उमेश जोशी हरियाणा प्रदेश काँग्रेस की मुराद कल पूरी हो जाएगी। विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी काँग्रेस राज्य की गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। काँग्रेस फरवरी के पहले सप्ताह से ही अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही थी लेकिन राज्यपाल सत्यदेव नारायण आचार्य ने इनके इरादे पूरे नहीं होने दिए और विशेष सत्र नहीं बुलाया। काँग्रेस के पास मार्च में बजट सत्र की प्रतीक्षा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अब बजट सत्र शुरू हो गया है तो काँग्रेस ने अपने तरकश से सारे तीर भी निकाल लिए हैं। अविश्वास प्रस्ताव का तीर कल चलाया जाएगा लेकिन उसकी मारक क्षमता पर संदेह बना हुआ है। यह संदेह निराधार नहीं है। लोकतंत्र का गणित कतई पेचीदा नहीं है। गणित की साधारण समझ वाला व्यक्ति भी यह जानता है कि हरियाणा की 90 सदस्यों वाली विधानसभा में दो स्थान खाली हैं और कुल 88 सदस्यों में 45 सदस्यों पर बहुमत होता है। जेजेपी के 10 विधायकों और पाँच निर्दलीयों का बीजेपी को समर्थन है। बीजेपी के अपने 40 विधायक हैं। इस तरह गठबंधन में कुल 55 विधायक हैं यानी बहुमत से 10 विधायक अधिक हैं। सभी जानते हैं कि 55 विधायकों वाली सरकार सुरक्षित है। फिर भी काँग्रेस अविश्वास प्रस्ताव ला रही है। इसके पीछे काँग्रेस का अतिआशावाद है। उसे लगता है कि किसानों के नैतिक दबाव के कारण 11 विधायक पाला बदल सकते हैं और उस स्थिति में सरकार निश्चित तौर पर गिर जाएगी लेकिन 11 विधायकों के पाला बदलने के दूर दूर आसार नजर नहीं आ रहे हैं। काँग्रेस यह मानती है कि कुछ विधायक मुखौटा लगा कर घूम रहे हैं। उनकी दोहरी नीति है। जनता के बीच जाते हैं तो किसानों का ढोल बजाते हैं; किसान आंदोलन को समर्थन देने का एलान करते हैं लेकिन सरकार से समर्थन वापस नहीं ले रहे हैं। यदि वे सचमुच किसानों के साथ हैं; किसान हितैषी हैं तो किसान विरोधी सरकार को ताकत क्यों दे रहे हैं। काँग्रेस जानती है कि विधानसभा में वोटिंग के समय मुखौटा लगाए विधायकों को अपना असली चेहरा दिखाना ही होगा। काँगेस को यह भी विश्वास है कि अविश्वास प्रस्ताव में या तो सरकार गिरेगी या किसानों से झूठी हमदर्दी दिखाने वाले विधायकों का असली चेहरा सामने आएगा जिससे वे किसानों के बीच जाकर चुनावों में मदद माँगने लायक नहीं रहेंगे। दोहरी नीति अपनाने वाले विधायक हमेशा के लिए किसानों के सामने बेनकाब हो जाएंगे। बागी तेवर दिखाने वाले जेजेपी के कुछ विधायकों से उम्मीद की जा सकती है कि वे सरकार के अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट करेंगे। ऐसे विधायकों सबसे पहले जेजेपी के रामकुमार गौतम का नाम सामने आता है। लेकिन, रामकुमार गौतम की मजबूरी है। व्हिप जारी होने के बाद किसानों से प्यार का इज़हार कर रामकुमार गौतम अपनी विधायकी नहीं गंवाना चाहेंगे। वे अपनी विधायकी तो गँवाएँगे ही, अपने बेटे का राजनीतिक कैरियर भी दाँव पर लगा देंगे। वे बीजेपी से संबंध खराब नहीं करना चाहते। वे बखूबी जानते हैं कि अगले चुनाव में जेजेपी का कोई भविष्य नहीं है; भविष्य होता भी तो टिकट नहीं मिलता। अब बेटे को टिकट दिलवाने के लिए बीजेपी ही एक विकल्प है। यही वजह है कि वे बीजेपी से दोस्ती की पींग चढ़ाने के मकसद से बरोदा उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के लिए वोट मांगने पहुंच गए थे। ये वैसा ही लग रहा था मानो तोपों की लड़ाई में कोई तमंचा लेकर मदद करने पहुंच जाए। