इतनी बड़ी आबादी पर डंडे से हुकूमत नहीं की जा सकती, हां सुझाव दिये जा सकते हैं।दोहरा चरित्र, एक ओर लाकडाउन का समर्थन वहीं दूसरी ओर लाकडाउन के विरोध में कटोरा लेकर भीख मांगी।दमोह को छोड़कर लाकडाउन का ऐलान भी मध्यप्रदेश में कर दिया। महाराष्ट्र में भाजपाई विपक्ष में रहकर नोटंकी कर लड़ने खड़े हो जाते है और मध्यप्रदेश में लोगों की स्थिति बाढ़ में बहकर आये जैसी हो गई है? अशोक कुमार कौशिक प्रशासन लॉकडाउन क्यों लगाता है? ताकि भीड़ ना हो। मगर इस तरह रोज़गार बाधित होता है और लोगों को ज़रूरी चीजों की दिक्कत होती है, कालाबाजारी होती है, गरीब मारे जाते हैं। तो क्या करना चाहिए कि जिससे भीड़ भी ना हो, लोगों का रोज़गार भी ना जाए और कालाबाज़ारी भी ना हो? इसका उपाय सीधा और सरल है, मगर पहले हमें समस्या को जानना चाहिए। समस्या यह है कि बाजारों में भीड़ होती है। भीड़ इसलिए होती है कि बाजार सीमित समय के लिए खुलते हैं। और कम समय के लिए खुलेंगे तो और ज्यादा भीड़ होगी। प्रशासन को गंभीर सुझाव है कि वो तालाबंदी की बजाय तालाजब्ती करे। दुकानदारों के सारे ताले जब्त कर ले और कहे कि आपको दुकान चौबीसों घंटे खुली रखनी होगी। फिर जनता को संदेश भेजे की आज से सारे बाज़ार चौबीसों घंटे खुले रहेंगे, आप आधी रात को भी जाकर सामान ला सकते हैं, मगर किसी भी दुकान पर भीड़ लगाना ज़रूरी नहीं है। दुकानदार को मजबूर किया जाए कि वो रात को भी दुकान खुली रखे। दुकानदारों को ताला नहीं लगाने दिया जाए। पीक अवर में पुलिस निगरानी करे कि किसी दुकान में ज्यादा भीड़ तो नहीं हो रही, जहां ज्यादा भीड़ दिखे वहां चालान बनाया जाए। सोचिए कि अगर किसी के पास आधी रात को भी चक्की पर जाकर आटा लाने की सुविधा हो, तो वो दिन में क्यों बीस लोगों में घुसकर आटा लेगा। हमारे यहां सब्जी मंडी में सबसे ज्यादा भीड़ इसीलिए होती है कि कहीं सब्जी छंट ना जाए। ठेले वालों को चिन्हिंत कर उनसे अनुरोध किया जाए कि वे ज्यादा मेहनत करें और ज्यादा गलियों में सब्जियां ले जाएं जिससे जनता को बाहर निकलने की नौबत ना आए। सरकारी कार्यालय भी चौबीसों घंटे खुले रखने की कोशिश की जाए, ताकि आदमी कभी भी चला जाए। थाने चौबीसों घंटे खुले रहते हैं। आदमी जब पिटता है, तभी थाने चला जाता है। थाने में भीड़ नहीं लगती। थाना भी अगर टाइम टू टाइम खुले तो सोचिए फरियादियों की चीख पुकार से आसमान गूंज उठे। हर चीज़ अगर हर समय उपलब्ध रहे और साथ में प्रचार इस बात का हो कि भीड़ से बचिये बाजार चौबीस घंटे चालू है। जिस समय भीड़ हो उस समय सामान लेने की बजाय बाद में ले लें या उस दुकान से लें जिसमें भीड़ नहीं हो। प्रशासन जनता को यकीन दिलाए कि जो कुछ भी वो कर रहा है, सबकी भलाई के लिए कर रहा है। बिना मास्क निकलने वालों पर ओपन जेल भेजने की सॉफ्ट कार्रवाई करने बजाय और कड़ा दंड दें। अंग्रेजों की तरह सार्वजनिक रूप से बेंत भी लगाई जाए तो कम है। होता यह है कि लॉकडाउन लगने के बाद आदमी को जब किसी चीज़ की ज़रूरत होती है, वो गलियों में भटकता है। सीमित समय के लिए दुकाने खुलती हैं तो भीड़ बहुत लग जाती है जिससे कोरोना संक्रमण बढ़ता है। समस्या अगर भीड़ है तो इस समस्या को हल करने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए जिसका एक सुझाव तालाजब्ती भी है। सच में ताला जब्त करने की ज़रूरत नहीं, यह तो बस तालाबंदी के उलट एक शब्द है। असल बात है बाजार ज्यादा से ज्यादा खोले जाने की और लोगों में संक्रमण के खिलाफ प्रचार बढ़ाने की। इतनी बड़ी आबादी पर डंडे से हुकूमत नहीं की जा सकती, हां सुझाव दिये जा सकते हैं। दोहरा चरित्र…एक ओर लाकडाउन का समर्थन वहीं दूसरी ओर लाकडाउन के विरोध में कटोरा लेकर भीख मांगी (राहुल गोरानी) इस तस्वीर को देखिये ये है सतारा से भाजपा के राज्यसभा सांसद उदयन राज भोसले इन्होने सतारा (महाराष्ट्र) में लाकडाउन का विरोध करने का अनूठा तरीका निकाला । ये महाशय हाथ में कटोरा लेकर भीख मांगने निकले और मजे की बात यह रही कि सांसद