– ये तो उधार के महानायकों से मौर बंधवा रहे।
– कट्टर कांग्रसी कामराज के कटआउट लगा रही भाजपा।
-कांग्रेस अध्यक्ष सुभाषचंद्र की माला जपना पड़ रही है।
– डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी का नाम रस्म अदायगी के लिये।
– वामपंथ- ममता से आरएसएस तक कथित जनसेवक मिथुन चक्रवर्ती।

अशोक कुमार कौशिक 

एक बात मोदी समर्थकों को समझ लेनी चाहिए कि मोदी की राजनीति न तो राष्ट्रवादी है, न तो हिंदूवादी है, वो केवल और केवल व्यक्तिवादी राजनीति करते है। और जब देश से बड़ा व्यक्ति हो जाता है तो लोकतंत्र को सबसे ज्यादा खतरा मंडराता है। 1977 में यही हुआ था औऱ आज भी यही हो रहा है इतिहास अपने आप को दोहराता है।

नरेंद्र मोदी ने सारी ताकत लगा की लेकिन देश के बौद्धिक उनको गुलजारी लाल नंदा के बराबर भाव नही देते हैं। यह एक बात मोदी की रात को नींद को उड़ा देने को काफी है। 

आज विश्व का या कि सकल ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा राजनैतिक दल अपने कुनबे के महानायक न होने की दरिद्रता से आकुल,व्याकुल रहता है। यह विकट,विकराल संकट तब और बढ़ जाता है जब उसे चुनावी वैतरणी पार करना हो और कोई एक नामलेवा मांझी ख़ुद के कुनबे से नहीं मिलता। 
हार कर उसे उधार के महानायक ढूंढते पड़ते हैं और तब जाकर वह चुनावी बारात के दूल्हे पर ‘मौर’ बांध पाता है।हद ये कि यह कुनबा जिन नामों का मोर मुकुट अपने सिर पर धर लेता है वे सबके सब वैचारिक स्तर पर ख़ुद इस कुनबे की विचारधारा के आजीवन कट्टर विरोधी रहे थे। सरदार पटेल, विवेकानंद नेताजी, सुभाष चंद्र बोस तथा अरविंद आदि ऐसे नाम है जिनकी विचारधारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से बिल्कुल मेल नहीं खाती फिर भी चुनावी लाभ के लिए भाजपा उनके नाम का लबादा ओढ़ कर फिर रही है।

पांच राज्यों में चुनाव की हलचल चल रही है। भारतीय जनता पार्टी हमेशा की तरह चुनाव जीतने को धरती आसमान एक किये हुए है। लेकिन पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों में वो उधार के नायक, महानायक को सिर पर उठाए घूम रही है।

– पहले बात तमिलनाडु की 

तमिलनाडु में चुनावी संग्राम में अपने लिए जगह तलाशती भाजपा का हाल यह है कि वह के. कामराज के कटआउट नरेंद मोदी के साथ खड़े कर रही है। कामराज के साथ छोटी छोटी वीडियो फ़िल्म बना कर प्रचार कर रही है। बीती 26 फरवरी को नरेंद्र मोदी की रैली के मौके पर उनके साथ कामराज के विशाल कटआउट लगे थे।

जिनके कटआउट मोदी के साथ लगे वे कामराज 16 साल की उम्र में कांग्रेस में शामिल हुए थे। आज़ादी की लड़ाई में कई बार जेल गए। दो बार कांग्रेस अध्यक्ष,तीन बार तमिलनाडु में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री, भारत रत्न कामराज के नाम,फोटो और कटआउट लगा कर आज भाजपा वहां वोट मांग रही है।

हद यह कि जीते जी कामराज को भाजपा और उसके पूर्वज पानी पी पी कर कोसते थे। ऐसी कोई तोहमत नही रही जो कामराज पर संघ और उसके सियासी संगठन ने न लगाई हो। याद रहे देश में मिड डे मील, 11वीं तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के जनक कामराज की लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका थी।

– और बंगाल में नेताजी सुभाष के नाम की राग माला

पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव मोदी-शाह एंड कंपनी के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है।ममता बनर्जी से सीधी लड़ाई में ख़ुद प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह मैदान में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोकलाता का ब्रिगेड मैदान में इतवार को बड़ी आमसभाकी लेकिन अपनी पार्टी के पित्र पुरुष डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी का नाम सिर्फ़ रस्म अदायगी को लिया।