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष (चुनाव के समय) सुभाष बराला को हराने वाले जेजेपी के देवेंद्र बबली भी अपनी पार्टी से बहुत संतुष्ट नहीं हैं। वे यह भी कहते हैं कि सरकार में साझीदार होने के कारण उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र के गांवों में घुसने नहीं दिया जा रहा है फिर भी सरकार का साथ देना उनकी मजबूरी है। कल अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के समय कौन कितने विवेक से काम करता है, अभी से कहना मुमकिन नहीं है। राजनीति के खिलाड़ी बखूबी जानते हैं कि वे किसानों को नाराज़ कर राजनीति में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। उन्हें अपने भविष्य के दरवाजे बंद करने हैं तो सरकार का साथ देंगे और राजनीति में लंबी पारी खेलनी है तो विधायकी का लालच त्यागना होगा। इनेलो के अभय चौटाला को किसानों का हीरो बनते सभी ने देखा है। अभय चौटाला रातोंरात किसानों के आंखों के तारे बन गए हैं। अब उन्हें उपचुनाव में शायद ही कोई हरा पाए। सरकार के पाले में बैठे विधायकों के सामने दोनों विकल्प खुले हैं। कल वोटिंग के समय उन्हें एक विकल्प चुनना है। आज किसानों ने कई विधायकों से सम्पर्क कर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देने की अपील की है। जिन विधायकों से किसानों ने संपर्क किया, वे किसानों की अपील का सम्मान नहीं करेंगे तो हमेशा के लिए उनके दिल से निकल जाएँगे। कुछ विधायक यह भी सोच रहे होंगे कि वे बाग़ी बनकर अपनी विधायकी भी गंवा दें और सरकार भी ना गिरे। उनका सोचना जायज है। लेकिन उन्हें एक कदम आगे बढ़ कर सोचना चाहिए। छह महीने बाद उपचुनाव होना ज़रूरी है। वही किसान आपको फिर विधायक बनाएंगे जिनके लिए विधायकी का बलिदान किया है। काँग्रेस के नेता हरियाणा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए फरवरी से ही जी तोड़ कोशिश कर रहे थे। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भुपिंदर सिंह हुड्डा ने राज्यपाल पर पूरा दबाव बनाया था कि वे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाएँ ताकि काँग्रेस पार्टी राज्य की गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सके। चार फरवरी को काँग्रेस विधायकों ने एमएलए होस्टल से राजनिवास तक पैदल मार्च किया लेकिन राज्यपाल सत्यदेव नारायण आचार्य से मिलने में नाकाम रहे। उस समय बीजेपी अविश्वास प्रस्ताव लाने की चर्चा से भयभीत नज़र आ रही थी। स्वयं मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और कृषि मंत्री जेपी दलाल स्पष्टीकरण दे रहे थे कि सरकार को कोई खतरा नहीं है; सरकार पूरे पांच साल चलेगी। इस स्पष्टीकरण के क्या अर्थ थे?इस स्पष्टीकरण में खट्टर और दलाल का डर छुपा हुआ था। हालांकि वो डर असज भी है। किसानों के नैतिक दबाव के कारण कुछ भी हो सकता है। Post navigation किसानों के मुद्दों पर बलराज कुंडू ने सरकार को विधानसभा में जमकर धोया सदन में डिप्टी सीएम ने किसानों को दिलाया विश्वास