महोदय ने 450 रुपए भींख मांग कर जमा भी कर लिये और इन पैसों को कलेक्टर ऑफिस में जमा करवाया। सांसद का कहना है कि लाकडाउन के कारण भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है और व्यापारियों का काफी नुकसान भी होगा। महाराष्ट्र सरकार को जल्द से जल्द इस पर विचार करना चाहिए। अब यहां विचार करने वाली बात यह है कि भाजपाईयों को विपक्ष में रहकर ही जनता की चिंता क्यो होती है? वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश की बात करे तो यहां भाजपा सत्ता में है चुनाव से लेकर तमाम मामले निपटाने के बाद कोरोना की याद आयी। सायरन भी बजा दिया, भीड़ लगाकर गोले बनाना भी सिखा दिये, राजनीतिक रैलियां भी कर ली, बैठके भी हो गई और सबकुछ हो जाने के बाद अब आखरी विकल्प लाकडाउन ही दिखाई दिया और चुनावी क्षेत्र दमोह को छोड़कर लाकडाउन का ऐलान भी मध्यप्रदेश में कर दिया। महाराष्ट्र में भाजपा कह रही है कि व्यापारी नुकसान में है, परेशान है। इन्हें पहले आर्थिक मदद घोषित करो फिर लाकडाउन लगाओ वहीं मध्यप्रदेश के व्यापारी यहां तक कह रहे है कि महाराष्ट्र में भाजपाई विपक्ष में रहकर हमारे लिए नोटंकी कर लड़ने खड़े हो जाते है और यहां मध्यप्रदेश में हम लोगों की स्थिति बाढ़ में बहकर आये जैसी हो गई है? यहां की सत्तासीन शिवराज सरकार हमें अनदेखा कर रही हैं। इसे दोहरा चरित्र ही कहा जाएगा कि जहां आप सत्ता में हो वहां आप जनता की परेशानियों को समझ नहीं रहे हो और जहां आप विपक्ष में हो वहां आप कटोरा हाथ में लेकर विरोध कर रहे हो। पिछले एक साल से मध्यमवर्गी परिवार, छोटे व्यापारी, फेरीवाले अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज भी रोज के कमाने खाने वाले, रेहड़ी वालों की बहुत दुर्दशा है। एक बड़ी संख्या में शहरी और ग्रामीण मजदूर दिन भर मजदूरी करके गर्मियों में लगभग 10 बजे रात तक आइसक्रीम,ठंडा, और जूस का ठेला लगाते हैं। लाकडाउन उनके लिए काल है। देश में कई जगह परिवार सहित आत्महत्याओं का दौर शुरु हो चुका है। कोरोना में जहां किसी ने अपना परिवार खोया तो किसी ने अस्पतालों में अपनी जीवनभर की कमाई गंवा दी। उसके बाद अब फिर से लाकडाउन का सामना करना कैसा संभव होगा यह कहना काफी मुश्किल है। मध्यप्रदेश में कुछ माह पूर्व प्रमुख शहरों में संक्रमण दर कम हो गई थी तब प्रशासन चेन से सो रहा था अगर उसी समय थोड़ी अवेयरनेस रखी होती तो यह स्थिति नहीं बनती। आज स्थिति काफी खराब है लोग बिमारी से भय में भी है और लाकडाउन के कारण आर्थिक तंगी भी झेल रहे हैं। अस्पतालों ने कमाई में सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं कोविड के इलाज के लिए अब पैकेज सिस्टम बना लिया है दस से पच्चीस हजार प्रतिदिन के हिसाब से लूटा जा रहा है। वहीं सत्तासीन केवल भाषणबाजी और रेलियों में व्यस्त है। वे अपने एसी कमरों में बैठके लेकर अपने उलजुलूल निर्णय जनता पर थोप देते हैं। जिसे दबी कूचली जनता भी मानने को मजबूर है। देश के प्रधान सेवक टीकोत्सव मनाने की बात कह रहे हैं जबकि देश में कई जगह टीके ही खत्म हो गये हैं और कोरोना भी कमाल कर रहा है जहां चुनाव है वहां बिमारी है ही नहीं वहां बेधड़क रेलियां निकाली जा रही है । सोशल डिस्टेंसिंग का तो सवाल ही नहीं । लेकिन जहां चुनाव खत्म वहां कोरोना फिर जिंदा हो रहा है। इसे हास्यासपद न कहें तो फिर क्या कहें कि सालभर हो गया कोरोना संक्रमण को हमने थाली बजाली, मोमबत्ती जला ली, सबकुछ कर लिया लेकिन बिमारी उससे भी ज्यादा तेज गति से बढ़ रही है । इस एक साल में कोई ठोस प्रबंध नहीं किये गये केवल भाषणबाजी कर लोगों को बेवकूफ बनाया गया। “ना जाने इश्वर कैसी परीक्षा ले रहा है।” इन पगलैटों और निरंकुशों की सत्ता ने प्रत्येक वर्ग की आमदनी और जीने के अधिकार को अर्थव्यवस्था की तरह पाताल में पहुँचा दिया है। अब देखना है कि पहले से मरी हुई जनता जिंदा कब होती है। Post navigation आफ द रिकार्ड–यशवीर कादियान पत्रकार, राजनेता और रिश्ते,,,,