– हरियाणा विधानसभा में किसान आंदोलन को लेकर विपक्ष पर मुखर नांगल चौधरी के विधायक डॉ अभय सिंह यादव
 – किसान खेत में हैं तो दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर बैठे लोग कौन हैं?
-दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर धरनारत कृषि सुधार कानूनों के विरोधी आंदोलनकारी। 
– सदन में यादव ने कहा कि इन आंदोलनकारियों में अब वास्तविक किसानों की भागीदारी नहीं है, आंदोलन का झंडा उन लोगों ने थाम रखा है जो या तो कांग्रेसी हैं या फिर कांग्रेसियों ने जिन्हें बैठा रखा है।

अशोक कुमार कौशिक

नारनौल । हरियाणा विधानसभा में आजकल किसानों के नाम पर जमकर बवाल कट रहा है। उन किसानों के नाम पर राजनीति हो रही है, जो आंदोलन में शामिल होने की बजाय अपने खेतों में गेहूं और सरसों की फसल तैयार करने में जुटे हैं। ये वे किसान हैं, जिन्हें तीन कृषि कानूनों के फायदे या नुकसान से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। किसी को अगर फर्क पड़ रहा है तो उन राजनेताओं, जो इन आंदोलनकारियों को उकसाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे।

किसान मुद्दे को लेकर अपने राजनीतिक जीवन की नई पारी खेल रहे नांगल चौधरी के विधायक डा. अभय सिंह यादव लगातार कांग्रेस पर हमलावर है। विधानसभा में चर्चा के दौरान भाजपा के नांगल चौधरी से विधायक डॉ अभय सिंह यादव ने तो यहां तक कह दिया कि पूरे देश में कहीं आंदोलन नहीं है, लेकिन दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर आंदोलनकारी अभी भी जमे हुए हैं, क्यों? और कौन उन्हें उकसा रहा? सदन में भाजपा नेता यादव ने कहा कि इन आंदोलनकारियों में अब वास्तविक किसानों की भागीदारी नहीं है। आंदोलन का झंडा उन लोगों ने थाम रखा है, जो या तो कांग्रेसी हैं या फिर कांग्रेसियों ने जिन्हें बैठा रखा है।

पूरे विधानसभा सत्र में किसान आंदोलन को लेकर सबसे अधिक मुखर नांगल चौधरी के विधायक डॉ अभय सिंह यादव है। वह प्रतिपक्ष के नेता चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा कमेटी की सिफारिशों को लेकर लगातार हमलावर रहे । डॉ अभय सिंह यादव एक के बाद एक अकाट्य तर्क देकर हाईकमान की नजर में आ गए। उन्होंने उत्तरी हरियाणा और दक्षिणी हरियाणा को लेकर जो तर्क दिया उसकी काट कांग्रेस के पास भी नहीं है। वे मजबूती से कहते हैं की उतरी हरियाणा की एक जाति विशेष के लोग इस आंदोलन को बढ़ावा दे रहे है। उनकी इस बात से हंगामा बढ़ जाता है और कांग्रेसी विरोध जताते है।

बात तो यहां तक कही गई कि खास वर्ग के लोग ही इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के इस गरम बयान पर सदन में काफी हंगामा हुआ। कांग्रेस ने असली किसान और नकली किसान को आधार बनाते हुए भारतीय जनता पार्टी को घेरने की कोशिश की। डॉ यादव के अनुसार सवाल यह खड़ा हो रहा कि आखिर इस आंदोलन की परिणति क्या होगी? क्या यह आंदोलन यूं ही चलाया जाता रहेगा? क्या दिल्ली-हरियाणा सीमा के नजदीक स्थापित इंडस्ट्री को विस्थापित होना पड़ेगा?

भाजपा की ओर से जवाब आया कि ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे। कांग्रेस खासकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा इन आंदोलनकारियों को उठाने की जिम्मेदारी लें, क्योंकि अधिकतर आंदोलनकारी कांग्रेस विधायकों के समर्थक हैं, जो तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध की आड़ में अपना आधार मजबूत करने के प्रयास में हैं। कांग्रेस ने जवाब दिया कि भाजपा कुछ तो पहल करे। थोड़ा केंद्र सरकार आगे बढ़े और थोड़ा किसान आगे बढ़ेंगे, तभी कोई रास्ता निकलेगा। इस पूरे आंदोलन में अगुवाई करने वाले करीब तीन दर्जन किसान संगठनों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। चर्चा तो यहां तक हो रही है कि उत्तर प्रदेश से हरियाणा आकर आंदोलन का झंडा थामने वाले राकेश टिकैत वास्तव में कितने बड़े किसान हैं?

स्थानीय मुद्दे हो या राज्य स्तर अथवा राष्ट्रीय स्तर के वह जनता के बीच दिखाई देते हैं। एक दूरदर्शी राजनेता की भांति वह क्षेत्र में तो अपनी पकड़ बना ही चुके हैं अब पार्टी और हाईकमान की नजर में भी पकड़ मजबूत करने जा रहे हैं। किसान आंदोलन को लेकर जब भाजपा असमंजस मे थी डॉ अभय सिंह यादव ने ही सतलुज रावी व्यास लिंक नहर मामले की बात उठाकर उसको राहत दिलाई । जब भाजपा का थिंक टैंक और जाट नेतृत्व भी मायूस हो चुका था तब उन्होंने एसवाईएल की बात उठाकर एक लो दिखाई। बाद में उनकी बात को अटेली से पूर्व निर्दलीय विधायक नरेश यादव ने उठाकर मजबूती दी। वह एसवाईएल के मामले को लेकर लगातार सक्रिय है।

