परिवार पहचान पत्र

हरियाणा सरकार की महत्वकांक्षी परिवार पहचान पत्र योजना यानी पीपीपी या ट्रिपल पी विवादों में घिरती जा रही है। इस पर सवाल किसी ओर ने नहीं,बल्कि सरकार के ही एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने खड़े किए हैं। ये अधिकारी हैं अशोक खेमका। जब भाजपा हरियाणा में विपक्ष में होने के अपने अंतिम चरण में थी-अपने आखिरी दिन गिन रही थी तो तब खेमका इस पार्टी के अचानक से अत्यंत प्रिय हो गए थे। राज में आने के बाद खेमका और भाजपा ने एक दूसरे को जी भर के परख लिया और दोनों ने ही एक दूसरे से एक अरसे से लगभग किनारा कर रखा है। इन दिनों खेमका पुरातत्व और संग्राहलय विभाग के प्रशासकीय सचिव हैं। उन्होंने पीपीपी योजना की नए सिरे से समीक्षा करने की जरूरत जताई है। इसके लिए उन्होंने सबंधित विभाग के प्रशासकीय सचिव वी.उमाशंकर,जो इत्तफाक से मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव का दायित्व भी संभाल रहे हैं, को एक करारा सा-प्यारा सा-न्यारा सा खत लिख कर परस्पर विरोधी आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं।

इस खत में खेमका ने कहा है कि पीपीपी के उपलब्ध डाटा बेस के मुताबिक हरियाणा में 68 लाख परिवारों में 2.50 करोड़ लोग हैं। इस हिसाब से हर घर में 3.68 सदस्य हैं,जबकि वर्ष 2021 के लिए प्रौजेक्टिड जनगणना डाटा के मुताबिक 67.60 लाख परिवारों में 2.95 करोड़ की आबादी होगी। हर घर में 4.36 सदस्य होंगे। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि 45 लाख की आबादी मिसिंग हैं। पीपीपी के 88 फीसदी उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इनकी एक लाख,71 हजारा,012 करोड़ रूपए आय होगी,जबकि वर्ष 2021 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक राज्य की जीएसडीपी सात लाख,64 हजार,872 करोड़ होगी।

खेमका ने सुझाव दिया है कि सरकार की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन और गरीबों को इसका लाभ पहुंचाने के लिए बीपीएल-अंत्योदय डाटा बेस को ज्यादा सही-सटीक बनाया जाए। इसे आधार नंबर से जोड़ा जाए। इसमें प्रवासी पापुलेशन को भी शामिल किया जाए। खैर ये तो हुए खेमका के सुझाव।

अब सरकारों में तो एक से बढ कर एक थिंक टैंक होते हैं। ये उन्होंने देखना है कि किसकी कितनी बात माननी हैै। सरकारों में ऐसा अक्सर होता है कि तर्क या जरूरत के आधार पर फैसले नहीं होता। ये देखा जाता है कि इन फैसलों-योजनाओं का आइडिया किसने दिया? अगर आइडिया देने वाला शख्स उच्च पद पर आसीन है और दूसरों का फायदा-नुकसान करने की हैसियत में है तो फिर उसके कहे पर सब लोग मोहर लगा देंगे। वाह जनाब वाह जनाब चिल्ला देंगे। और अगर आइडिया देने वाली की सरकारी सिस्टम में कोई हैसियत नहीं है तो फिर चाहे वो लाख टके की बात ही क्यंू न कहे, उसकी बात से किनारा कर लिया जाएगा। वैसे अपने नागरिकों का डाटा बेस बनाने में हर्ज नहीं है। कई देशों में ये सिस्टम पहले से है। ये होना ही चाहिए। बनना ही चाहिए। इसके आधार पर ज्यादा प्रभावी योजनाएं बनाई जा सकती है। कुछ बरस पहले सरकार ने स्टेट रैजीडेंट डाटा बेस-एसआरडीबी जुटाने का भी अभियान चलाया था जो अनेक ज्ञात-अज्ञात कारणों से सिरे नहीं चढ पाया था। हम ट्रिपल पी की सफलता की कामना करते हैं। उम्मीद है कि इसका हश्र वो नहीं होगा जो बरौदा उपचुनाव की घोषणा से पहले की गई कई सरकारी घोषणाओं के साथ हुआ पाया गया है। इस हालात पर कहा जा सकता है:
चीख होंठों पर न आंखों में नमी आती है
अपने रोने पे कई बार हंसी आती है
उस लकड़हारे की नींदों की खुदा खैर करे
जिस के ख्वाबों में परी आती है

