पंजाब के सभी भाजपा विधायक कांग्रेस में शामिल

 हरियाणा में सत्ताधारी दल भाजपा – जजपा को किसानों के विरोध का करना पड़ रहा है सामना।
– चार बीजेपी सांसद भी लड़ेंगे पश्चिम बंगाल में विधायकी का चुनाव ।
– दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को AIADMK ने मात्र 20 सीट चुनाव लड़ने के लिए दी।
– उत्तर भारतीय जिस CAA को भाजपा की सबसे बड़ी उपलब्धि समझ रहे हैं , उस CAA को तमिलनाडु में लागू ना होने देने का वादा AIADMK ने अपने मैनिफ़ेस्टो में किया है

अशोक कुमार कौशिक

जानकारी इतनी तगड़ी है की लिखने से रोक ना पाया खुद को । भाजपा की जमीन दरक रही है। यह बात भले ही राष्ट्रीय मीडिया ना दिखाएं पर यह सच है। पहली जानकारी यह है कि देश को कांग्रेस वहीं करने वाली भाजपा आज पंजाब में भाजपा विहीन हो गई। पंजाब के सभी भाजपा विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। शायद पंजाब में किसान आंदोलन का खौफ इस कदर छा गया कि भाजपा के लोगों को अब भाजपा में अपना भविष्य अंधकार मय में दिखाई देता है। इसका छोटा ट्रेलर हम पंजाब में पंचायत चुनाव वह नगर पालिका चुनाव में देख चुके है।

 पंजाब के बाद आज हरियाणा में भी स्थिति बड़ी विकट हो रही है सत्ताधारी दल के नेता अपने निर्वाचन क्षेत्र में जनसभा करने से अब गूरेज करने लगे है। भाजपा और जजपा नेताओं का जगह-जगह विरोध हो रहा है। खट्टर सरकार का विश्वास मत अर्जित करने के बाद स्थिति इतनी भयावह होती जा रही कि निर्दलीय विधायक गोपाल कांडा जिन्होंने सरकार का समर्थन किया को भी प्रबल विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब के बाद हरियाणा के किसान मुखर होते जा रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में संगठित हो रहा यह आंदोलन अब धीरे धीरे पूरे देश मे अपनी जड़ जमाने लगा है।

किसान एकता मंच ने एक अपील देश के उन राज्यों जहां फिलहाल चुनाव हो रहे हैं, के मतदाताओं से की है, कि वे देश और जनहित में भाजपा को वोट न दें। एकता मंच के नेता बंगाल के नंदीग्राम में अपनी सभा भी कर चुके हैं। पंजाब से उठा किसानों का यह आंदोलन कभी पश्चिमी विक्षोभ की तरह, बरस कर निकल जाने वाले तूफान की तरह लग रहा था, पर जब यह हुजूम 26 नवम्बर को, पानी की बौछारों और लाठी चार्ज का सामना करते हुए दिल्ली की देहरी पर आ जमा तब लगा कि यह मौसमी बारिश नही है बल्कि इस तूफान में परिवर्तन की उम्मीदे छिपी हैं। लेकिन इस जमावड़े को, उस हुजूम को, उस संकल्प को, और किसानों की उस व्यथा को न तो सरकार ने गम्भीरता से लिया और न ही मीडिया के एक अंग ने। देशभर में उत्कंठा थी, कौतूहल था, पर यह उम्मीद नहीं थी कि यह आंदोलन, जन आंदोलनों के इतिहास में एक अमिट हस्ताक्षर बनने जा रहा है। 

सरकार को लगा कि, वह इस जन आंदोलन को उसी प्रकार निगल जाएगी, जिस प्रकार उसने अन्य जन आंदोलनों को निगल लिया था। जैसे सीएए विरोधी आंदोलन। वही आजमायी शातिराना चालें, धार्मिक भेदभाव औऱ विरोध के हर स्वर को देशद्रोह कह कर फूट डालो, अपना मक़सद हल करो और चलते बनो, की आजमाई शैली काम मे लायी गयी और उधर मीडिया का एक हिस्सा सरकार के दुंदुभिवादक के रूप में सरकार के हर शातिराना जनविरोधी कृत्य में तो, सरकार के साथ था ही। सरकार ने बातचीत भी शुरू की और उसके सामानांतर, आईटी सेल और कुछ मीडिया घराने दुष्प्रचार भी फैलाते रहे। साथ ही दिल्ली की किलेबंदी भी की गयी । पर इन सब कुटिल चालों के बावजूद न तो किसानों का मनोबल टूटा, न उनका हौसला और न ही वे अपने धरनास्थल से एक इंच पीछे हटे। 

जहां एक तरफ़ सरकार, उसके साथ व्यापक जनसम्पर्क की क्षमता और शक्ति के साथ मीडिया हो, ऐसे संगठित तंत्र के मुकाबला आसान भी नहीं रहता है। पर जब संकल्प अपने हक़ के लिये हो तो, विरोध में खड़ा हर तरह का सत्ता तंत्र मात खाता ही है। अब किसान मोर्चा बंगाल में हैं। वे अपनी बातें जनता तक पहुंचा रहे हैं। 

