भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम से मुख्यमंत्री का कोई खास रिश्ता है तभी तो हर मौके पर गुरुग्राम की याद आती है। गुरुग्राम का शीतला माता मंदिर हो उसके चेयरमैन मुख्यमंत्री, जिला कष्ट निवारण समिति के चेयरमैन मुख्यमंत्री और वर्तमान में कोविड के गुरुग्राम के इंचार्ज भी मुख्यमंत्री। फिर भी गुरुग्राम कोरोना के कारण बदहाल है। हर घर के व्यक्ति या उसके मित्र-संबंधी कोरोना से जूझ रहे हैं। बाजार में कालाबाजारी का साम्राज्य है, दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं, अस्पताल मरीजों को लूट रहे हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि गुरुग्राम की जनता में हताशा का माहौल बनता जा रहा है। आज ये विचार मन में तब आया जब प्रशासन की ओर से विज्ञप्ति मिली कि जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के बीच तालमेल हेतु नोडल ऑफिसर नियुक्त किया है। बात गले से उतरी नहीं, आगे सूत्रों से पता कि तो सत्य निकली। 

स बात से प्रश्न यह खड़ा होता है कि हम प्रजातंत्र में जी रहे हैं या राजतंत्र में? जनप्रतिनिधि जनता से सीधा सरोकार रखते हैं। हर समय जनप्रतिनिधि जनता के सुख-दुख के साथी होते हैं और उनका भविष्य भी जनता के साथ रहने पर ही जुड़ा हुआ है और मुख्यमंत्री जिस कुर्सी पर विद्यमान हैं, वह कुर्सी भी वैधानिक रूप से इन जनप्रतिनिधियों के कारण ही है। यह दिगर बात है कि इन जनप्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्मान किया और नरेंद्र मोदी की बात मान इन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सुशोभित कर दिया। प्रजातंत्र में प्रजा को सबसे बड़ी शक्ति माना है और अधिकारी जहां तक मैं जानता हूं, जनता की सेवा और भलाई के लिए ही नियुक्त किए जाते हैं और जनता की आवाज सुनना अधिकारियों का कर्तव्य है लेकिन यहां तो इन्तहां हो गई। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि भी अधिकारियों से बात नहीं कर सकते हैं। उनको भी मध्यस्थ के माध्यम से बात करनी पड़ेगी, कैसा प्रजातंत्र है?

इस बात को आगे करेंगे, पहले गुरुग्राम की स्थिति पर नजर डालें। जबसे कोरोना का प्रकोप आया है, तब से गुरुग्राम में सर्वाधिक कोरोना मरीज मिले हैं। ये आंकड़े कहते हैं, मैं नहीं कहता। दूसरी लहर में कोरोना ने गुरुग्राम में कहर बरपा रखा है। अवसरवादी चाहे वह बनिया हों, चाहे अस्पताल वाले। तात्पर्य यह है कि कालाबाजारी और जनता को लूटने का काम चल रहा है। जिन अधिकारियों का कर्तव्य है कि जनता के सुख-दुख की पल-पल की खबर रखें, उन्होंने आज इतने दिन बाद कुछ चुनिंदा खाने की चीजों की रेट लिस्ट जारी की और एंबुलेंस की रेट लिस्ट जारी की। इतने दिन से इन्हें ख्याल नहीं आया और अब यह लिस्ट जारी कर दी है तो इस पर कोई कार्यवाही होगी, इसमें भी जनता को संदेह है, क्योंकि सब अस्पताल सीएमओ के अधीन आते हैं और सभी का डाटा सीएमओ और प्रशासन के पास होता है।

उसके पश्चात भी सभी अस्पताल लूट मचा रहे हैं। हर अस्पताल पर प्रशासन ने अपने नोडल ऑफिसर लगा रखे हैं तो वे नोडल ऑफिसर क्या देख रहे हैं? वास्तव में तो कार्यवाही उन नोडल ऑफिसर पर होनी चाहिए, जिनकी उपस्थिति में अस्पताल कालाबाजारी कर रहे हैं और मजेदारी देखिए। आज इतने समय बाद ऑक्सीजन के टोकन लेने के लिए निगम ने तीन काउंटर खोले और कहा कि प्रत्येक काउंटर पर 30-30 टोकन मिलेंगे और वह दो दिन तक वैद्य होंगे अर्थात उन्हें ऑक्सीजन दो दिन तक मिलेगी। अब जब किसी चीज की कमी होती है और इस तरह लाइन लगकर टोकन मिलते हैं तो वह अपने आपमें भ्रष्टाचार का रास्ता खोलता है। जो लोग टोकन ले जाएंगे, हो सकता है वही ब्लैक करें। हो सकता टोकन देने में भी अधिकारी भेदभाव करें। दूसरी ओर प्रशासन ने यह मान लिया कि हमारे पास ऑक्सीजन की कमी है, जबकि अब तक मुख्यमंत्री और सरकार यही कह रही है कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है।

