिये गये। चिट्ठी में सिर्फ सुझाव दिये गये थे कोई इल्जाम नहीं लगाया गया था। 

प्रधानमंत्री मोदी को आपदा का राष्ट्रधर्म उसी तरह निभाना था, जिस तरह कभी नरसिंह राव ने निभाया था।  लेकिन प्रधानमंत्री ने क्या किया? उन्होंने पूरी दुनिया में सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री के पत्र को इस लायक भी नहीं समझा जिसका जवाब वो खुद दे सकें। राजनीतिक शिष्टाचार को ताक पर रखकर मोदी ने उन जवाब उन स्वास्थ्य मंत्री से दिलवाया जिन्हें कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम के तहत मटर छीलने के अलावा कुछ और करते नहीं देखा गया है।

जवाब भी ऐसा वैसा नहीं। स्वास्थ्य से संबंधित सुझावों का जवाब बदत्तीमीजी की भाषा में आकंठ डूबे राजनीतिक उत्तर के साथ दिया गया।  उसके बाद बीजेपी पूरे देश को यह समझाने में लगी है  कि कोरोना के सवाल पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी का गठन 6 अप्रैल 1980 को हुआ था । अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष बने थे। इसी दिन अटलजी ने महात्मा गांधी और जयप्रकाश नरायण के सपनों को पूरा करने का संकंल्प लिया था। जोड़तोड़ की राजनीति को खारिज करते हुए वाजपेयी जी ने कहा था कि भाजपा राजनीति में, राजनीतिक दलों में, राजनेताओं में, जनता के खोए हुए विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिए  राजनीति करेगी पर 41 वर्ष बीत जाने के बाद भी ऐसा हुआ क्या ?

एक साल पहले मोदी अटलजी का वीडियो जारी करके पूरे देश से 9 बजे पूरे 9 मिनिट तक दिया जलाने की अपील करते है लेंकिन क्या वो अटलजी की राजनीति का 1 प्रतिशत भी फॉलो करते है चलिये कल्पना करते है की अगर आज इस संकट के समय अटल पीएम होते तो क्या होता।  सबसे पहले वो विपक्ष के नेता को फोन लगाते और एक आल पार्टी मीटिंग बुलाते और देश के हालात डिस्कस करते। अटल ने 6 सालो के कार्यकाल में एक भी नोटंकी भरे इवेंट नही किये क्योकि वो चीजो की सवेंदनशीलता को पहचानते थे अटल बिमारी से लड़ने के लिए कोई कविता नही गाते अपितु कलाम जैसे वैज्ञानिकों और जार्ज फर्नांडिज जैसे समाजवादियों की एक टीम बना कर पूरे बीमारी को सामुहिक नेतृत्व से लड़ते ।

अटलजी लगभग हर हफ्ते प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जनता के असली सवालो का जवाब देते और दो तरफा संवाद करते। अटल लॉकडाउन से पहले यह सुनिश्चित करते कि कोई अराजकता नही फैले जिससे कोई भी गरीब मजदूर पैदल चलकर भूखा नही मरता और लाकड़ाउन का असली उद्देश्य पूरा होता पर अफसोस है कि चिराग जलाने वाले मोदी ने ऐसा एक भी काम नही किया उल्टा उनकी लापरवाही और अदूरदर्शिता से सैकड़ों मजदूरों के घरों के चिराग बुझ गए। 

मोदी के समर्थक कह रहे है कि वो घँटी बजवा कर और दिया जलाकर लोगो को राष्ट्रीय भावना से भर कर उन्हें मोटिवेट कर रहे थे तो मोदी फिर चूक कर रहे है अगर अटल पीएम होते तो वो गाँधी औऱ शास्त्री जी की तरह एक समय का भोजन स्वयं छोड़कर लोगो को भी प्रेरित करते ताकि उन गरीब लोगों तक अन्न पहुँचता जिन्हे इस्की सबसे ज्यादा जरूरत थी।

दोनो तरफ के मूर्खो औऱ जाहिलो की हरकत पर अटलजी उन्हें राजधर्म निभाने का कड़ा संदेश देते जैसे उन्होंने मोदी को 2002 के दंगों के दौरान दिया था लेकिन मोदी ने उसका कभी पालन नही किया,अटल तमाम धर्मगुरुओं को साथ लेकर एक वीडियो अपील जारी करते ताकि लोगो की जहालत को कम करके उनके अंदर राजधर्म के लिए सम्मान पैदा होता ।

मोदी बहुत सिलेक्टिव नेता है वो महापुरुषों से केवल अपने हिसाब से चीजो को लेते है वो दिनभर गाँधी का नाम जपते है लेकिन गोड़सेवादीयो को अपने बगल में रखते है वो अटल का दिया जलाने वाली कविता का उपयोग करते है लेकिन अटल के राजधर्म निभाने वाली सीख को भूल जाते है 

साहेब जी आप अपने नेताओ को कितना जानते है और उनक कितना सम्मान करते है वो केवल प्रतीकों से सिद्ध नही होता है आप मिसाल कायम करते है जब आप उनके सिद्धान्तों का अक्षरश: पालन करते है साहेब आप बहुत बड़ा मौका चूक गए है आप राजनेता तो बड़े बन गए है लेकिन एक स्टेटसमैन बनने में आपको अभी बहुत लंबा सफर तय करना है आज भारत को अटलजी जैसे स्टेट्समैन की जर्रूरत है जो हमारे अद्भुत लोकतंत्र को एक नई ऊँचाई पर ले गए थे, पर नो ग्यारंटी, नो वारंटी के इस मार्केटिंग की दौर में साहब जैसे अच्छे सेल्समैन तो मिल सकते है लेकिन स्टेट्समैन मिलना टेढ़ी खीर है ।

साहब जी अभी भी समय है आप सामुहिक नेतृत्व देश पर आए संकट का सामना कीजिए क्योंकि कुछ अंधकार हमे इस बीमारी ने दिए है कूछ आपकी अदूरदर्शिता ने दिए है आपके लिए मेरे मन में एक ही बात आती है।

खुद अंधेरा कर मुझे जुगनू बनाने की कोशिश करते हो, तुम अंधेरों से लड़ोगे बच्चों सी बातें करते हो ।

सोचिये और खुद तय कीजिये कि भारतीय राजनीति कहाँ आ पहुँची है और देश किन लोगों के हाथों में है?

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