* मोदी  ने बांग्लादेश की आज़ादी के लिये सत्याग्रह किया था।
* चाय बेचने, मगरमच्छ पकड़ने, 35 साल तक भीख मांगने, एंटायर पोलिटिकल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन करने, हिमालय में सन्यास लेने की निजी घटनाओं के बाद, एक नई जानकारी है।
* वामपंथियों को अब समझा गया होगा की झूठ चार दिन ही टिकता है, आखिर सत्य की ही विजय होती है।

अशोक कुमार कौशिक 

माननीय मोदी के जीवन में उनकी 20-22 साल की उम्र विशिष्ट है। यही वह अवस्था है जिसमें उन्होंने लगभग वह सारे काम किए जो भगवान राम को करने में अयोध्या काण्ड से लंका काण्ड तक का समय लगा। मतलब भगवान राम के 14 वर्षों के काम को इन्होने मात्र दो-तीन वर्षों में कर लिया।

उम्र के इस अवस्था में ये घर को त्याग चुके थे। मोदी ने इसी बीच हिमालय में तपस्या की। संघ के पूर्णकालिक सदस्य बने, प्रचारक हुए। इस बीच बेलूर मठ के प्रवास को पूरा कर अहमदाबाद गए जहाँ अपने चाचा के कैंटीन (गुजरात राज्य पथ परिवहन निगम) मे नौकरी की। और तो और इसी कालखंड में वे भीख मांग कर जीवन यापन कर रहे थे। (उन्होने बताया है कि उन्होने 35 वर्षों तक भिक्षा मांग कर खाया है। जाहिर है ये 35 वर्ष गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले अर्थात 2001 से पहले के हैं) फिर बंग्लादेश की आजादी की लड़ाई लड़ी और जीतने के बाद शेख मुजीबुर्रहमान को वहाँ का राज-पाट ठीक वैसे ही सौंप दिया जैसे भगवान राम ने लंका विभिषण को सौंप दिया था।

इसलिए कहता हूँ कि मोदी नाॅर्मल आदमी नहीं हैं।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश की आज़ादी के लिये जब वे 20 – 22 वर्ष के थे तो, उन्होंने सत्याग्रह किया था। यह रहस्योद्घाटन पीएमओ की इस ट्वीट से हुआ है। न्यूज 24 के अनुसार वे जेल भी गए थे। 

अब देखिए “वामपंथी” इतिहासकारों ने कितना झूठा इतिहास लिखा है देश का। अब परतें खुल रही हैं धीरे धीरे। इसीलिए जागे हुए कट्टर हिंदुओं का राज अभी और जारी रहना चाहिए। कम से कम देश और खासकर युवा वर्ग को सच्चा इतिहास तो जानने को मिले। अगर हम छोटी मोटी बातें जैसे गांधी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश नही करी, पटेल और नेहरू एक दूसरे की शवयात्रा में नही गए, नेहरू ने चीन को यूएन की सीट दान कर दी पर ध्यान न भी दें तो सिर्फ हिंदू हृदय सम्राट मोदी जी के बारे में ही इन वामपंथियों ने कितना झूठ फैला रखा है। 

कभी किसी वामपंथी ने जिक्र तक नहीं किया की मोदी बांग्लादेश की आजादी के लिए जेल गए थे। यह तक नही बताया की मोदी भी कभी आंदोलन जीवी थे। आखिर मोदी ने ही वामपंथियों की कलई खोल दी। कल देखा की कलई खुलने पर अलग अलग शहरों से तेरह वामपंथियों के डूबकर मरने की खबर आई। अब रविश ऐसे तो कभी बताने से रहे यह खबर। शर्मनाक। घोर निन्दा।

कल एक भक्त बहुत आंदोलित दिखा। उसे शक नहीं पूरा यकीन था की जरूर मोदी पाकिस्तान की आजादी के आंदोलन में भी शरीक रहे होंगे। कोरिया की आजादी, जर्मनी की दीवार टूटने, भारत को ओलंपिक में गोल्ड में भी मोदी जी का हाथ होने की गारंटी लेने को तैयार था। उसे तो यह भी शक था की मोदी ने जरूर भारत की आजादी में भी आंदोलनजीवी का रुख अख्तियार किया होगा और इन वामपंथियों ने मोदी को नीचा दिखाने के लिए उनकी जन्मतिथि ही बदल दी। एक बार फिर से घोर निन्दा।

दूसरा भक्त परेशान था की हो न हो द्वितीय विश्व युद्ध में मोदी के योगदान के बारे में गूगल तक कमीनापन दिखा रहा है। पिचाई वैसे तो मोदी मोदी करते हैं लेकिन इस सच को छिपा गए। शर्मनाक! अंदर की खबर है की भाजपाई आईटी सेल ने मैटेरियल तैयार कर लिया है जिसमें मोदी जी का द्वितीय विश्व युद्ध और पाकिस्तान की आजादी में योगदान के बारे में विस्तार से बताया गया है। कैसे मोदी ने हिटलर को हराने में रूस की मदद की, कैसे पाकिस्तान की आजादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। कैसे मोदी आज भी पांचों वक्त के नमाज़ी हैं। अब यह वामपंथी क्या करेंगे ? वामपंथियों को अब समझा गया होगा की झूठ चार दिन ही टिकता है। आखिर सत्य की ही विजय होती है।

चाय बेचने, मगरमच्छ पकड़ने, 35 साल तक भीख मांगने, एंटायर पोलिटिकल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएशन करने, हिमालय में सन्यास लेने की निजी घटनाओं के बाद, यह एक नई जानकारी है। ये वो बातें हैं जो बमार्फत खुद मोदी लोगों को मालूम है। परन्तु कृत्यों की यह सूची अभी भी पूर्ण नहीं है। आने वाले समय में उनके और कारनामे सामने अवश्य आएंगे। कोई और नहीं ये जानकारी खुद मोदी ही देंगे।

 ये भी उनकी एक महानता ही है कि उनके कृत्यों को जनमानस तक पहुँचाने के लिए किसी वाल्मिकी, तुलसीदास या सूरदास जैसे विभूतियों की कोई आवश्यकता नहीं। अपनी आत्मकथा से किश्तवार अवगत कराकर वो मानवजाति को निरंतर अनुगृहित करते हैं। और मीडिया के धुरंधर इसका चित्रण, प्रकाशन और प्रसार करते हैं।समकालीन इतिहास के अध्येताओं को प्रधानमंत्री के बांग्लादेश की आज़ादी में किए गए योगदान पर शोध करना चाहिए क्योंकि,  बांग्लादेश की आज़ादी से जुड़ी किताबो में इस तथ्य का उल्लेख नहीं मिलता है।

 यह शोध इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि तब के जनसंघ के बड़े नेताओं, अटल और आडवाणी द्वारा बांग्ला मुक्ति अभियान के दौरान कोई सत्याग्रह आयोजित किया भी गया था या नही, इसकी जानकारी किसी को हो तो बताएं और यह भी जानकारी हो तो बता दें कि, यह महानुभाव किस सत्याग्रह में मुब्तिला थे ?

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