गुरुग्राम में ऑक्सीजन की कमी से दो अस्पतालों में दर्दनाक मौतें हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री उस पर कुछ क्यों नहीं बोलते? कथूरिया अस्पताल चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा था कि ऑक्सीजन नहीं है। अब तक क्या जांच हुई, क्या सजा हुई? इसी प्रकार  कीर्ती अस्पताल में डॉक्टर ही भाग गए मरीजों को छोड़कर और मरीजों को मौत ने लील लिया। उस पर क्या जांच हुई? शहर में चर्चा है कि उस अस्पताल को कोविड पेशेंट रखने की अनुमति ही नहीं थी लेकिन अस्पताल के मालिक बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में माने जाते हैं। अत: इसलिए लोग मर जाएं, उसका चिंता नहीं है। उनको (अस्पताल वालों को) कैसे बचाया जाए, शायद यही चिंता शासन-प्रशासन को है। वरना इतने आदमियों की लापरवाही से मौत, जिम्मेदार व्यक्ति तो चंद घंटों में सलाखों के पीछे होना चाहिए था लेकिन इन मुद्दों पर मुख्यमंत्री की जबान नहीं खुलती।

5 मई को बंगाल के मुद्दे पर हरियाणा में हर जगह धरना-प्रदर्शन किए गए, जबकि संपूर्ण हरियाणा में लॉकडाउन और धारा-144 लगी हुई है। दूसरी ओर कल ही माननीय मुख्यमंत्री का जन्मदिन भी था और हमने देखा तो नहीं लेकिन सोशल मीडिया पर उनके जन्मदिन की खुशी-खुशी बधाइयां देने की फोटोज वायरल हो रही थीं। उससे यह लगता है कि मुख्यमंत्री को किसान आंदोलन और कोरोना के कहर में मरती दुनिया की परेशानियों की चिंता से अधिक जरूरी अपने जन्मदिन की शुभकामनाएं लेना है। यह तो एक व्यक्ति ने बताया कि वही बात हुई कि रोम जल रहा था, नीरो बंसी बजा रहा था। यहां प्रदेश मर रहा है और मुख्यमंत्री जन्मदिन मना रहे हैं। प्रजातंत्र में इसे जनता किस रूप में लेगी, यह शायद हमारे से अधिक मुख्यमंत्री जानते होंगे। इससे भी ऊपर बहुत प्रतीक्षा के बाद भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी घोषित हुई तो कल जिनको पद मिला है, उनको बधाई देने वालों का सिलसिला भी चलता रहा और बधाइयां चिंतित होकर दी जाती है या प्रसन्न होकर, यह आप ही सोच लीजिए।

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, बशर्ते कोशिश लक्ष्य की ओर हो:

गुरुग्राम तो इतना साधन संपन्न क्षेत्र है कि हर मुसीबत का डटकर सामना कर सकता है। प्रशासन जनता का सहयोग लेता नहीं और उसकी कोशिश लक्ष्य की ओर न होकर ड्यूटी निभाने की होती है। ऐसे में लक्ष्य प्राप्ति कैसे हो?

गुरुग्राम में अनेक फार्मा की फैक्ट्रियां हैं, उनके दवाई उत्पाद कराई जा सकती है, ऑक्सीजन के लिए बड़े-बड़े धन-कुबेर बैठे हैं गुरुग्राम में। उन्हें इजाजत दें तो 10 दिन में गुरुग्राम अपनी जरूरतें ही नहीं पूरी करें, बाकी क्षेत्र को भी ऑक्सीजन दे सकता है। वर्तमान में कालाबाजारी रोकने के लिए ऑक्सीजन के लिए लोगों को ऑक्सीजन सेंटर पर बुलाने की बजाय यदि उनके अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुंचाई जाए और घर में आइसोलेशन पर रह रहे मरीजों को घर पर पहुंचाई जाए तो फौरन भी ऑक्सीजन की कमी पूर्ण हो सकती है, क्योंकि इस तरीके से कालाबाजारी समाप्त हो जाएगी।

समझ नहीं आता कि ऑक्सीजन फिलिंग स्टेशन पर कोविड काल और लॉकडाउन में लाइन लगवाना प्रशासन को कैसे रास आ रहा है? क्या उन्हें जनता के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है? इतने संसाधन वह वहां ऑक्सीजन लेने वालों पर खर्च कर रही है, इतने में घर-घर ऑक्सीजन पहुंचाई जा सकती है और कोविड प्रोटोकाल भी नहीं टूटेगा। इसी प्रकार सभी कैमिस्ट सीएमओ के पास रजिस्टर्ड हैं, उनकी चैकिंग अधिकारी करते हैं, फिर कैमिस्ट कैसे कालाबाजारी कर सकते हैं? प्रश्न वही है कि मेहनत लगन से होनी चाहिए।

आज के लिए इतना ही। गुरुग्रामवासियों से बस यही कहना चाहूंगा कि मिल-जुलकर किसी भी महामारी से बड़ी आसानी से निपटा जा सकता है। साहस बनाए रखिए और अपने जनप्रतिनिधियों के साथ खड़े होकर अधिकारियों को उनके कार्यों को मनोयोग से करने के लिए मजबूर करें।

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