डॉ यादव कहते हैं कि किसान को अपनी जमीन से बेहद लगाव होता है और कांग्रेसी ने किसानों के जेहन में यह बात बता दी की सरकार के नए कानून से उनकी जमीन चली जाएगी। वह प्रदेश के कांग्रेसी नेतृत्व पर यह कहकर भी हमलावर हुए की कांग्रेस प्रदेश की जनता को सरकार के नुमाइंदों के प्रति उकसा रही है कांग्रेस जनप्रतिनिधियों के बायकाट की बात को बढ़ावा देकर नई प्रथा को जन्म दे रही है। यह आप भले ही आज भाजपा जजपा गठबंधन सरकार के लिए परेशानी का सबब भले ही हो पर इसकी तपत भविष्य में कांग्रेस को भी लगेगी इसमें संशय नहीं। वह जोर देकर विधानसभा में कहते हैं कि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों को अपनी बात ना रखने देने की परिपाटी गलत है। इसके पीछे सत्ता के लालची है जो इस प्रकार की बात को बढ़ावा दे रहे है।

नांगल चौधरी के विधायक विधानसभा में 2014 के बाद नरेंद्र मोदी की अभ्युदय से लेकर वर्तमान मैं उनकी नीतियों को लेकर विस्तार से प्रकाश डाल कर नई कृषि कानून को वाजिब ठहरा रहे। राफेल से लेकर सीएए पर कांग्रेस की नीतियों पर लगातार सवाल उठाए । लगता है डॉ अभय सिंह यादव का चयन भाजपा ने का सोच समझकर किया है क्योंकि दक्षिणी हरियाणा में किसान आंदोलन का प्रभाव ना के बराबर है। इसे पूर्व वह सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण के मामले को विस्तार से उठा चुके हैं। जिस तरह के मुद्दों का चयन कर अपने तरकश के बाण कांग्रेसी पर वह फेंक रहे हैं उसको लेकर यह साफ दिखाई दे रहा है कि भाजपा हाईकमान भी उनको लेकर अब उत्साहित है। पार्टी दक्षिणी हरियाणा में उनको लेकर एक बड़ा दांव खेलने जा रही है। कुछ लोग इसे राव इंद्रजीत सिंह के प्रभाव को कम करने की रणनीति के रूप में भी देख रहे है। अब तो गुरुग्राम से भाजपा सांसद एवं केंद्र सरकार में राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार राव इंद्रजीत सिंह भी दबे मन से डॉ अभय सिंह यादव के प्रभाव को स्वीकारने लगे हैं।

चाहे एसवाईएल का मुद्दा हो या किसान बिल अथवा जिला मुख्यालय के नामकरण का मामला। वह बड़े सधे तरीके से अपने पासे चल रहे हैं। राजनीति की शतरंज की बिसात पर उनके मुद्दों को लेकर है के जा रहे पासो को देखकर यह नहीं लगता कि वह कभी ब्यूरोक्रेट भी थे। एक सफल मंझे राजनेता की तरह वह अकाट्य तर्क पेश कर रहे है। विधानसभा में उनका मुखर आवाज भावी राजनीति का चेहरा बनता दिखाई दे रहा है। यद्यपि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के का डर के नहीं है फिर भी जिस तरह वह मोदी की प्रशंसा करते हुए उनकी नीतियों को उचित ठहरा रहे हैं उसको देख कर लगता है कि भविष्य में उनको मंत्री पद से नवाजा जा सकता है। राजनीति पर गहराई से नजर रखने वाली लोगों का मानना यह भी  है कि हो सकता है कि वह भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से आगामी सांसद का चेहरा हो।

अब आंदोलन की वास्तविक तस्वीर पर नजर डालते हैं। किसानों के रहनुमाओं को डर है कि एमएसपी बंद हो जाएगी और मंडियां खत्म हो जाएंगी, लेकिन हरियाणा सरकार की ओर से विधानसभा में स्पष्ट कर दिया गया है कि इस सीजन में सरकार 83 लाख टन गेहूं और सात लाख टन सरसों खरीद की तैयारी कर रही है। राज्य का कृषि बजट 5,280 करोड़ रुपये किया जा चुका है। खरीद के लिए 400 से ज्यादा मंडियां बनाई गई हैं, जिसका मतलब साफ है कि भविष्य में राज्य में मंडी व्यवस्था भी बरकरार रहेगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद भी होगी। रही एमएसपी की गारंटी का कानून बनाने की बात, तो विपक्ष के नेता हुड्डा की इस मांग पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल तर्क देते हैं कि सारी फसलें यदि एमएसपी पर खरीदने की गारंटी का कानून बना दिया गया तो यह केंद्र सरकार के कुल बजट से भी बहुत अधिक होगा।

हरियाणा सरकार इस बार एक अप्रैल से गेहूं व सरसों की खरीद प्रक्रिया शुरू करने वाली है। अमूमन यह 10 अप्रैल के आसपास शुरू हो पाती है। गेहूं, सरसों, धान और बाजरे का खरीद लक्ष्य सालाना बजट में दर्शाकर सरकार ने आंदोलन कर रहे किसानों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि मंडी व्यवस्था, फसलों के भुगतान और रेट को लेकर उनकी आशंकाएं पूरी तरह से निर्मूल हैं। हरियाणा सरकार ने मक्का, सूरजमुखी, मूंग, चना और मूंगफली की सरकारी खरीद भी बरकरार रहने का ऐलान अपने वार्षकि बजट में किया है। यह फसलें बाकी राज्यों में एमएसपी पर नहीं खरीदी जाती। इस चक्कर में पड़ोसी राज्यों का काफी अनाज हरियाणा में आ जाता है।

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