भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। कल जहां छाई थीं खुशियां, आज है मातम घना, वक्त लाया था बहारें, वक्त लाया है खिजा। किसी जमाने प्रचलित फिल्म की पंक्तियां हैं, जो आज के परिवेश पर खरी उतरती हैं। 2020 का आरंभ और आज का अंतर देखिए। जब मनुष्य यह सोच रहा था कि मैं अपने भविष्य में कौन-से लक्ष्य प्राप्त करूंगा और किस प्रकार उपलब्धियां मिलेंगी और आज सोच रहा है कि कैसे मैं स्वयं और अपने परिवार, समाज को बचाउं। इस सोच के पीछे मैं शासन-प्रशासन को दोष नहीं दूंगा। यह कुदरत का कहर है, जो बरपा है और इंसान को इसे बर्दाश्त करना ही होगा। अब यह इंसान को सोचना है कि वह उसे संतुलित मस्तिष्क से बर्दाश्त करे और इससे उबरने के उपाय सोचे या फिर हथियार डाल दे और जो समय मिला है उसे भगवान की नैमत मान अपने स्वभाव पर अडिग़ रहे।अब हम बात करेंगे अपनी सरकार की। सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री होते हैं। नीति निर्धारण में सबसे बड़ा रोल उन्हीं का होता है और वर्तमान में वह मेरी कसौटी पर तो खरा उतरता नहीं, वैसे शायद जनता की कसौटी पर भी खरा नहीं उतरेगा। इस समय सरकार की ओर से अनेक घोषणाएं की जा रही हैं और बताया जा रहा है कि हम पूर्णतया: सक्षम हैं इस महामारी से निपटने में। सबको बैड उपलब्ध होंगे, दवाइयां उपलब्ध होंगी, ऑक्सीजन की भी कमी नहीं, सबको वैक्सीन लगाई जा रही है आदि-आदि दावे सरकार के हैं। 8 मई को मुख्यमंत्री जी ने ऐलान किया कि प्रदेश के सभी पत्रकारों को वैक्सीन लगाई जाएगी और 9 तारीख को एक पत्रकारों के संगठन ने मुख्यमंत्री का इस कार्य के लिए आभार भी प्रकट किया। मेरी समझ में नहीं आया कि क्या पत्रकार दूसरे ग्रह से आए हैं? चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति आदि से। जब प्रदेश के सभी नागरिकों को वैक्सीन लगाई जा रही है तो क्या पत्रकार प्रदेश के नागरिक नहीं हैं। यह बात सीधा-सीधा स्पष्ट करती है कि वह जनता या पत्रकारों को बरगलाने का प्रयास मात्र है। इसी प्रकार 9 मई को लॉकडाउन की घोषणा होनी थी, मैं होनी थी इसलिए लिख रहा हूं कि परिस्थितियां यह कह रही थीं कि यह आवश्यक है। लेकिन दिन में एक मंत्री का ट्वीट वायरल होता रहा कि हरियाणा में लॉकडाउन की अभी कोई घोषणा नहीं है, यह फेक न्यूज है और रात्रि में गृहमंत्री अनिल विज का ट्वीट आता है कि लॉकडाउन नहीं सुरक्षित हरियाणा बनाया गया है, जिसमें पाबंदियां और बढ़ जाएंगी। प्रश्न मेरा यह है कि नाम बदलने से क्या अंतर पड़ा। हम मुख्यमंत्री कहें, मनोहर लाल कहें या खट्टर बात तो एक ही है न। इसी प्रकार गृहमंत्री कहें, अनिल विज कहें या गब्बर अंतर क्या है। अर्थात यह भी जनता को बरगलाने का प्रयास नजर आता है। अब बात करें स्वास्थ सेवाओं की तो अस्पतालों में बैड उपलब्ध नहीं हैं। सरकार की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि बैड उपलब्ध हैं, हमने इन-इन अस्पतालों में बैड बढ़ा दिए हैं। इसी प्रकार ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा बताई जा रही है। पहले तो ऑक्सीजन लाइन में लगाकर दे रहे थे, अब घर-घर पहुंचाने का दावा किया जा रहा है। इसके पीछे चर्चा यह है कि जब प्लांट पर जाकर ऑक्सीजन लेकर आते थे तो भी ये निर्देश थे कि पहले अस्पतालों को ऑक्सीजन दी जाए, फिर घर पर रहने वालों को। इसके पीछे कारण यह बताया