ब्रिगेड मैदान के चार कोनों पर विवेकानंद, अरविंदो ,नेताजी सुभाष और डॉ मुखर्जी का नाम ऐसे लिया मानो मैदान की हदबंदी,सीमांकन करवाने आये हों।(जैसे राजस्व अमला किसी खेत,प्लाट का बटांकन, सीमांकन करता है)

इतिहास गवाह है कि डॉ मुखर्जी आज़ादी से पहले मुस्लिम लीग की सरकार में शामिल थे। सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के उपाय अंग्रेजों को बताने के लिये मुखर्जी ने बाकायदा चिट्ठी-पत्री की थी।

संघ,भाजपा,मोदी-शाह एंड कंपनी बरसों से नेताजी की शहादत पर बवाल काटती रहे हैं। 2014 में सरकार में आने के बाद नेताजी की फाइलें भी खुलवाई गयीं जिनमें इनके प्रोपगेंडा के लायक कुछ नहीं निकला।

नेताजी के नाम पर बंगाल में सियासी रोटियां सेंकने चूल्हा जलाते वक्त संघ,भाजपा ये भूल जाते हैं कि सुभाषचंद्र बोस दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। नेताजी संघ की मूल विचारधारा से भी कभी सहमत नहीं थे। उनकी आज़ाद हिंद फौज़ में गांधी,नेहरू के नाम की ब्रिगेड थीं। कांग्रेस छोड़ने के बाद नेताजी ने जो फॉरवर्ड ब्लॉक नाम की पार्टी बनाई वो आज़ादी के बाद हमेशा ही वाममोर्चा की घटक रही।

बंगाल में भाजपा स्वामी विवेकानंद के नाम का भी राग अलापती है। संघ परिवार दशकों से स्वामीजी पर अपनाटैग लगाए है जबकि सच यह है कि स्वामी विवेकानंद के विचार संघ की मूल विचारधारा से कोसों दूर हैं। गाय पर ही स्वामी जी विचार जान लें तो पर्याप्त होगा। (इस पर फिर कभी विस्तार से बात करेंगे।) 

अब बात करें बंगाल के चुनाव में मिथुन चक्रवर्ती को लेकर। जब  मिथुन 30 से 55 साल के थे तो वामपंथी विचारधारा के थे तब गरीबो की सेवा नही कर पाए तब के कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री ज्योति बसु की बगल में बैठ कर भी । फिर 55 पार हुए तो ममता की पार्टी की विचारधारा के हुए उनकी बगल में बैठे तब भी गरीबो की सेवा नही कर पाए जबकि ममता ने उन्हें राज्यसभा भी भेजा । अब जब 70 के हुए तो आरएसएस की विचारधारा अपना ली  यह कर की मैं गरीबो की सेवा करना चाहता हूं और मोदी मंच से ही शंखनाद किया कि “मैं कोबरा हूँ डस लूंगा ” 

किस्सा कोताह यह कि आज की भाजपा को हर चुनाव में दूल्हा बनते समय दूसरे दूल्हे के सिर का ‘मौर’ उतार कर अपने सिर पर रखने की क़वायद करना पड़ती है। पार्टी जब जब यह कोशिश करती है तब तब उसके दारिद्रय का ख़ुलासा हो जाता है। हर बार देश दुनिया को पता चल जाता है कि इस पार्टी के वैचारिक पुरखा आज़ादी के संग्राम में किस पाले में खड़े थे । 

तब तब पता लगता है कि पार्टी के पास नामलेवा भी कोई महानायक नहीं है इसलिये 2021 में कामराज और सुभाषचंद्र बोस जैसी कांग्रेसी नायकों के नाम पर अपना सील ठप्पा लगाने की निर्लज्ज कोशिश करना पड़ती है।प्रसंगवश: पंडित दीनदयाल उपाध्याय 1947 में 31 बरस के थे लेकिन पूरे स्वतंत्रता संग्राम में धेला भर योगदान नहीं दिया। मोदी और भक्त बिना सत्ता के एक सांस भी ले पाएंगे बहुत मुश्किल है। बंगाल और असम की जंग इसीलिए महत्वपूर्ण है अगर यह जंग बीजेपी हारी तो मान लेना होगा कि मोदी की चमक अब इतिहास की बात हो गई है।
दिये गये चित्र में तमिलनाडु मोदी की रैली के अवसर पर लगाया गया कटआउट। इसमें पहले नम्बर पर कामराज हैं।

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