किसान नेता राकेश टिकैत ने बंगाल की रैली में कहा कि भाजपा के नेता यदि हर घर से एक एक मुट्ठी चावल मांगने आते हैं तो उनको यह बतायी जाए कि जो चावल वह मांग रहे हैं, उस धान की क्या कीमत एमएसपी के रूप में सरकार ने तय कर रखी है ? और बाजार में उन्हें उस धान की क्या कीमत मिल रही है ? किसान को एमएसपी पर अपने अनाज की कीमत क्यो नही मिल रही है ? सरकार इसके लिये क्या कर रही है ? सरकारी मंडी, निजी मंडी, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसे शब्दों के लाभ हानि बताने वाली सरकार किसानों को यह समझा नहीं पा रही है कि आखिर सरकार द्वारा ही तय की गयी कीमत किसानों को क्यों नहीं मिल पा रही है ? सामान्य सी बात है, शायद किसान ही अकेला ऐसा उत्पादक होगा जो सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किये जाने के बाद भी उस पर अपनी फसल नहीं बेच पाता है और लगातार  घाटे में रहता है। समस्या स्पष्ट है कि, किसान को भी अपने उपज की उचित कीमत मिलनी चाहिए, और समाधान के नाम पर सरकार के पास केवल जुमलो के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।

दूसरी जानकारी 200 सीट जीतने का दावा करने वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी को इलेक्शन लड़ाने के लिये सही कैंडीडेट भी नहीं मिल रहे पश्चिम बंगाल में । जिसके कारण विश्व की सबसे बड़ी पार्टी अपने वर्तमान सांसदों को भी विधान सभा चुनावों में उतारने को तैयार है।  बीजेपी ने पहले दो चरणों के 57 उम्मीदवार घोषित किये थे,  आज जारी तीसरे और चौथे चरण की लिस्ट में बीजेपी ने जिन 63 उम्मीदवारों की घोषणा की है उनमें बीजेपी के तीन लोकसभा सांसद और एक राज्यसभा सांसद के नाम भी हैं, जिनमें फ्लॉप बॉलीवूड सिंगर बाबुल सुप्रियो, और बांग्ला फिल्मों में अभिनेत्री रह चुकीं लॉकेट चटर्जी के नाम भी शामिल हैं।  ये दोनों ही 2019 लोकसभा में जीतकर संसद बने हैं । इनके अलावा एक और सांसद निशीथ प्रामाणिक और राज्यसभा सांसद स्वप्न दास गुप्ता के नाम भी लिस्ट में शामिल हैं।

आमतौर से किसी भी सांसद को पार्टी विधानसभा का टिकट तब देती है जब वो मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हो । भाजपा ने बंगाल में अपने चार सांसदो को टिकट दिया है । इसके दो ही कारण हो सकते है : 

एक भाजपा हरियाणा व उत्तर प्रदेश की तरह बंगाल की जनता को मूर्ख बना रही है । हरियाणा व उत्तर प्रदेश में भी पिछले चुनाव में हर इलाक़े में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अलग अलग नेताओ को मुख्यमंत्री बनाने के इशारे दिए थे । स्टूल वाले उप मुख्यमंत्री तो कई दिन तक इस सदमे से बाहर नहीं निकल पाए थे कि OBC समाज से उनके नाम पर वोट हथिया लिए और उन्हें स्टूल पकड़ा दिया । 

दूसरा भाजपा के पास चुनाव लड़ाने लायक़ बंगाल में नेता ही नहीं है । भाजपा की लिस्ट देखे तो आधे से अधिक प्रत्याशी तो उन्होंने दूसरी पार्टियों से आयात किए हैं , फिर भी पूरे नहीं हो पाए तो अपने सांसद ही मैदान में उतार दिए । 

वैसे हम उत्तर भारतीय हमेशा से बंगाल के लोगों को विद्वान मानते आए हैं । इस चुनाव में देखते हैं कि वो मूर्ख बनते हैं या अपना विद्वान वाला तमग़ा बचा लेंगे ।

सवाल ये है की फिर जो तृणमूल के नेताओं विधायकों की टोली खरीदी गयी है जनता के पैसों से उन्हे क्या पॉपकॉर्न खिलाने के लिये लाया गया था ?  पूछ्ता है पश्चिमी बंगाल ?  या फिर ये ममता दीदी का खौफ़ है जो ये सब करवा रहा है ?

– तमिलनाडु चुनाव ! 

पंजाब पश्चिमी बंगाल के बाद अब बात करें तमिलनाडु की । वहां भाजपा AIADMK के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है । दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को AIADMK ने मात्र 20 सीट चुनाव लड़ने के लिए दी है । भाजपा ने जिन 20 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है उन्मे से 18 दूसरी पार्टियों से आयातित उम्मीदवार है जिनका भाजपा या संघ से कोई सम्बन्ध नहीं है । 

एक और ख़ास बात है , हम उत्तर भारतीय जिस CAA को भाजपा की सबसे बड़ी उपलब्धि समझ रहे हैं , उस CAA को तमिलनाडु में लागू ना होने देने का वादा AIADMK ने अपने मैनिफ़ेस्टो में किया है । 

मतलब जिस CAA के चक्कर में उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भाजपा ने बवाल कटवा दिया , उसी CAA को लागू ना करने देने के वादे से भाजपा तमिलनाडु में वोट माँग रही है । 

पश्चिम बंगाल, केरल व तमिलनाडु के सियासी घमासान का देश के लिए हासिल यह होने वाला है कि अब ‘चुनावी प्रबंधन की कला’ ही ‘गवर्नेंस मॉडल’ का असली पर्याय बनकर रह जायेगी। चुनाव जीतने के बाद सरकारें क्या करती हैं, इस पर होने वाली बहस अब और अधिक अपनी प्रासंगिकता खोएगी। 

 दरअसल, जब चुनाव युद्ध में बदल जाता है, तो जीतने और हारने वाले पक्ष अगले युद्ध को और बेहतर तरीक़े से लड़ने की तैयारी में लग जाते हैं। जनता के सारे मुद्दे गौण हैं। यह प्रवृत्ति 2014 के बाद इस लोकतांत्रिक मुल्क़ में दिनों-दिन मजबूती होती गयी है। बंगाल का चुनाव इस ट्रेंड को सियायी बूस्टर देगा। हम उत्तर भारतीय सच में मूर्ख ही है ।

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