भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

संयुक्त किसान मोर्चा ने शुक्रवार को भारत बंद की घोषणा कर रखी है। हम संपूर्ण भारत की बात तो नहीं करेंगे, हरियाणा की बात करेंगे और हरियाणा में यह बंद सरकार के लिए बहुत बड़ी परीक्षा सिद्ध होने वाला है।

संयुक्त किसान मोर्चा और हरियाणा सरकार दोनों अपनी योजनाएं बनाने में लगे हुए हैं। दोनों की ओर से कहीं कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही। हरियाणा सरकार का कहना है कि यह आंदोलन मुट्ठी भर किसानों का है। अधिकांश किसान सरकार के साथ हैं, कानूनों को अच्छा मानते हैं, जबकि किसान मोर्चा की ओर से सीधा-सीधा कहा जा रहा है कि इन कानूनों द्वारा किसानों को बेच दिया जाएगा। उनके बच्चे बर्बाद हो जाएंगे। यह हमारे आने वाली पीढिय़ों की लड़ाई है, अत: हम अंतिम सांस तक इन कानूनों को रद्द कराने के लिए लगे रहेंगे।

पहले बात करें सरकार की। सरकार के साथ तो हो यह रहा है कि मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की। पहले तो हरियाणा का किसान इस आंदोलन में सम्मिलित नहीं था। पंजाब के किसानों को दिल्ली पहुंचने से हरियाणा सरकार ने रोका, उससे यहां के किसान भी जागृत हुए और आंदोलन में शामिल हो गए। फिर भाजपा संगठन की ओर से प्रयास किए गए किसानों को समझाने के। पूर्व कृषि मंत्री और वर्तमान अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ पूरे प्रयासों से किसानों को समझाने में लगे हैं लेकिन नतीजा शून्य रहा। इसके पश्चात संपूर्ण मंत्रीमंडल भी इसमें सम्मिलित हुआ और मंत्री केंद्र सरकार के दबाव और मंत्री पद की वैभव के साथ कुछ ऐसी बातें बोल गए कि जिसने किसानों के जले पर नमक छिडक़ने का काम किया। अधिक विस्तार में न जाते हुए इतना ही कहेंगे कि मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और मंत्री, भाजपा के वरिष्ठ नेता किसान आंदोलन वाले क्षेत्र में अपने हलकों में भी सभा नहीं कर पा रहे।

बीच में विधानसभा सत्र आया। सत्र में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अविश्वास प्रस्ताव रखा, जो 32-55 से औंधे मुंह गिरा। इससे सरकार फिर जोश में आ गई और कहने लगी कि हमारी लोकप्रियता कायम है। अभी तो हमने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव को बुरी तरह गिराया लेकिन सरकार यह भूल गई कि विधानसभा में वित्त जारी थी और अपने भविष्य को देखते हुए सभी विधायक सरकार के साथ रहे। जनता का मत तो विधानसभा में नहीं आया।

यह बात नहीं कि सरकार इस बात को समझ नहीं रही कि जनता उनके साथ नहीं है, समझ रही है और जनता को अपने पक्ष में करने का भरपूर प्रयास कर रही है। विधानसभा सत्र समाप्त होने के पश्चात प्रतिदिन सरकार की ओर से लोक-लुभावन घोषणाएं की जाती हैं और 150 से अधिक परियोजनाओं का उद्घाटन भी एक ही दिन में कर डाला। इसके पश्चात और अनेक लोक-लुभावन घोषणाएं रोज की जा रही हैं। इसी प्रकार उप मुख्यमंत्री भी लगातार कुछ न कुछ जनता की भलाई के लिए कहते ही रहते हैं। सरकार का यह सोचना है कि इन घोषणाओं से जनता यह मान लेगी कि सरकार जनहितैषी है लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई लाभ दिखाई दे नहीं रहा है।अब बात करें किसान आंदोलन की। तो किसानों के साथ व्यापारी भी आ खड़े हुए हैं। वे व्यापारी जो भाजपा के बुरे समय के भी साथ हैं, जब भाजपा को हरियाणा में दो सीटें मिला करती थीं, तब भी व्यापारी उनके साथ था और अब वही व्यापारी वर्ग किसानों के साथ खड़ा नजर आ रहा है। इसी प्रकार विभिन्न विभागों में सरकार से नाराज सभी कर्मचारी, यूनियनें कह रहे हैं कि वे किसान मोर्चा के साथ हैं। अर्थात भारत बंद में किसान मोर्चा के साथ व्यापारी और कर्मचारी भी होंगे।

पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि कोई भाजपा का नीतिकार अवश्य किसान मोर्चा के साथ है। जिस प्रकार भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को कोई न कोई अभियान सौंपकर व्यस्त रखती है, उसी प्रकार किसान मोर्चा भी अपने साथियों को ऊबने से बचाने के लिए रोज नए-नए कार्यक्रम करता रहता है। अत: किसान मोर्चा का कार्यकर्ता निष्क्रिय नहीं है और किसान मोर्चाओं के नेताओं ने अपने किसान भाईयों को यह समझा दिया है कि यह उनके जीवन-मरण का सवाल है और इसी के वशीभूत किसान परिवारों के युवा, वृद्ध, बाल और महिलाएं भी धरना-प्रदर्शन में सम्मिलित होती हैं। ऐसी अवस्था में यह कहना कि किसानों में ऊर्जा नहीं है, शायद गलत होगा। 

दूसरी ओर वर्तमान में भाजपा कार्यकर्ताओं में ऊर्जा की कमी है, जिसका प्रमाण मिला, जब सभी जिला संगठनों को आदेश दिए गए कि किसानों को जाकर समझाओ तो अधिकांश ने अपने ही लोगों को बुलाकर मीटिंगें कर खानापूर्ति कर दी। किसानों के मध्य जाने वालों की संख्या नगण्य रही, जिसमें छोटे कार्यकर्ता से लेकर मंत्री और सांसद भी शामिल हैं।

भाजपा में कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा है। अब तक न तो प्रदेश अध्यक्ष अपनी कार्यकारिणी बना पा रहे और न ही मुख्यमंत्री मंत्रीमंडल पूरा कर पा रहे तथा न ही चेयरमैन वगैहरा की नियुक्ति कर पा रहे। संगठन और सरकार में यही पता नहीं लगता कि संगठन का काम कौन करेगा और सरकार का काम कौन? यह घालमेल की स्थिति कार्यकर्ताओं का मनोबल गिराती है। सही पूछा जाए तो हरियाणा में कहा जाता है कि मुख्यमंत्री ही सबकुछ हैं। मुख्यमंत्री, गृहमंत्री के चर्चे चलते ही रहते हैं।इन परिस्थितियों को देखते हुए शुक्रवार का भारत बंद निर्णायक हो सकता है और बंद से यह सामने आ जाएगा कि सरकार की लोकप्रियता कितनी है, क्योंकि सरकार अपनी पूरी योजनाओं, शक्ति का प्रयोग कर रही है इस बंद को असफल करने के लिए।

कुछ चर्चाकारों से बात हुई तो उन्होंने कहा कि अरे यह कोई पूछने वाली बात है। एक तरफ उत्साहित फौज है और एक तरफ निरोत्साहित। कौन विजयी होगा, इसका उत्तर आप स्वयं ढूंढ लीजिए।

खैर जो भी हो, आज मुख्यमंत्री राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिले और कहा कि विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। जाहिर है किसान आंदोलन और उससे उपजी परिस्थितियों के बारे में भी चर्चा हुई होगी। अभी सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री और भी केंद्रीय नेताओं से कल मिलेंगे। इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री का प्रदेश से बाहर दिल्ली होना सवाल तो खड़े करता है और फिर जेपी नड्डा संगठन के आदमी हैं और यहां संगठन के आदमी ओमप्रकाश धनखड़ हैं लेकिन मुलाकात सरकार के नेता से होती है। अर्थात उस बात को बल मिलता है कि हरियाणा में सत्ता और संगठन का घालमेल है।

वर्तमान में अनेक चर्चाएं चल रही हैं, जिनमें सांसदों के नाम लिए जाते हैं। गुरुग्राम के सांसद राव इंद्रजीत का पिछले दिनों सामाजिक कार्यक्रमों में जाना चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रचलित है कि वह चुनावों से साल-डेढ़ साल पहले ही जनता में निकलते हैं। तो राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस भारत बंद के पश्चात हरियाणा की राजनीति में किसी न किसी परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है। वह परिवर्तन नेतृत्व परिवर्तन, सत्ता परिवर्तन या भाजपा में विभाजन भी हो सकता है।

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