कि अस्पतालों में जब ऑक्सीजन की कमी से मरीज मरे तो प्रैस वाले वहां पहुंच गए और खबरें बन गए कि ऑक्सीजन की कमी से, सरकार की लापरवाही से जनता की जानें गईं और जो व्यक्ति अपने घरों में आइसोलेट हैं, उन तक प्रैस पहुंचती नहीं, वे मर भी जाएं तो समाचार बनता नहीं, उसमें कह दिया जाता है कि समय रहते डॉक्टर को इत्तला नहीं दी। वर्तमान में भी स्थिति कमोवेश वही है। पहले अस्पतालों को सप्लाई की जा रही है फिर घरों में। अब ऑक्सीजन लेने के लिए लाइनें नहीं लग रहीं। अर्थात जो व्यक्ति एकत्रित हो जाते थे और आपस में पता लग जाता था कि कितने लोग ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं, वह सब अकेले पड़ गए और सरकार की परेशानी दूर हो गई। ऑक्सीजन की कमी तो है। स्वाभाविक है कि किसी चीज की भी अकस्मात मांग कई गुणा बढ़ जाए तो कमी आएगी। यह निश्चित है और यह बात हर व्यक्ति समझता भी है। तो इस बात को मानकर सत्यता से स्वीकार कर दृढ़ इच्छाशक्ति से ऑक्सीजन उत्पादन पर ध्यान दें, कुछ दिया भी जा रहा है तो मात्र दो-तीन दिन में यह कमी दूर हो सकती है। अब आप ही विचार कीजिए भगवान न करे आपके किसी के घर कोई मरीज है तो क्या आपके पास ऑक्सीजन सिलेंडर है? जो आप भरवा लेंगे। फिर सप्लाई कैसे होगी? सिलेंडर की कमी तो है ही, इसके साथ-साथ इस पर लगने वाले ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले नोजल की भी बाजार में खूब कालाबाजारी हो रही है। सरकार को इन बातों को समझना चाहिए। शास्वत नियम है कि जब कोई विपत्ति आए तो उसका मिल-जुलकर सामना करना चाहिए। परंतु यहां सरकार में इसका बहुत अभाव देखा जा रहा है। विपक्षी दल कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा बार-बार यह मांग कर रही हैं कि सर्वदलीय बैठक बुलाकर इसके समाधान पर विचार करना चाहिए। परंतु सरकार की ओर से उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। इसी प्रकार हरियाणा की भूमि में बड़े-बड़े बुद्धिजीवी और हर क्षेत्र के विशेषज्ञ उपलब्ध हैं, सरकार को चाहिए कि जिस-जिस क्षेत्र में उन्हें काम करना है, उस क्षेत्र के विशेषज्ञों से मिलकर समस्या का समाधान निकाले। समाधान अवश्य निकलेगा लेकिन यहां तो यह नजर आ रहा है कि सरकार विपक्ष तो क्या अपने विधायक और मंत्रियों तथा संगठन को भी एकजुट कर विचार-विमर्श नहीं कर रही। हर कोई अपने स्तर पर लगी आग बुझाने के लिए एक लोटा पानी डालकर बुझाने के प्रयास में लगा हुआ है। मैं नहीं समझता कि वह सब भी इन बातों को नहीं समझते होंगे। परंतु या तो सरकार या मुख्यमंत्री अकस्मात आई मुसीबत से हड़बड़ा गए हैं और या फिर उनका अहम प्रदेश की जनता की त्रासदी को देखकर पिघल नहीं रहा। अंत में यही कहना चाहूंगा कि आप जनता को सच्चाई से अवगत कराएं, यह सीधा जनता से जुड़ा हुआ है विषय है, आपका झूठ टिक नहीं पाएगा। सबको दिखाई दे रहा है कि अस्पतालों में कितने ही बैड लगा दो, डॉक्टरों और मैडिकल स्टाफ की कमी निरंत बढ़ती जा रही है, बैड तो जनता के घरों में भी लग सकते हैं। अस्पतालों में इसीलिए जाते हैं कि उन्हें वहां डॉक्टर, नर्स की सेवाएं मिलती रहती हैं, जो परम आवश्यक हैं। Post navigation गुरुग्राम में कोरोना मरीजों के रिकवरी रेट में सुधार जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण , गुरुग्राम द्वारा तैयार किया गया आईसोलेशन सेंटर