पांच लाख का पांच हजार

दो पुराने दोस्त। दोनों की पहली मुलाकात में ही दोस्ती हो गई। इनकी दोस्ती को अब तो करीब तीन दशक होने को हैं। इनमें से एक अब सीनियर आईएएस अधिकारी हैं तो दूसरे केंद्रीय मंत्री हैं। पिछले दिनों इन दोनों की मुलाकात हुई। पुराने यादें ताजा हो गई। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उन दिनों मैं नगर निगम पार्षद था और ये साहब हमारे जिले में हुडा प्रशासक के पद पर तैनात थे। हमारे किसी दोस्त की बिल्डिंग पर हुडा वालों ने पांच लाख का जुर्माना लगा दिया। हमने इन साहब से मदद की गुजारिश की। इन्होंने हमारे कहे को इज्जत बख्शी। पर इतनी ज्यादा इज्जत बख्शेंगे, इसकी तो हमने कल्पना भी नहीं की थी। पांच लाख का जुर्माना घटा कर महज पांच हजार पर निपटा दिया। सिमटा दिया। ऐसा काम कोई कोई विरला अफसर ही कर सकता है। मंत्री जी ने कहा कि हमारे तो सारे दोस्त ऐसे ही मिलेंगे। एक से बढ कर एक मिलेंगे। इस पर ये साहब कहने लगे कि भले ही कहीं के मिलें,लेकिन हरियाणा में तो ऐसे दोस्त शायद ही मिलेंगे। बिहार के तो आपको खूब ही मिलेंगे। इस पर मंत्री जी ने भी अपने बिहारी अफसर दोस्तों की सूची एक सांस में सुना दी। जुर्माने की राशि पांच लाख से पांच हजार करने पर हैरत जताते हुए मंत्री जी के निजी स्टाफ के एक सज्जन कहने लगे कि पांच लाख में तो तब 100 गज का प्लाट आ जाता होगा। साहब कहने लगे कि क्या बात कर रहे हो? तब 100 गज का नहीं,500 गज का प्लाट आ जाता था। जानकारी के लिए बतला दें कि ये अधिकारी सिद्धीनाथ राय हैं और केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुज्जर हैं।

टीसी गुप्ता

खनन विभाग में चंद महीनों में ही राजस्व में करीब 300 करोड़ रूपए की बढौतरी हो गई है। इस मुश्किल काम को करने में विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव टीसी गुप्ता की अहम भूमिका रही है। गुप्ता के संज्ञान में आया कि विभाग के दो कर्मचारी उनके कहे कोे गंभीरता से नहीं ले रहे। ये सोच कर कोताही कर रहे थे कि गुप्ता तो चंद दिन बाद रिटायर होने वाले ही हैं,ऐसे में उनको अवें ही टरका देते हैं। अब गुप्ता तो गुप्ता हैं। मंझे हुए और छंटे हुए आईएएस अधिकारी हैं। अपने कहे को हल्के में लेने वालों का वो ईलाज करने में माहिर हैं। फिर क्या था? कर दिया इनका भी ईलाज। कर दिया एक्शन। कर दिया बिस्तर गोल। सस्पैंड होने के बाद अब ये कर्मचारी दूसरों को नसीहत देते फिर रहे हैं कि चाहे कुछ हो जाए गुप्ता जी के फोन को तो इनकी रिटायरमेंट के बाद भी पूरी तव्वजो देनी है।

वाहन पंजीकरण

हरियाणा सीएम फ्लाइंग स्कैवड के संज्ञान में आया कि वाहनों के पंजीकरण में उपमंडल स्तर पर कई स्थानों पर गड़बड़ी हो रही है। चोरी की गाड़ियों का भी दलालों और एसडीएम कार्यालय के स्टाफ की मिलीभगत से पंजीकरण हो रहा है। ऐसे 18 एसडीएम आफिस में ये कांड होने के तथ्य जुटाए गए हैं। ऐसे मामलों में तीन एचसीएस अफसरों के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं। कई मौजूदा एसडीएम और कई पूर्व एसडीएम का मानना है कि आमतौर पर ऐसे कारनामे डाटा एंट्री आपरेटर की मिलीभगत से ही सिरे चढ जाते हैं। सबंधित पोर्टल के यूजर आईडी और पासवर्ड इन आपरेटर के पास ही होते ही हैं और वो ही लालच में दलालों का मोहरा बन कर ये गलत काम कर जाते हैं। बहुत दफा एसडीएम को तो ये जानकारी भी नहीं होती कि उनके आफिस में इस तरह के कांड हो रहे हैं। अब कई एचसीएस अफसर ये आस तक रहे हैं कि उनकी एसोसिएशन के लोग उनकी इस पीड़ा सरकार तक पहुंचाएंगे। उनको इस तकलीफ से मुक्ति दिलवाएंगे। हकीकत चाहे जो भी हो,लेकिन एसडीएम के आफिस में इस तरह के कारनामे ना हों,इसकी जवाबदेही भी तो एसडीएम की ही है। अब पता नहीं एचसीएस एसोसिएशन इस मामले में कुछ कर पाएगी भी या नहीं? इस हालात पर कहा जा सकता है:
लाख बहलाएं तबियत को बहलती ही नहीं
दिल में एक फांस चुभी है कि निकलती ही नहीं
कायदा है कि जो गिरता है वो संभलता है
दिल की हालत वो गिरी है कि संभलती ही नहीं
रंगा क्या क्या फलके पीर ने बदले हैं लेकिन
मेरी तकदीर…कि ये रंग बदलती ही नहीं